वर्षों , सदियों या हजारों साल की पराधीनता का अन्धकार समाप्त हो गया । आकाश का द्वार भी दहक जाता है जब जनता स्वतंत्रता का स्वप्न देखता है तो अन्धकार का भी वक्ष चीर देता है । भारत में विराट जनतंत्र की स्थापना हो गई है । 33 करोड जनता को सिंहासन मिलने वाला है जो जनता के हित में होगा । आज प्रजा का अभिषेक होगा । तैंतीस करोड़ जनता भारत का राजा बनेगा । कवि कहता है आज का देवता जनता होता है । जो मंदिर , राजमहल , तहखाना आदि में नहीं मिलते हैं वे रास्ते पर गिट्टी तोड़ते या खेत - खेलिहानों में मिलेगा । कुदाल और हल का शासन पर अधिकार होने वाला है जो धूसरित सोने से शृंगार सजा लेती है । जनतंत्र का समय आ गया । जनता को राह दो , समय के रथ का घर्घर की आवाज सुनो , सिंहासन खाली करो क्योंकि अब जनता स्वयं अपना सत्ता संभालने आ रही है ।
कविता के साथ
1. कवि की दृष्टि में समय के रथ का घर्घर - नाद क्या है ? स्पष्ट करें ।
उत्तर — पराधीनता की समाप्ति और स्वाधीनता की प्राप्ति कवि की दृष्टि में समय के रथ का घर्घर -नाद अर्थात् जनता का समय आया अपना जनतंत्र को कायम करने का ।
2. कविता के आरंभ में कवि भारतीय जनता का वर्णन किस रूप में करता है ?
उत्तर — कविता के आरंभ में कवि भारतीय जनता का वर्णन अबोध , मूक मिट्टी की मूरत के रूप में किया है जो सब कुछ सहती आ रही है । गहन वेदना में भी जो भूख नहीं खोल पाई ।
3. कवि के अनुसार किन लोगों की दृष्टि में जनता फूल या दुधमुंही बच्ची की तरह है और क्यों ? कवि क्या कहकर उनका प्रतिवाद करता है ?
उत्तर - कवि के अनुसार राजनायक लोगों की दृष्टि में जन फूल या दुधमुंही बच्ची की तरह है । क्योंकि अब तक राजनायक सोचते आ रहे थे कि जनता पर राजा का अधिकार होता है । जब चाहो उससे अपना राजसिंहासन सजा लो । अथवा दुधमुंही बच्ची की तरह जनता को कुछ देकर उनका मन बहलाकर राज्य का उपभोग कर लो । जिसका प्रतिवाद कवि ने जनता को भगवान कहकर किया है जो सड़क पर पत्थर तोड़ते या खेतों में काम करते मिलेंगे ।
4 . कवि जनता के स्वप्न का किस तरह चित्र खींचता है ?
उत्तर - कवि जनता के स्वप्न का चित्र अजय जो अन्धकार का भी वक्ष - स्थल चीर डाले , इस प्रकार उमड़ता हुआ खींचा है ।
5 . विराट जनतंत्र का स्वरूप क्या है ? कवि किनके सिर पर मुकुट धरने की बात करता है और क्यों ? उत्तर — भारत के विराट जनतंत्र का स्वरूप 33 करोड़ जनता के हित का है । कवि 33 करोड़ भारतीय जनता के सिर पर मुकुट धरने की बात करता है क्योंकि प्रजातंत्र में प्रजा ही राजा होता है ।
6. कवि की दृष्टि में आज के देवता कौन हैं और वे कहाँ मिलेंगे ?
उत्तर – कवि की दृष्टि में आज का देवता जनता है जो सड़क पर गिट्टी तोड़ते या खेल - खलिहानों में काम करते मिलेंगे ।
8 . व्याख्या करें
( क ) सदियों की ठंडी - बुझी राख सुग - बुगा उठी , मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है उत्तर — प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक " गोधूली " भाग -2 के काव्य ( पद्य ) खण्ड के " जनतंत्र का जन्म ' शीर्षक कविता से लिया गया है जिसके कवि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी हैं । भारत सदियों के बाद स्वाधीन हुआ स्वतंत्रता पाकर जनतंत्र की स्थापना के लिए भारतीय लोग प्रयासरत हैं । मानो सदियों की ठंडी बुझी राख से आग पुनः सुगबुगा उठी है तथा मिट्टी भी सोने की ताज पहनकर इठला रही हो है ।
( ख ) हुँकारों से महलों की नींव उखड़ जाती , साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है , जनता की रोके राह , समय में ताव कहाँ ? वह जिधर चाहती , काल उधर ही मुड़ता है ।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्य पुस्तक " गोधूली " भाग -2 के काव्य ( पद्य ) खण्ड के " जनतंत्र का जन्म ' शीर्षक कविता से ली गयी हैं जिसके रचयिता राष्ट्रकवि " रामधारी सिंह दिनकर " जी हैं । इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने जनता के बल का महत्व दर्शाया है । जनता की हुँकार से राजाओं का महल ढह जाता है । जनता की साँस से राज का ताज उड़ जाता है । जनता की राह को समय भी नहीं रोक सकता । जनता जिधर जाती है समय भी उसी ओर मुड़ जाता है ।