( राजेन्द्र प्रसाद ) देशरत्न
अभ्यास के प्रश्न और उनके उत्तर
पाठ के साथ
प्रश्न 1. " नालंदा की वाणी एशिया महाद्वीप में पर्वत और समुद्रों के उस पार तक फैल गई थी । " इस वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए ।
व्याख्या -प्रस्तुत पंक्यिाँ भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ . राजेन्द्र प्रसाद द्वारा लिखित निबंध ' भारत का पुरातन विद्यापीठ : नालंदा ' शीर्षक निबंध से ली गई है । इसमें लेखक ने भारतीय ज्ञान - साधना केन्द्र नालंदा विश्वविद्यालय की गौरव - गाथा का गुणगान किया है । लेखक का कहना है कि नालंदा हमारे इतिहास में अत्यन्त आकर्षक नाम है , जिसके चारों ओर न केवल भारतीय ज्ञान - साधना के सुरभित पुष्प खिले थे बल्कि अपने समय के एक ऐसे देदीप्यमान नक्षत्र थे , जिसका आलोक सम्पूर्ण एशिया महाद्वीप को आलोकित कर रहा था । ज्ञान के क्षेत्र में देश एवं जातियों के भेदभाव का नामोनिशान नहीं था । नालंदा इसका उज्ज्वल दृष्टांत था । नालंदा भगवान बुद्ध एवं भगवान महावीर की कर्मस्थली था । नालंदा विश्वविद्यालय की प्रसिद्धि तथा भगवान बुद्ध के ज्ञान - प्रकाश के प्रचार - प्रसार एशिया महाद्वीप में पर्वत और समुद्रो के उस पार तक फैल गई थी । फलतः विदेशी भी नालंदा की यात्रा पर आते रहे तथा ज्ञान एवं बुद्ध की अमृतवाणी का रस लेकर अभिभूत होते रहे । फाह्यान , हेनसांग , युवानचांग , इत्सिंग आदि - आदि ने नालंदा की पवित्र भूमि का गुणगान अपने - अपने ढंग किया ।
प्रश्न 2. मगध की प्राचीन राजधानी का नाम क्या था और वह कहाँ अवस्थित थी ?
उत्तर - मगध की प्राचीन राजधानी का नाम वैभार था , जो पाँच पर्वतों के मध्य बसी हुई गिरिब्रज या राजगृह में अवस्थित थी ।
प्रश्न 3. बुद्ध के समय नालंदा में क्या था ?
उत्तर – बुद्ध के समय नालंदा में प्रावारिको (उत्तरीय वस्त्रों के निर्माता) का आमवन था ।
प्रश्न 4. महावीर और मेखलिपुत्त गोसाल की भेंट किस उपग्राम में हुई थी ?
उत्तर - जैन ग्रंथों के अनुसार महावीर और आचार्य मेखलिपुत्त गोसाल की भेंट नालंदा नामक उपग्राम में हुई थी ।
प्रश्न 5. महावीर ने नालंदा में कितने दिनों का वर्षावास किया था ?
उत्तर – महावीर ने नालंदा में चौदह वर्षों का वर्षावास किया था ।
प्रश्न 6. तारानाथ कौन थे ? उन्होंने नालंदा को किसकी जन्मभूमि बताया है ?
उत्तर – तारानाथ इतिहास - लेखक थे । उन्होंने नालंदा को सारिपुत्त की जन्मभूमि बताया है ।
प्रश्न 7. एक जीवंत विद्यापीठ के रूप में नालंदा कब विकसित हुआ ?
उत्तर - एक जीवंत विद्यापीठ के रूप में नालंदा गुप्तकाल में विकसित हुआ ।
प्रश्न 8. फाह्यान कौन थे ? वे नालंदा कब आए थे? उतर - फाह्यान एक चीनी यात्री थे । वे चौथी शताब्दी में नालंदा आए थे
9. हषवर्द्धन के समय में कौन चीनी यात्री भारत आया था , उस समय नालंदा की दशा क्या थी ?
