उसने कहा था (पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी)

पाठ का सारांश प्रश्न - ' उसने कहा था ' शीर्षक कहानी का सारांश लिखें । 

 उत्तर - प्रस्तुत कहानी " उसने कहा था " ब्रिटिश सेना में कार्यरत एक फौजी की कहानी है । ब्रिटिश फौज की सिक्ख रेजीमेंट के एक जमादार लहना सिंह के अपूर्व शौर्य , एक सैनिक की महत्त्वाकांक्षा एवं मनोदशा की सफल अभिव्यक्ति है यह कहानी । अदम्य साहस का इस कहानी में पं ० चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने सजीव चित्रण किया है । बारह वर्ष की आयु में ( किशोरावस्था ) लहना सिंह अपने मामा के यहाँ आया था । उसकी भेंट एक आठ वर्ष की बालिका से एक दूकान पर होती है । वह भी अपने मामा के घर आई हुई थी । इस बीच उसकी मुलाकात उस लड़की से प्रायः बाजार में हो जाया करती थी । वह उससे पूछ बैठता था कि उसकी शादी पक्की हो गई । उत्तर में लड़की शरमाकर धत् कहकर चली जाती थी । एक दिन उसके पूछने पर उस लड़की ने कहा कि कल (एक दिन पहले ) उसकी सगाई हो गई है । यह सुनकर वह काफी उद्विग्न हो उठा । कालान्तर में लहना सिंह ब्रिटिश फौज के सिक्ख रेजीमेन्ट में भरती हो गया । बीच में वह छुट्टी लेकर घर आया हुआ था । लड़ाई पर जाते समय वह सूबेदार हजारा सिंह के घर पर रुका । सूबेदार की पत्नी पर दृष्टि जाते ही वह स्तम्भित रह गया । सूबेदार की पत्नी वही बालिका थी जिसपर वह अपने ननिहाल में आसक्त हो गया था । सूबेदार की पत्नी ने उससे आग्रह किया कि उसके पति एवं एकमात्र पुत्र जो सिक्ख रेजिमेंट में कार्यरत हैं , उनकी सुरक्षा का विशेष ध्यान रखेगा । युद्ध क्षेत्र में ' लहना सिंह ' ने अद्वितीय शौर्य का परिचय दिया । शत्रुओं की जर्मन सेना के आक्रमण को निष्फल कर दिया एवं अपने साथियों के सहयोग से बड़ी संख्या में उन्हें मार गिराया । हताहत किया । किन्तु स्वयं भी गंभीर रूप से घायल हो गया । सूबेदार को भी गोली लगी थी । डॉक्टरों की राहत टीम के आने पर जमादार ने स्वयं न जाकर सूबेदार एवं अन्य लोगों को गाड़ी पर भिजवा दिया । वह आत्म - संतोष से गर्वित था । उसने सूबेदार की पत्नी द्वारा किए गए आग्रह एवं दिए गए वचन का पूरी तरह पालन किया । अन्ततः उसका प्राणांत हो गया । किन्तु उसके मुखारबिन्द पर गौरव , स्वाभिमान तथा आत्मोत्सर्ग का भाव स्पष्ट दीख रहा था । गुलेरी ने कहानी का शीर्षक सर्वथा उपयुक्त एवं सार्थक दिया है , क्योंकि सूबेदार की पत्नी ने अपने पति एवं पुत्र की सुरक्षा करने के लिए उससे कहा था।

व्याख्याएं 1. सप्रसंग व्याख्या कीजिए 
"बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही ...............टेकना नसीब न हो। "
 उत्तर - प्रस्तुत पंक्तियाँ पं ० चन्द्रधर शर्मा ' गुलेरी ' लिखित कहानी ' उसने कहा था ' से हैं । जर्मन सेना से मोर्चा लेनेवाली ब्रिटिश सेना में कार्यरत जमादार लहना सिंह की यह उक्ति है उसके शरीर की रगों में युद्ध करने की आतुरता है । वह चाहता है कि उसके उच्च अधिकारी उसके साथ तैनात सैनिकों को शत्रु पर आक्रमण करने की अनुमति दें। मोर्चे पर निष्क्रिय डटे रहने से वह क्षुब्ध है । अतः उसका कथन है कि घोड़े को फेरे बिना वह बिगड़ जाता है तथा बिना युद्ध किए सिपाही की क्षमता भी कुन्द हो जाती है । इस प्रकार उपर्युक्त गद्यांश में एक सैनिक की मानसिकता का सशक्त निरूपण है । उसकी भुजाएँ युद्ध करने हेतु फड़कती हैं तथा वह अपने शौर्य का प्रदर्शन करना चाहता है । 
