परंपरा का मूल्यांकन ( रामविलास शर्मा)

पाठ के साथ 1. परम्परा का ज्ञान किनके लिए सबसे ज्यादा आवश्यक है और क्यों ? उत्तर - जो लोग साहित्य में युग - परिवर्तन करना चाहते हैं , जो लोग लकीर के फकीर नहीं बनकर रूढ़ियाँ तोड़कर , क्रांतिकारी - साहित्य की रचना चाहते हैं , उनके लिए परम्परा का ज्ञान आवश्यक है । क्योंकि परम्परा के ज्ञान से प्रगतिशील आलोचना का विकास होता है । अर्थात् प्रगतिशील आलोचना साहित्य परम्परों का मूर्त ज्ञान है । 
2. परंपरा के मूल्यांकन में साहित्य के वर्गीय आधार का विवेक लेखक क्यों महत्वपूर्ण मानता है ?
 उत्तर - परंपरा के मूल्यांकन में साहित्य के वर्गीय आधार का विवेक लेखक महत्वपूर्ण मानता है । क्योंकि साहित्य की परंपरा का मूल्यांकन हेतु प्रथम उस साहित्य का मूल्य निर्धारण आवश्यक है जो शोषक वर्गों के विरुद्ध श्रमिक जनता के हितों को प्रतिबिम्बित करता है । उस साहित्य पर ध्यान देना होगा जिसकी रचना का बुनियाद शोषित जनता के श्रम पर है तथा यह भी देखना होगा कि वह साहित्य वर्तमान समय में लोगों के लिए कहाँ तक उपयोगी है । क्या वह अभ्युदयशील वर्ग का साहित्य है या हासमान वर्ग का ।
3. साहित्य का कौन - सा पक्ष अपवाक्त स्थाई होता है ? इस संबंध में लेखक की राय स्पष्ट करें । 
उत्तर - साहित्य मनुष्यक सम्पूर्ण जीवन से संबद्ध है । आर्थिक जीवन के अलावा मनुष्य एक प्राणी  रूप में भी जीवन बिताता है । साहित्य में मनुष्य बहुत - सी आदिम भावनाएँ प्रतिफलित होती है जो इन्द्रिय - बोध , उसकी भावनाएं भी व्यजित होती है । साहित्य का यह पस अपेक्षाकृत स्थाई होता है ।  
 4. " साहित्य में विकास प्रक्रिया उसी तरह संपन्न नहीं होती , जैसे समाज में लेखक का।" आशय स्पष्ट करें। उत्तर - साहित्य में विकास प्रक्रिया उसी तरह सम्पन नहीं होती जैसे समाज में । लेखक के कहने का आशय है कि जैसे समाज में विकास की प्रक्रिया सम्पन नहीं होती है उसी प्रकार साहित्य क्षेत्र में भी विकास प्रक्रिया पूरी नहीं होती । जब हम साहित्य को विकास प्रक्रिया को सम्पन्न , परिपूर्ण दोष रहित मान लेंगे तो फिर कोई कवि ही नहीं होगा तथा साहित्य का विकास भी नहीं होगा । विकासशील समाज में विकास प्रक्रिया कभी सम्पन नहीं होती है उसी प्रकार साहित्य की विकास प्रक्रिया चलती रहेगी । साहित्य में भी विकास प्रक्रिया सम्पन्न नहीं होती अर्थात् जैसे - जैसे समाज विकास करेगा वैसे वैसे साहित्य की विकास प्रक्रिया चलती रहेगी
5. लेखक मानव चेतना को आर्थिक संबंधों से प्रभावित मानते हुए भी उसकी सापेक्ष स्वाधीनता किन दृष्टांतों द्वारा प्रमाणित करता है ? 