उत्तर — सातवीं सदी में समाट हर्षवर्द्धन के समय में युवानचांग नामक चीनी यात्री भारत आया था । उस समय नालंदा अपनी उन्नति के शिखर पर था अर्थात् नालंदा अपने उत्कर्ष पर था ।
प्रश्न 10. नालंदा के नामकरण के बारे में किस चीनी यात्री ने किस ग्रंथ के आधार पर क्या बताया है ? उत्तर - नालंदा के नामकरण के संबंध में चीनी यात्री युवानचांग ने जातक कथा के आधार पर बताया है कि नालंदा का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि अपने पूर्व जन्म में उत्पन भगवान बुद्ध को तृप्ति नहीं होती थी अर्थात् न - अल - दा । उनका कहना है कि जान के क्षेत्र में जो दान दिया जाता है , वह सीमारहित तथा अनंत होता है । फलतः न तो डान देने वालो को तृप्ति होती है और न ही लेनेवालों को ।
प्रश्न 11. नालंदा विश्वविद्यालय का जन्म कैसे हुआ? उत्तर - नालंदा विश्वविद्यालय का जन्म जनता के उदार दान से हुआ । कहा जाता है कि इसका आरंभ पाँच सौ व्यापारियों ने अपने धन से भूमि खरीद कर भगवान बुद्ध को दान में दी थी ।
प्रश्न 12. यशोवर्मन के शिलालेख में वर्णित नालंदा का अपने शब्दों में चित्रण कीजिए ।
उत्तर - आठवीं सदी के यशोवर्मन के शिलालेख में नालंदा का बड़ा भव्य वर्णन किया गया है । इस शिलालेख में नालंदा के विहारों के संबंध में उल्लिखित है कि यहाँ के विहार गगनचुंबी थे । इन विहारों के चारो ओर नीले जल से भरे सरोवरो में सुनहले एवं लाल कमल खिले हुए रहते थे तथा बीच - बीच में सघन आम - कुंजों की छाया थी । भवनों के शिल्प एवं वास्तु निर्माण कला अद्भुत छटा बिखेरती थी । उनमें अनेक प्रकार के अलंकरण एवं भव्य मूर्तियाँ थीं । यहाँ बौद्ध भिक्षुओं के ठहरने के लिए अद्वितीय उद्यान थे प्रश्न 13. इत्सिंग कौन था ? उसने नालंदा के बारे में क्या बताया है ?
उत्तर - इत्सिंग चीनी यात्री था । उसने बताया है कि नालंदा के विहार में तीन सौ कमरे और आठ मंडप थे । नालंदा विश्वविद्यालय के आचार्य एवं छात्रों के भरण - पोषण के लिए भूमि तथा भवनों के अतिरिक्त नित्य प्रति के व्यय के लिए सौ गाँवों की अक्षय आय निधि के रूप में समर्पित की गई थी , लेकिन इत्सिंग के समय में ही इसकी संख्या बढ़कर दो सौ गाँवों तक पहुंच गई । उत्तर प्रदेश , बिहार तथा बंगाल इन तीनों राज्यों ने नालंदा के निर्माण तथा अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया ।
प्रश्न 14. विदेशों के साथ नालंदा विश्वविद्यालय के संबंध का कोई एक उदाहरण दीजिए ।
उत्तर - विदेशों के साथ नालंदा विश्वविद्यालय का जो संबंध था , उसका स्मारक एक ताम्रपत्र नालंदा की खुदाई में मिला है । इस ताम्रपत्र से पता चलता है कि सुमात्रा के शासक शैलेन्द्र समाट श्री बालपत्रदेव ने मगध सम्राट देवपाल देव के पास अपना दूत भेजकर यह प्रार्थना की कि उनकी ओर से पाँच गाँवों का दान नालंदा विश्वविद्यालय को दिया जाए । इसी प्रकार यवद्वीप के समाट बालपुत्र ने नालंदा में एक बड़े विहार का निर्माण कराया । प्रश्न 15. नालंदा में किन पाँच विषयों की शिक्षा अनिवार्य थी ?