2. निम्नांकित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या करें । " लड़ाई के मामले में ..........तो क्या हो । " 
उत्तर - प्रस्तुत पंक्तियाँ पं ० चन्द्रधर शर्मा गुलेरी लिखित ' उसने कहा था ' शीर्षक कहानी से ली गई हैं ।
सूबेदार हजारा सिंह द्वारा जमादार लहना सिंह के युद्धोन्माद की आतुरता के संदर्भ में उक्त विचार प्रकट किए गए हैं । उनका कहना है कि युद्ध दूरदर्शिता एवं युद्ध कौशल से लड़े जाते लावल उत्साह एवं उद्वेग पर्याप्त नहीं है । तत्परता एवं शौर्य की सार्थकता युद्ध की व्यूहरचना निर्भर करती है । अतः वह लहना सिंह को धैर्यपूर्ण उच्चाधिकारियों के आदेश को प्रतीक्षा करने का परामर्श देते हैं । इस प्रकार इन सारगर्भित पंक्तियों में एक सार्थक संदेश सन्निहित है । युद्ध में शत्रु पर विजय पाने के लिए जितना शौर्य , पराक्रम एवं साहस आवश्यक है , उसकी व्यूह रचना , युद्ध कौशल एवं अनुशासन उतना ही आवश्यक है । अपने वरीय सैन्य अधिकारियों के आदेश का निष्ठापूर्ण पालन ही युद्ध में विजयी बनाता है । 

3. निम्नांकित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए 

मृत्यु के समय............ पर से हट जाती हैं।
प्रस्तुत पंक्तियां हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग-2 के उसने कहा था  शीर्षक कहानी से उद्धृत हैं । इसके कहानीकार ( लेखक ) पं ० चन्द्रधर शर्मा गुलेरी हैं  उत्तर - प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य - पुस्तक दिगंत , भाग -2 के ‘ उसने कहा था ' शीर्षक प्रस्तुत पंक्तियों में मानव - जीवन की प्रवृत्तियों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण अत्यन्त सफलतापूर्वक किया गया है । विद्वान लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि मृत्यु के कुछ समय पूर्व मानव को स्मरण - शक्ति अत्यन्त स्पष्ट हो जाती है । उसे अपने विगत जीवन की समस्त घटनाओं की स्मृति सहज हो जाती है । अतीत के चित्र उसके नेत्र के सामने चलचित्र की भाँति नाचने लगते हैं । उस पर जमी हुई समय की धुन्ध हट जाती है तथा वह उन्हें सहज ढंग से देख एवं अनुभव कर सकता है । गुलेरी ने उक्त तथ्य इस संदर्भ में प्रस्तुत किए हैं , लहना सिंह युद्ध क्षेत्र में गोलीबारी से घायल होकर चिन्तनीय स्थिति में लेटा हुआ है । उस समय अपने बीते दिनों की स्मृतियाँ उसके मानस - पटल को झकझोरने लगती हैं । वह उद्विग्न हो उठता है तथा पास में बैठे बीरा सिंह को सारी बातें कहना प्रारम्भ करता है । विद्वान लेखक श्री गुलेरी ने उक्त बातें इसी संदर्भ में वर्णित की है । इस प्रकार प्रस्तुत पंक्तियों में मृत्यु के समय में मानव - मन की स्वाभाविक प्रक्रिया का वर्णन है । कथन के अनुसार जमादार लहना सिंह मृत्यु - शैय्या पर अपने जीवन की अंतिम घड़ियाँ गिन रहा है , उस समय उसे विगत की सम्पूर्ण बातें याद आने लगती हैं जो इतनी स्पष्ट हैं कि इससे पहले उसे कभी ऐसी अनुभूति नहीं हुई थी । अतः लेखक की यह मनोवैज्ञानिक सोच है कि मृत्यु निकट आने पर प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन के अतीत के क्षण साकार एवं स्पष्ट परिलक्षित हो जाते हैं । 