उत्तर - लेखक मानव चेतना को आर्थिक सम्बन्धों से प्रभावित मानते हुए भी उसकी सापेक्ष स्वाधीनता स्वीकार करता है क्योंकि आर्थिक संबंधों से प्रभावित होना एक परिस्थिति है । उस परिस्थितिवश स्वाधीन भाव का त्याग करना अनिवार्य नहीं । लेखक इस पक्ष में दृष्टांत देता है कि अमेरिका और एथेन्स दोनों गुलाम थे लेकिन एथेन्स की सभ्यता ने सारे यूरोप को प्रभावित किया , अमेरिका नहीं । उसी प्रकार सामन्तवाद दुनियाभर में कायम रहा लेकिन भारत और ईरान दो ही काव्य के केन्द्र थे ।
 6. साहित्य के निर्माण में प्रतिभा की भूमिका स्वीकार करते हुए लेखक किन खतरों से आगाह करता है । उत्तर- साहित्य निर्माण में प्रतिभाशालियों की भूमिका लेखक स्वीकार करता है क्योंकि साहित्य निर्माण में उनकी भूमिका अद्वितीय और निर्णायक है लेकिन इस स्वीकारात्मक पक्ष में खतरा भी है , क्योंकि प्रतिभाशाली मनुष्य की कृति ( साहित्य ) में दोष नहीं होता , हम दावा नहीं कर सकते । कला का निर्दोष होना भी एक दोष है । जबतक कला में दोष नहीं होगा जिसे हम अद्वितीय कला कहते हैं उस कला के पक्ष में अन्य प्रतिभाशालियों का उल्लेखनीय कार्य सम्भव नहीं हो सकता है । 
7. राजनीतिक मूल्यों से साहित्य के मूल्य अधिक स्थायी कैसे होते हैं ? 
उत्तर - राजनीतिक मूल्यों से साहित्य के मूल्य अधिक स्थाई होता है । इस पक्ष में लेखक कहते हैं कि अंग्रेज कवि टेनीसन ने लैटिन कवि वर्जिल पर एक कविता में लिखा कि रोमन साम्राज्य का वैभव समाप्त हो गया पर वर्जिल के काव्य सागर की प्वनि - तरंगें हमें आज भी सुनाई देती हैं और हृदय को आनन्द विहल कर देती है । उसी प्रकार जब किसी साम्राज्य का राजनैतिक मूल्य समाप्त हो जाएगा तो वहाँ के कवि , साहित्यकार संस्कृति के आकाश में चमकते नजर आएंगे तथा उनका प्रकाश पूर्व की अपेक्षा करोड़ों लोगों को नई दिशाएँ देंगी । 
8. जातीय अस्मिता का लेखक किस प्रसंग में उल्लेख करता है और उसका क्या महत्व बताता है ? उत्तर - जातीय अस्मिता का उल्लेख लेखक साहित्य के विकास प्रसंग में करता है । उसके महत्व को बताने के लिए लेखक का कहना है कि साहित्य के विकास में प्रतिभाशाली मनुष्यों की तरह जन समुदायों और जातियों की विशेष भूमिका होती है क्योंकि यूरोप के सांस्कृतिक विकास में जो भूमिका प्राचीन यूनानियों की है वह अन्य किसी जाति की नहीं । 
9. जातीय और राष्ट्रीय अस्मिताओंके स्वरूप का अंतर करते हुए लेखक देनों में क्या समानता बताता है ? 
. उत्तर - जातीय और राष्ट्रीय अस्मिताओं के स्वरूप का अन्तर बताते हुए लेखक ने कहा है कि किसी भी राष्ट्र में अनेक जातियाँ रहते हैं और उनको अस्मिताएं भी अनेक होती है । परन्तु एक राष्ट्र की एक अस्मिता होती है । परन्तु जिस समय किसी राष्ट्र पर मुसीबत आती है तो जातियों को अस्मिता को गौण कर विविध जातियों में केवल राष्ट्र की अस्मिता प्रधान हो जाती है । लेकिन दोनों में समानता भी है क्योंकि जातीय अस्मिता हो राष्ट्रीय अस्मिता के रूप में बड़ा बन जाता है अथवा राष्ट्रीय अस्मिता जातोप अस्मिताओं को आत्मसात कर वृहद् रूप धारण कर मुसीवत से रक्षा करने में सहायक सिद्ध होता है । 
10. बहुजातीय राष्ट्र की हैसियत से कोई भी देश भारत का मुकाबला क्यों नहीं कर सकता ?
 उत्तर - बहुजातीय राष्ट्र अनेक है । सोवियत संघ में सबसे अधिक जातियाँ शामिल हैं परन्तु उनका इतिहास मिला - जुला राष्ट्रीय इतिहास नहीं है । जैसा कि भारतीय जातियों का राष्ट्रीय इतिहास एक है । यूरोप के लोग यूरोपियन संस्कृति की बात करते हैं पर यूरोप कभी राष्ट्र नहीं बना बल्कि दो भागों में विभक्त होकर राष्ट्रीयता को विभाजित कर डाला । बहुजातीय राष्ट्र की हैसियत से भारत का मुकाबला कोई राष्ट्र नहीं कर सकता है । 
11. भारत की बहुजातीयता मुख्यतः संस्कृति और इतिहास की देन है । कैसे ?