उत्तर - नालंदा में निम्नलिखित पाँच विषयों की शिक्षा अनिवार्य थी
( i ) भाषा का सम्यक ज्ञान के लिए - शब्द विद्या या व्याकरण ।
( ii ) बुद्धि की परख के लिए हेतु विद्या या तर्कशास्त्र ।
( iii ) स्वास्थ्य - ज्ञान के लिए चिकित्साशास्त्र ।
( iv ) व्यावहारिक तथा आर्थिक लाभ के लिए - शिल्पविद्या ।
( v ) इसके अतिरिक्त - धर्म एवं दर्शन ।
प्रश्न 16. नालंदा के कुछ प्रसिद्ध विद्वानों की सूची बनाइए । उत्तर — आचार्य शीलभद्र योगशास्त्र के महान विद्वान थे । इनसे पहले धर्मपाल इन संस्था के कुलपति थे । शीलभद्र , ज्ञानचंद्र , प्रभामित्र , स्थिरमति , गुणमति आदि प्रसव । विद्वान थे । इसके अतिरिक्त कमलशील तंत्रविद्या के महान् ज्ञाता थे ।
प्रश्न 17. शीलभद्र से युवानचांग ( द्वेनसांग ) की क्या बातचीत हुई ?
उत्तर - जब युवानचांग ( हेनसांग ) नालंदा से विदा होने लगे तब शीलभद्र तथा अन्य भिक्षुओं ने उनसे नालदा में रहने का अनुरोध किया तो युवानचाग ने कहा कि " यह देश बुद्ध की जन्म भूमि है , इसके प्रति प्रेम न हो सकना असंभव है । " उनके यहाँ आने का उद्देश्य अपने भाइयों के हित के लिए भगवान के महान धर्म की खोज करना था । इसमें उन्हें काफी सफलता मिली है । अपने देश जाकर इस धर्म के विषय में लोगों को जानकारी दूंगा , ताकि वे भी लाभान्वित हो सके । इस पर शीलभद्र ने कहा- ' यह उदात्त विचार तो बौधिसत्वों जैसे है । मेरा हृदय भी तुम्हारी सदाशाओं का समर्थन करता है ।
प्रश्न 18. विदेशों में ज्ञान - प्रसार के क्षेत्र में नालंदा के विद्वानों के प्रयासों के विवरण दीजिए ।
उत्तर - विदेश में ज्ञान - प्रसार के क्षेत्र में नालदा के विद्वानों का महती योगदाम है । सर्वप्रथम तिब्बत के प्रसिद्ध सम्राट स्वोग छन गम्पो ने 630 ई . में अपने देश में भारतीय लिपि और ज्ञान का प्रचार के लिए थोन्मिसंभोट को नालंदा भेजा , जिन्होंने आचार्य देवविद सिंह के संरक्षण में बौद्ध एवं ब्राह्मण साहित्य की शिक्षा प्राप्त की । इसके बाद नालंदा के कुलपति आचार्य शांति रक्षित तथा तंत्र विद्या विशारद कमलशील तिब्बत में ज्ञान का प्रचार किया और बौद्ध विहार की स्थापना की । इनके अतिरिक्त पद्मसंभव एवं दीपशंकर श्रीज्ञान अतिश आदि ने भी उल्लेखनीय कार्य किया । प्रश्न 19. ज्ञानदान की विशेषता क्या है ?
उत्तर - ज्ञानदान की यह विशेषता है कि ज्ञान देने वाले तथा लेनेवाले दोनों में से किसी को तृप्ति नहीं होती है । इसका मुख्य कारण यह है कि ज्ञान देनेवालो की अभिलाषा रहती है कि ज्ञानोपदेश इस प्रकार दूं कि ज्ञान की शिक्षा पाने वाले अधिक से अधिक लाभान्वित हो तथा ज्ञान ग्रहण करने वाले अधिक से ज्ञान पाने के लिए व्यग्र रहते है , क्योंकि ज्ञान का क्षेत्र अनंत एवं सीमा - रहित होता है । इसी कारण दोनों में से किसी को भी तृप्ति नहीं होगी ।