4.निम्न गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए सरकार ने बहादुरी का खिताब दिया है .......... के साथ चली जाती ।
 उत्तर - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक " दिगंत भाग -2 ' की पं ० चन्द्रधर शर्मा गुलेरी लिखित भावपूर्ण कहानी " उसने कहा था " से संकलित है। उपर्युक्त पंक्तियों में सेना में कार्यरत एक सूबेदार हजारा सिंह की पत्नी की भावनाओं को रेखांकित किया है । उसका पति विदेश में युद्ध के मैदान में जर्मन सेना से लड़ रहा है । वह अपने गृहनगर में गृहकार्य में व्यस्त है । किन्तु उसकी हार्दिक इच्छा है कि वह भी अपने पति के कार्य में योगदान करती । इसी संदर्भ में वह जमादार लहना सिंह से कहती है कि सरकार को महिलाओं की एक घुघरिया पलटन का गठन करना चाहिए था । इस प्रकार वह भी अपने सूबेदार पति को युद्धभूमि में सहयोग दे पाती । इन पंक्तियों में भारतीय महिलाओं के अदम्य साहस एवं वीरत्व का परिचय मिलता है । इसके साथ ही सरकार द्वारा उसके पति को उसकी बहादुरी के लिए लायलपुर में जमीन दिए जाने पर कृतज्ञता ज्ञापन करती है । इसे सरकार द्वारा प्रदत्त बहादुरी का खिताब मानकर अभिभूत है । भारतीय नारियों की सहज - स्वाभाविक अनुभूति का इन पंक्तियों में अभूतपूर्ण चित्रण है । 
 5. निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए " तेरी कुरमाई हो गई ? ...............कढ़ा हुआ सालू ।" 
उत्तर - प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग -2 की ' उसने कहा था ' शीर्षक कहानी से उद्धृत हैं । इसके लेखक चन्द्रधर शर्मा गुलेरी हैं । प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने छोटी आयु में बाल - सुलभ निष्कपटता तथा अल्हड़ प्रकृति की विशेषता का सफल प्रस्तुतीकरण किया है । बारह वर्ष का बालक लहना सिंह अपने ननिहाल में एक अजनबी आठ वर्षीया बालिका से , बाजार में मुलाकात होने पर पूछता है कि क्या उसकी सगाई हो गई है । उसकी यह जानने की उत्सुकता स्वाभाविक प्रतीत होती है । सम्भवतः उसके हृदय में उस बालिका के प्रति सहज अनुरक्ति की सलिल धारा प्रवाहित हो रही है । उसके साथ अधिकाधिक समय तक रहने की तीव्र उत्कण्ठा उसके हृदय को उद्वेलित कर रही है । इसीलिए वह उससे ऐसा प्रश्न करता है । बालिका भी सहज लज्जावश ' धत् ' कहते हुए चली जाती है । इस प्रकार कई बार मुलाकात होने पर चिढ़ाने के लिए वह उसी सवाल को दुहराता है । एकाध बार इस प्रश्न को सुनकर वह बालिका चिढ़कर कह देती है कि उसकी सगाई हो गई है तथा इसी कारण वह रेशमी साल ओढ़े हुए हैं । बालक लहना उसके इस अप्रत्याशित उत्तर से हतप्रभ , क्षुब्ध एवं चिन्तित हो जाता है । इससे उसके प्रति लहना के हृदय में अंकुरित होता स्नेह - भाव प्रकट होता है । इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक अपने उद्देश्य में पूर्णत : सफल हो गया है । नयी आयु के बालक - बालिकाओं का मनोवैज्ञानिक अध्ययन सटीक एवं सार्थक है ।
6. निम्नांकित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए ( क ) अब के हाड़ में यह आम खूब फलेगा । चाचा - भतीजा दोनों यहीं बैठकर आम खाना । जितना बड़ा तेरा भतीजा है उतना ही यह आम है । जिस महीने उसका जन्म हुआ था उसी महीने मैंने इसे लगाया था । " 
