हमारी नींद (वीरेन डंगवाल)



 कविता परिचय — मनुष्य आराम पसंद , सुविधाभोगी जीवन जीने के कारण बेपरवाह जीवन हो जाता है । लेकिन जीवन मनुष्य के बेपरवाही का परवाह नहीं कर विपरीत परिस्थिति से लगातार लड़ते हुए बढ़ते रहता है । प्रस्तुत कविता इसी बात का चित्रण करता है तथा यह कविता " दुष्चक्र में स्रष्ट " से संकलित किया गया है । 

भावार्थ - जैसे नींद के दौरान कुछ इंच छोटे - छोटे पौधे बढ़ जाते हैं । उसी प्रकार मनुष्य के बेपरवाही में भी जीवन आगे बढ़ जाता है । जैसे अंकुर अपने नाममात्र कोमल सींग से बीज के भीतर फूली हुई छत को भीतर से धकेलना शुरू करता है । उसी प्रकार मानव जीवन परिस्थितियों से लड़कर आगे बढ़ने का प्रयास करता है । एक मक्खी के जीवन क्रम में अनेक शिशु पैदा होते हैं , उनमें से कुछ मर भी जाते हैं - दंगे , आगजनी और बमबारी में । उसी प्रकार मानव जीवन क्रम में अनेक आकांक्षाएँ उत्पन्न होती हैं और उनमें से कुछ आकांक्षाएँ परिस्थितिवश स्वयं समाप्त हो जाते हैं तो कुछ पूरे भी होते हैं । मनुष्य की लापरवाही के बावजूद । जैसे गरीब बस्तियों में भी जोरदार तरीके से लाउडस्पीकर पर देवी जागरण होता है । अर्थात् ग्रामीण परिवेश में भी लोगों ने आराम , सुविधा और लापरवाहीयुक्त जीवन जीना आरम्भ कर दिया है । यानी साधन तो सभी जुटा लिए हैं अत्याचारियों ने अर्थात् विभिन्न लापरवाही से जीवन घिर जाता है । मगर यह जीवन भी हठीला की भाँति आगे बढ़ता जाता है बिना लापरवाही का परवाह किये बिना ही । आरामतलब और लापरवाही जीवन मनुष्य को आगे बढ़ने में परेशानी लाता है यह जानकर भी मनुष्य उसे जीवन बाधकों को इन्कार नहीं करना चाहते हैं ।

1 . कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि एक बिम्ब की रचना करता है । उसे स्पष्ट कीजिए । उत्तर - कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि ने एक बिम्ब की रचना करते हुए कहा है कि मानव जीवन एक बीज के समान है । जैसे बीज में अंकुरण का गुण होता है उसी प्रकार मानव जीवन में भी आगे बढ़ने का गुण प्रकृति प्रदत्त है । बीज का अंकुरण अनुकूलन बीज के परतों को चीड़कर निकल जाता है । उसी प्रकार मानव जीवन के आगे बढ़ते गुण परिस्थितियों के घेरे को तोड़कर आगे बढ़ जाता है ।