 उत्तर - भारत की बहुजातीयता मुख्यतः संस्कृति और इतिहास की देन है क्योंकि यहाँ की राष्ट्रीयता , एक जाति द्वारा दूसरी जातियों पर राजनीतिक प्रभुत्व कायम करके स्थापित नहीं हुई है । बल्कि हमारी राष्ट्रीयता बहुजातियों को अपने में पिरोकर अद्वितीय माना जाता है । 
12. किस तरह समाजवाद हमारी राष्ट्रीय आवश्यकता है? इस प्रसंग में लेखक के विचारों पर प्रकाश डालें । उत्तर - आज समाजवाद हमारी राष्ट्रीय आवश्यकता है । लेखक के विचार से यदि समाजवादी व्यवस्था कायम होने पर जारशाही रूस नवीन राष्ट्र के रूप में पुनर्गठित हो सकता है तो भारत में समाजवादी व्यवस्था कायम होने पर यहाँ की राष्ट्रीय अस्मिता पहले से कितना पुष्ट होगी , इसकी कल्पना की जा सकती है । देश के साधनों का सदुपयोग समाजवादी व्यवस्था में ही संभव है । छोटे - बड़े राष्ट्र जो भारत से ज्यादा पिछड़े थे , समाजवादी व्यवस्था कायम करने के बाद पहले की अपेक्षा कहीं ज्यादा शक्तिशाली हो गये । भारत की राष्ट्रीय क्षमता का पूर्ण विकास समाजवादी व्यवस्था से ही सम्भव है ।
 13. निबंध का समापन करते हुए लेखक कैसा स्वप्न देखता है ? उसे साकार करने में परंपरा की क्या भूमिका हो सकती है ? 
उत्तर - लेखक निबंध का समापन करते हुए उस दिन का स्वज देखता है जब देश में समाजवादी व्यवस्था कायम होगी । उस दिन अधिक - से - अधिक लोग साक्षर होंगे । तब वे साहित्यकारों की रचना को पढ़ेंगे । जब पढ़ेंगे तो उस साहित्य से उनका पूरा परिचय होगा और सही अर्थ में साहित्य परम्परा का मूल्यांकन कर पाएंगे । 
14. साहित्य सापेक्ष रूप में स्वाधीन होता है । इस मत को प्रमाणित करने के लिए लेखक ने कौन - से तर्क और प्रमाण उपस्थित किए हैं ? उत्तर - साहित्य साक्षेप रूप में स्वाधीन होता है जबकि परिस्थितिवश जातियाँ पराधीन होती हैं । इस मत को प्रमाणित करने के लिए लेखक ने प्रमाण उपस्थित करते हुए कहा है कि अमेरिका और एथेन्स दोनों गुलाम हुए लेकिन एथेन्स का साहित्य सम्पूर्ण एथेन्स को प्रभावित किया न कि अमेरिका साहित्य ।
 15. व्याख्या करें 
विभाजित बंगाल से विभाजित पंजाब की तुलना कीजिए तो ज्ञात हो जाएगा कि साहित्य की परम्परा का ज्ञान कहाँ ज्यादा है , कहाँ कम है और इस न्यूनाधिक ज्ञान के सामाजिक परिणाम क्या होते हैं । उत्तर - परन्तु पक्तियाँ हमारे पाठ्य पुस्तक गोधूली भाग -2 के गद्य खण्ड " परम्परा का मूल्यांकन " पाठ से ली गयी हैं जिसके लेखक राम विलास शर्मा जी हैं । निबंध संदर्भ में लेखक का मत है कि मानव समाज बदलता है और अपनी पुरानी अस्मिता कायम रखता है। जो तत्व मानव समुदाय को एक जाति के रूप में संगठित करते हैं उनमें इतिहास और सांस्कृतिक परंपरा के आधार पर निर्मित यह अस्मिता का ज्ञान अत्यन्त महत्वपूर्ण है । बंगाल विभाजित होकर भी बंगाल के लोगों ने अपनी साहित्यिक परंपरा का ज्ञान अविभाजित रखे हुए हैं । लेकिन पंजाब विभाजन के बाद दोनों का अलग - अलग साहित्यिक परंपरा बनी । अत : विभाजित , बंगाल से विभाजित पंजाब की तुलना की जाय तो ज्ञान हो जायगा कि साहित्य परम्परा का ज्ञान कहाँ कम और कहाँ ज्यादा है ? इस न्यूनाधिक ज्ञान के सामाजिक परिणाम क्या होते हैं ।