उत्तर - प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक दिगंत , भाग -2 की “ उसने कहा था " शीर्षक कहानी से उद्धृत हैं । इस गद्यांश के कहानीकार पं ० चन्द्रधर शर्मा गुलेरी हैं । ब्रिटिश - सेना में कार्यरत जमादार लहना सिंह द्वारा एक अन्य सैनिक वजीरा सिंह से उक्त बातें कही गई हैं। लहना सिंह युद्ध में घायल होकर मरणासन्न स्थिति में है । वजीरा सिंह उसकी सेवा - सुश्रुषा में लगा हुआ है । उस समय लहना सिंह की मन : स्थिति सामान्य नहीं है । विगत की स्मृतियाँ उसके मानस पटल पर अंकित हो रही हैं । उसे वह व्यक्त कर रहा है । कुछ अनर्गल बातें भी उसके मुंह से निकल रही हैं । सम्भवत : वह अपने बगीचे में लगाए आम के वृक्ष की चर्चा कर रहा है । वह वजीरा से कहता है कि इस वर्ष आम के वृक्ष में काफी आम फलेंगे । उसका आम का बगीचा , आम से भर जाएगा । वह तो जीवित नहीं रहेगा , किन्तु वजीरा अपने भतीजे के साथ बैठकर आम का रसास्वादन कर सकेगा । उसे अपने आम के वृक्ष की आयु भी याद आ रही है । इसीलिए वह कहता है कि जितना बड़ा तुम्हारा भतीजा (फकीरा) है उतना ही बड़ा वह आम का वृक्ष भी है । ऐसा प्रतीत होता है कि फकीरा के परिवार से लहना के गहरे सम्बन्ध हैं , इसीलिए वह आम के वृक्ष की आयु को फकीरा के भतीजा की आयु के बराबर बता रहा है । यह कथन उसकी असामान्य भनोदशा का भी परिणाम हो सकता है । 
 इस प्रकार विद्वान लेखक ने एक मरणासन्न व्यक्ति की मनोदशा का अत्यन्त स्वाभाविक चित्रण किया है । लहना सिंह की मानसिक - स्थिति वैसी ही हो गई है । तन के साथ मन भी आहत है । गुलेरीजी ने इसकी मनोवैज्ञानिक विवेचना बड़ी सफलता से किया है । 
( ख ) “ और अब घर जाओ तो कह देना कि मुझे जो उसने कहा था वह मैने कर से संकलित है । इसके लेखक पं ० चन्द्रधर शर्मा गुलेरी हैं । 
उत्तर - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक दिगंत , भाग -2 की ' उसने कहा था ' शीर्षक कहानी उपर्युक्त उद्धरण में उस समय का वर्णन है जब लहना सिंह मरणासन्न स्थिति में है , शत्रुओं की गोलियाँ शरीर में लगी हैं । उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया है । बीते हुए दिन की स्मृतियाँ उसे झकझोर रही हैं। ऐसी स्थिति में वह वजीरा सिंह से कहता है कि वह ( वजीरा ) जब घर जाएगा तो उस (सुबेदारनी) को कह देगा कि लहना सिंह को उसने जो कहा था , उसने ( लहना ) वह कर दिया अर्थात् उसने सूबेदार हजारा सिंह एवं उसके पुत्र बोधा सिंह के प्राणों की रक्षा अपने जीवन का बलिदान कर की है । उसने अपने बचन का पालन किया है । इस प्रकार विद्वान लेखक ने यहाँ पर लहना सिंह के उदात्त चरित्र का वर्णन किया है । लहना सिंह ने उच्च जीवन सिद्धान्तों के पालन का आदर्श प्रस्तुत किया है । उसका जीवन कर्त्तव्य परायणता , निष्ठा , उच्च नैतिक मूल्य तथा अपने वचन का पालन करने का एक अनुकरणीय उदाहरण है । 

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर वातलिपक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ
1. चन्द्रधर शर्मा ' गुलेरी ' की कहानी कौन - सी है? ( क ) जूठन
 ( ख ) रोज 
( ग ) उसने कहा था 
( घ ) तिरिछ            उत्तर- (ग) 
2. चन्द्रधर शर्मा ' गुलेरी ' जी का जन्म कब हुआ था ? 