2. मक्खी के जीवन - क्रम का कवि द्वारा उल्लेख किए जाने का क्या आशय है ? 
उत्तर -- मक्खी के जीवन - क्रम का कवि द्वारा उल्लेख किए जाने का आशय है कि मानव जौवन क्रम में अनगिनत आशाएँ और इच्छाओं की उत्पत्ति होती है । उनमें से कुछ आशाएँ और इच्छा परिस्थिति के प्रतिकूलन के कारण समाप्त भी हो जाते हैं । 
3. कवि गरीब बस्तियों का क्यों उल्लेख करता है ? उत्तर -कवि गरीब बस्तियों का उल्लेख इसलिए करता है कि ग्रामीण परिवेश के लोग भी अब आराम और सुविधायुक्त जीवन जीना आरम्भ कर दिये हैं जिससे जीवन लापरवाही का शिकार हो जाता है । 
4. कवि किन अत्याचारियों का और क्यों जिक्र करता है ? 
उत्तर — कवि के द्वारा जिन अत्याचारियों का जिक्र किया गया है । वे हैं - आराम , सुविधा और लापरवाही । क्योंकि मानव जीवन में जब उपरोक्त आराम आदि अत्याचारियों का प्रभाव बढ़ जाते हैं तो मानव जीवन जो विकासशील है विकास की धारा कुछ अंशों में अवश्य शिथिल पड़ती है । अर्थात् अगर मानव जीवन में आराम , सुविधा और लापरवाही को जगह नहीं दी जाय तो अवश्य मानव जीवन के विकास की गति में अनुरूपता रहेगी । 
5. इन्कार करना न भूलने वाले कौन हैं ? कवि का भाव स्पष्ट कीजिए ।
 उत्तर - इन्कार करना न भूलने वाले हैं — आरामपसंद लोग , साधनसम्पन्न लोग और लापरवाह लोग । कवि का भाव यह है कि सभी लोग जानते हैं कि , आराम , सुविधा और लापरवाही को जीवन में स्थान देने से बहुत - सी इच्छाएँ , आकांक्षाओं आदि परिस्थिति के प्रतिकूलन के कारण से विनष्ट हो जाता है । लेकिन मनुष्य भी क्या चीज है जो विषम परिस्थिति को उत्पन्न करने वाले आराम , सुविधा और लापरवाही को इन्कारता भूलते ही नहीं । 
6. कविता के शीर्षक की सार्थकता पर विचार कीजिए। उत्तर- " हमारी नींद " अर्थात् हमारी लापरवाही या आराम पसंद जीवन आगे बढ़ने में बाधक है । अर्थात् ये सब चीजें गतिशील जीवन की गति को शिथिल करता है । परन्तु हमारा जीवन विषम परिस्थिति उत्पन्न करने वाली हमारी नींद की परवाह बिना किये भी आगे बढ़ता ही जाता है । कविता में " हमारी नींद " यदि जीवन का अवरोधक है तो जीवन भी " हमारी नींद " से उत्पन्न बांधा का बिना परवाह किये आगे बढ़ता है । अत : इस कविता का शीर्षक " हमारी नींद " सार्थक है। 
व्याख्या करे— ( क ) गरीब बस्तियों में भी धमाके से हुआ देवी जागरण लाउडस्पीकर पर । उत्तर - प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक गोधूली भाग -2 के काव्य ( पद्य ) खण्ड के " हमारी नींद " शीर्षक कविता से लिया गया है जिसके रचयिता कवि वीरेन डंगवाल जी हैं । वर्तमान में मनुष्य आरामपसंद और साधनसम्पन्न होने के कारण बेपरवाह होते जा रहा है । यह बेपरवाही केवल शहर में ही नहीं धूम मचाता बल्कि गरीबों की बस्तियों में भी लोग आराम के संसाधन जुटाने की होड़ लगा दिये हैं । जिसके कारण ग्रामीण जीवन भी लापरवाही का शिकार हो गया है । मानो उनकी बस्तियों में भी लाउडस्पीकर पर देवी - जागरण करा दिया गया हो । 
( ख ) यानि साधन तो सभी जुटा लिए हैं अत्याचारियों ने । 
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्य पुस्तक " गोधूली " भाग -2 के काव्य खण्ड के " हमारी नोंद " शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता कवि " वीरेन डंगवाल " जी हैं जिसमें बताया गया है कि आरामपसंद और साधन सम्पन्न मानव जीवन की गति में शिथिलता लाता है जो नगर तक ही सीमत नहीं है बल्कि ग्रामीण परिवेश में भी मनुष्य आराम के संसाधन से युक्त होकर अपने जीवन को लापरवाह बना दिया है । यानि साधन तो सभी जुटा लिए हैं अत्याचारियों ने यहाँ पर अत्याचारियों का तात्पर्य आरामपसंद होना तथा साधन सम्पन्नता से है । अर्थात् आराम से जीवन जीना सभी चाहने लगे हैं । 
(ग ) हमारी नींद के बावजूद ।
 उत्तर - प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक “ गोधूली " भाग -2 काव्य खण्ड के " हमारी नोंद ' शीर्षक कविता से लिया गया है जिसके रचयिता कवि " वीरेन डंगवाल " जी हैं । डंगवाल जी ने इस कविता में बताया है कि मनुष्य आराम से जीना चाहता है जिसके कारण वह जीवन के अनेक समस्याओं के प्रति बेपरवाह हो जाता है । लेकिन मानव जीवन तो गतिशील है वह उन
बेरवाही का बिना परवाह किये हुए आगे बढ़ता जाता है ' हमरी नींद के बावजूद ' । अर्थात् गतिशील मानव जीवन हमारे द्वारा उत्पन्न किए गये विषम परिस्थिति के बावजूद आगे बढ़ता जाता है ।
 8. कविता में एक शब्द भी ऐसा नहीं है जिसका अर्थ जानने की कोशिश करनी पड़े । यह कविता की भाषा की शक्ति है या सीमा ? स्पष्ट कीजिए । 
उत्तर - किसी भी कविता में सरल शब्दों का प्रयोग करना भाषा की शक्ति नहीं बल्कि सीमा है । किसी भी कविता में या किसी भी भाषा की कविता में जटिल शब्दों की भी भाषा है लेकिन जब जटिलता की सीमा को पार कर सरल शब्द सीमा में रहकर हम कविता लिखते हैं तो सरल शब्दों का प्रयोग सीमा ही माना जाएगा ।