( प्रेम का मार्ग अति सरल है । )
पद - परिचय – इस सवैये में प्रेम के मार्ग को सरल बताते हुए कहा है कि इसमें कोई खर्च नहीं लेकिन सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है ।
भावार्थ - प्रेम का मार्ग अत्यन्त सरल मार्ग है । जिस मार्ग में चतुराई का टेढ़ी चाल की कोई जगह नहीं है । इस मार्ग में सच्चाई का भी अभिमान ठिठक जाता है । इसमें कपटी लोग अपना स्थान नहीं बना पाते हैं । घनानन्द का कहना है कि हे प्यारे सज्जन , इस मार्ग के समान दूसरा कोई मार्ग नहीं है । इस मार्ग का अनुकरण करने वाले का कोई खर्च नहीं लेकिन प्राप्ति सब कुछ हो जाती है ।
मो अँसुवानिहिं लै बरसौ ।
(मेरे आँसुओं को ही लेकर बरस जाओ ।)
पद परिचय - इस सवैये में कवि घनानंद ने मेघ को परोपकारी बताकर आग्रह करता है कि मेरे हृदय की पीड़ा को सज्जन लोगों के घर तक पहुँचा दो।
भावार्थ - हे मेघ ! परजन्य नाम तुम्हारा सही है क्योंकि परोपकार के लिए ही देह धारण कर घूमते हो । समुद्र जल को भी तुम अमृत जैसा बनाकर अपने रसयुक्त घनानंद का कहना है कि तुम जीवनदायक हो , कुछ मेरे हृदय की पीड़ा को भी स्पर्श करो । हे विश्वासी किसी भी समय मैरी पीड़ारूपी आँसुओं को लेकर सज्जन लोगों के आँगन में बरस जाओ ।
बाध और अभ्यास
कविता के साथ
1. कवि प्रेम मार्ग को “ अति सूधो " क्यों कहता है ? इस मार्ग की विशेषता क्या है ?
उत्तर - कवि प्रेम मार्ग को अति सूधो ( अत्यन्त शुद्ध सरल ) इसलिए कहा है क्योंकि इस मार्ग पर चलकर मनुष्य बिना खर्च किये हुए सब कुछ पा सकता है । इस मार्ग की विशेषता है कि इस मार्ग में सत्य का भी स्वाभिमान समाप्त हो जाता है तथा चतुराई का भी इस मार्ग में कोई स्थान नहीं रहता है ।
2 . " मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं " से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर — ' मन लेहु पै देह छटाँक नहीं " से कवि घनानंद का अभिप्राय यह है कि " प्रेम मार्ग " ऐसा मार्ग है जिस पर चलने वाले पथिक को कोई खर्च नहीं लेकिन प्राप्ति सब कुछ किया जा सकता है । यहाँ मन ( 40 किलो ) और छटॉक ( कनमा ) जो उस समय मन माप का सबसे बड़ा और छटाँक सबसे छोटा परिमाण माना जाता था ।
3. द्वितीय छंद किसे संबोधित है और क्यों ?
उत्तर - द्वितीय छंद में मेघ को संबोधित किया गया है क्योंकि परजन्य परोपकार हेतु जो जन्म लिया हो कहलाकर मेघ अपने नाम की यथार्थता साबित करने के लिए परोपकार के लिए घूम - घूमकर कर बरसता 4. परहित के लिए ही देह कौन धारण करता है ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर — परहित के लिए ही देह मेघ धारण करता है । मेघ परोपकारी होता है । घूम - घूमकर लोक हित के लिए बरसता है । इसलिए मेघ का एक नाम " परजन्य ' भी है ।
5. कवि कहाँ अपने आँसुओं को पहुँचाना चाहते हैं और क्यों ?
उत्तर - कवि अपने आँसुओं को सज्जन लोगों के आँगन तक पहुँचाना चाहता है क्योंक्ति सज्जन जन ही कवि को पीड़ा का अनुभव कर सकते हैं , कोई दुष्ट नहीं । इसीलिए कवि की आकांक्षा है कि मेरी पीड़ा सज्जन के आंगन तक पहुँचाकर परोपकारी मेघ मेरी पीड़ा को कम करने में मदद देगा ।
6. व्याख्या करें—
( क ) यहाँ एक तैं दूसरौं आँक नहीं ।
उत्तर – प्रस्तुत सवैये का अंश हमारे पाठ्यपुस्तक ' ' गोधूली " भाग -2 के काव्य ( पद्य ) खण्ड के " अति सूधो स्नेह को मारग है " पद से लिया गया है जिसके रचयिता घनानंद हैं । इस पद में कवि ने " प्रेम मार्ग " को सुगम सरल , पवित्र कहते हुए कहा है कि यहाँ एक तैं दूसरौ आँक नहीं । 1 - अर्थात् प्रेम मार्ग के समान कोई दूसरा मार्ग नहीं है । प्रेम मार्ग ही अद्वितीय मार्ग है ।
( ख ) कछू मेरियो पीर हिए परसौ ।
उत्तर — प्रस्तुत सवैये का अंश हमारे पाठ्यपुस्तक ' ' गोधूली ' ' भाग -2 के काव्य ( पद्य ) खण्ड के " मो अँसुवानिहिं लै बरसौ ' पद से लिया गया है जिसके रचयिता प्रेममार्गी कवि ' घनानंद ' है । कवि ने इस पुद में मेघ को परोपकारी कहते हुए मेघ से कवि के आँसुओं को परोपकार हेतु लेकर मेघ हमारे हृदय की पीड़ा को भी अपने स्पर्श से सुखकारी बना देगा । क्योंकि मेघ का कार्य ही है दूसरों को सुख पहुँचाना ।