( क ) 7 जुलाई 1883 ई ० 
( ख ) 10 मार्च 1880 ई ० 
( ग ) 11 जनवरी 1805 ई ० 
( घ ) 15 फरवरी 1875 ई ०   उत्तर- क
 3. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की वृत्ति क्या थी ?
 ( क ) व्यापार 
( ख ) खेती - बारी
 ( ग ) अध्यापन 
( घ ) सधुक्कड़ी         उत्तर-(ग)
4. गुलेरी जी ने किस पत्रिका का संपादन किया ? (क) गंगा
( ख ) माधुरी 
( ग ) समन्वय 
( घ ) समालोचक        उत्तर-(घ) 
5. काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका के गुलेरी जी क्या थे ? 
( क ) लेखक 
( ख ) कवि
 ( ग ) संपादक
 ( घ ) संचालक      उत्तर(ग)
6. गुलेरी जी की सर्वाधिक प्रसिद्ध कहानी कौन - सी है ?
 ( क ) सुखमय जीवन का काँटा
 ( ख ) उसने कहा था 
( ग) अन्य   उत्तर-(ख)
7. गुलेरी जी कैसी कविताएँ लिखते थे? 
( क ) देश - प्रेम संबंधी
 ( ख ) देश संबंधी
 ( ग ) हास्य - व्यंग्य 
( घ ) प्रकृति संबंधी       उत्तर- ( क ) 
8. गुलेरीजी किस - किस भाषा के जानकार थे ?
 ( क ) पंजाबी , मराठी 
( ख ) गुजराती - बंगाली
 ( ग ) हिन्दी , संस्कृत , अंग्रेजी
 ( घ ) असमी , तेलगू                उत्तर- ( ग ) 
9. गुलेरी जी ने प्रमुख रूप से कितनी कहानियाँ लिखी ? 
( क ) चार
 ( ग ) तीन                          उत्तर- ( ग ) 
10. किस कहानी ने गुलेरी जी को प्रसिद्धि दिलायी?
 ( क ) अफसाना 
( ख ) तराना 
( ग ) उसने कहा था 
( घ ) मेरी - तेरी बातें                उत्तर- ( ग )
 11. ' उसने कहा था ' कहानी पर किसने फिल्म बनायी थी ? 
( क ) पृथ्वी राज कपूर 
( ख ) राज कपूर 
( ग ) देवानंद
 ( घ ) विमल राय                   उत्तर- ( घ )
 12. गुलेरी जी की किस कहानी का नाट्य रूपांतर हुआ था ?
 ( क ) गंगा की गोद में
 ( ख ) दिल्ली की कहानी
 ( ग ) उसने कहा था 
( घ ) मन की बात                  उत्तर- ( ग )
 13. बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही , ऐसा कौन कहता है ? 
( क ) फिरंगी मेम
 ( ख ) होशियार सिंह
 ( ग ) लहना सिंह 
( घ ) जुगार सिंह                    उत्तर- ( ग ) 
14. " तुम राजा हो , मेरे मुल्क को बचाने आए हो " ये बात कौन कहती है ? 
( क ) स्कूल की शिक्षिका
 ( ख ) बनिया 
( ग ) फिरंगी मेम 
( घ ) लेखिका                       उत्तर- ( ग ) 
16. " सूबेदार जी , सच है " पर क्या करें ? हड्डियों में तो जाड़ा धंस गया है , किसने कहा ?
 ( क ) लेखक ने
 ( ख ) जर्मन सैनिक 
( ग ) लहना सिंह
 ( घ ) जगार सिंह 

प्रश्न 1. ' उसने कहा था ' कहानी कितने भागों में बँटी हुई है ? कहानी के कितने भागों में युद्ध का वर्णन है ? 
उत्तर- " उसने कहा था " कहानी पाँच भागों में विभक्त की गई है । इस पूरी कहानी में तीन भागों में युद्ध का वर्णन है । द्वितीय , तृतीय तथा चतुर्थ भाग में युद्ध के दृश्य हैं ।
 प्रश्न 2. कहानी के पात्रों की एक सूची तैयार करें ।  उत्तर - कहनी का मुख्य पात्र लहना सिंह है जिसके इर्द - गिर्द कहानी के घटनाक्रम घूम रहे हैं । उसके अतिरिक्त अन्य पात्र निम्नलिखित हैं 
( 1 ) एक बालिका - जिसकी भेंट कभी किशोरावस्था में लहना सिंह से हुई थी तथा कालान्तर में उसका विवाह सूबेदार हजारा सिंह के साथ हुआ । 
( 2 ) लहना सिंह - कहानी का मुख्य पात्र । 
( 3 ) हजारा सिंह - सुबेदार । 
( 4 ) बोधा सिंह - हजारा सिंह का पुत्र । 
( 5 ) लपटन साहब - सेना का एक उच्च अधिकारी । 
( 6 ) वजीरा सिंह - एक सैनिक ।

प्रश्न 3. लहना सिंह का परिचय अपने शब्दों में दें  उत्तर - लहना सिंह ब्रिटिश सेना का एक सिक्ख जमादार है । वह भारत से दूर विदेश ( फ्रांस ) में जर्मन सेना के विरुद्ध युद्ध करने के लिए भेजा गया है । वह एक कर्तव्यनिष्ठ सैनिक है । अदम्य साहस , शौर्य एवं निष्ठा से युक्त वह युद्ध के मोर्चे पर डटा हुआ है । विषम परिस्थितियों में भी कभी वह हतोत्साहित नहीं होता । अपने प्राणों की परवाह किए बिना वह युद्धभूमि में खंदकों में रात - दिन पूर्ण तन्मयता के साथ कार्यरत रहता है । कई दिनों तक खंदक में बैठकर निगरानी करते हुए जब वह ऊब जाता है तो एक दिन वह अपने सूबेदार से कहता है कि यहाँ के इस कार्य ( ड्यूटी ) से उसका मन भर गया है , ऐसी निष्क्रियता से वह अपनी क्षमता का प्रदर्शन नहीं कर पा रहा है । वह कहता है- “ मुझे तो संगीन चढ़ाकर मार्च का हुक्म मिल जाए , फिर सात जर्मन को अकेला मारकर न लौटूं तो मुझे दरबार साहब की देहली पर मत्था टेकना नसीब न हो । " उसके इन शब्दों में दृढ़ निश्चय एवं आत्मोसर्ग की भावना निहित है । वह शत्रु से लोहा लेने के लिए इतना ही उत्कंठित है कि उसका कथन इन शब्दों में प्रकट होता है .- " बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही । " शत्रु की हर चाल को विफल करने की अपूर्व क्षमता एवं दूरदर्शिता उसमें थी । उसक जीवन का एक दूसरा पहलू भी है उसकी मानवीय संवेदना , वचनबद्धता तथा प्रेम । अपनी किशोरावस्था में एक बालिका के प्रति उसका अव्यक्त प्रेम था । कालान्तर में वह सेना में भर्ती हो गया तथा संयोगवश उसे यह ज्ञात हुआ कि वह बालिका अब सूबेदार की पत्नी है , उससे भेंट होने पर सूबेदार की पत्नी ने अपने पति एवं फौज में भर्ती अपने एकमात्र पुत्र की रक्षा का वचन लहना सिंह से लिया जिसका पालन लहना सिंह ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर किया । यह उसकी कर्तव्यपरायणता तथा वचन का पालन करने का उत्कृष्ट उदाहरण है । 
प्रश्न 4. पाठ में लहना और सूबेदारनी के संवादों को एकत्र करें । 
उत्तर - लहना सिंह सात दिन की छुट्टी लेकर घर आया हुआ था । सूबेदार के आग्रह पर वह लौटते समय सूबेदार के यहाँ होते हुए आया । सूबेदार की पत्नी ने उसे पहचान लिया । सत्ताइस साल पहले बारह वर्ष की आयु में लहना की भेंट एक आठ वर्ष की बालिका ( अब सूबेदार की पत्नी ) से अपने मामा के यहाँ भेंट हुई थी । आज वह सूबेदार की पत्नी है । उसी समय सूबेदार की पत्नी कहती है- " मैंने तेरे को पहचान लिया । एक काम कहती हूँ । मेरे तो भाग फूट गए । एक बेटा है । फौज में भरती हुए उसे एक ही वर्ष हुआ । अब दोनों ( सूबेदार और उसका पुत्र ) जाते हैं , मेरे भाग । तुम्हें याद है एक दिन टाँगेवाले का घोड़ा दही वाले की दुकान के पास बिगड़ गया था । तुमने उस दिन मेरे प्राण बचाए थे । आप घोड़े की लातों में चले गए थे और मुझे उठाकर दूकान के तख्ते पर खड़ा कर दिया था । ऐसे ही इन दोनों को बचाना । यह मेरी भिक्षा है । तुम्हारे आगे मैं आँचल पसारती हूँ । " सूबेदारनी तथा लहना दोनों की आँखों में आँसू आ गए । " लहना ने उसकी मौन - स्वीकृति आँसुओं में ही दे दी तथा अपने प्राणों की बलि देकर अपने प्रण का पालन किया । प्रश्न 5. " कल , देखते नहीं यह रेशम से कढ़ा हुआ सालू " । यह सुनते ही लहना की क्या प्रतिक्रिया हुई ? 
उत्तर - लहना को जब उस बालिका ने उपर्युक्त बातें कहीं तो लहना दु : ख तथा क्रोध की मिश्रित प्रतिक्रिया से उत्तेजित हो गया । उसने उसका कोई उत्तर नहीं दिया । किन्तु भावावेश में रास्ते में एक लड़के को नाली में ढकेल दिया , एक ठेलेवाले के ठेले को उलट दिया । इस प्रकार उसने एक गोभी वाले ठेले को भी हानि पहुँचाई । महिला जो नहाकर पूजा करने जा रही थी , उससे - टकरा गया । लहना की इस प्रतिक्रिया की पृष्ठभूमि में उसका उस बालिका के प्रति एक अव्यक्त एवं सच्चा प्रेम था , उस बालिका द्वारा उक्त कथन से लहना को अपना सपना बिखरता नजर आया ।

प्रश्न 6. “ जाड़ा क्या है , मौत है और निमोनिया से परनेवालों को मुरब्बे नहीं मिला करते । " वजीरा सिंह के इस कथन का क्या आशय है ? 
उत्तर - वजीरा सिंह जो पलटन का विदूषक है लहना सिंह को कहता है कि अपने स्वास्थ्य की रक्षा करो । जाड़ा की ठंढ मौत का कारण बन सकती है । मरने के बाद तुम्हें कुछ प्राप्त होनेवाला नहीं है । यदि निमोनिया से तुम्हारी मृत्यु हो जाती है तो तुम्हें कोई मुरब्बा अथवा अन्य स्वादिष्ट वस्तुएँ नहीं मिलेंगी । जीवन का सुख फिर नहीं मिलेगा । साथ ही तुम अपने अस्तित्व को इस प्रकार समाप्त कर दोगे , अर्थात् मृत्यु ही अन्तिम सच्चाई है । प्रश्न 7. " कहती है , तुम राजा हो , मेरे मुल्क को बचाने आए हो । " वजीरा के इस कथन में किसकी ओर संकेत है ? 
उत्तर - यह कथन उस देश ( सम्भवतः फ्रांस ) की एक महिला का है । उसके बंगले के बगीचे में जब वजीरा सिंह अथवा उसके अन्य साथी जाते हैं तो वहाँ की मालकिन उक्त महिला इन लोगों को फल , दूध तथा अन्य भोज्य - पदार्थ बहुत प्रसन्न होकर देती है तथा उसके लिए उनसे पैसे नहीं लेती है । उसे इस बात की प्रसन्नता है कि उक्त सैनिक इसके देश को जर्मन हमलावरों से रक्षा करने के लिए आए हुए हैं । अतः वह उन सैनिकों को अपना रक्षक मानकर उनका स्वागत - सत्कार करने को तत्पर रहती है । 
प्रश्न 8. लहना के गाँव में आया तुर्की मौलवी क्या कहता है ?
 उत्तर - लहना के गाँव में एक तुर्की मौलवी पहुँचकर वहाँ के लोगों को प्रलोभित करता है । वह उनलोगों को मीठी - मीठी बातों से भुलावे में डालने का प्रयास करता है । वह गाँववालों को कहता है कि जब जर्मन शासन आएगा तो तुमलोगों के सारे कष्ट दूर हो जाएँगे । तुमलोग सुख - चैन की वंशी बजाओगे । तुम्हारी सारी आवश्यकताएँ पूरी हो जाएंगी । 
प्रश्न 9. " लहना सिंह का दायित्व - बोध और उसकी बुद्धि दोनों ही स्पृहणीय है ? " इस कथन की पुष्टि करें ।
 उत्तर - वस्तुतः लहना सिंह अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करने की अपूर्व इच्छाशक्ति रखता था । उसमें अनेक गुणों का समावेश था । सेना भरती होने के बाद वह अपने दायित्वों के प्रति सदैव जागरूक रहा । जो भी कार्य उसे दिए गए , उसने पूर्ण निष्ठा एवं तन्मयता से उसे सम्पादित किया । उसने सूबेदार की पत्नी को दिए हुए वचन के पालन के लिए अपने प्राणों को भी न्योछावर कर दिया । उसकी बुद्धि प्रखर थी । किसी विषय की वास्तविकता की तह तक जाकर ही दम लेता था । इसका प्रमाण एक घटना से मिलता है । प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मन सेना से मोर्चा लेने के क्रम में वह एक खंदक में कुछ अन्य सैनिक सहित तैनात था । जर्मन सेना का एक उच्चाधिकारी लहना सिंह के वरीय अधिकारी का छद्मवेष बनाकर उसके पास आता है और उसे वहाँ के कुछ सैनिकों को आगे भेजने का आदेश देता है जिसका अर्थ है जर्मन फौज का वहाँ आक्रमण करना । किन्तु अपनी कुशाग्रबुद्धि से एक बहुत बड़े खतरे से अपनी सैन्य - टुकड़ी को बचा लेता है तथा उस शत्रुपक्ष के नकली अफसर को वहीं मार गिराता है । इस प्रकार लहना सिंह में दायित्व बोध तथा बुद्धि का अपूर्व संगम था । उसके उपर्युक्त गुण प्रशंसनीय ही नहीं वरन् अनुकरणीय भी हैं ।