1. सबै विदेसी .....................भारत मदरसात ॥1 ॥
अर्थ - भारत में भारतीयता नाम की कुछ नहीं बचा है । यहाँ के लोगों के स्वभाव , रीति - रिवाज सभी पक्षों में विदेशी वस्तुओं से लगाव हो गया है ।
2. मनुज भारती ......................क्रिस्तान ॥2 ॥
अर्थ - देखकर कोई पहचान नहीं कर सकता है कि यह आदमी भारतीय है । क्योंकि मुसलमान हिन्दू सभी अंग्रेज जैसे लगने लगे हैं ।
3. पढ़ि विद्या परदेस................. गई इन्हैं अति भाय ॥ 3 ॥ अर्थ - विदेशी विद्या पढ़कर और विदेशी बुद्धि पाकर इनको ( भारतवासियों को ) विदेशी चाल - चलन बहुत अच्छा लगने लगा है ।
4. ठटे बिदेशी ठाट .................................भारतीयता लेस ॥4।।
अर्थ - विदेशी ठाट में बस सज गये हैं । देश भी विदेश जैसा लगने लगा है । सपना में भी भारत के लोगों में भारतीयता नाम की कोई चीज नहीं बची है ।
5. बोलि सकत हिंदी ...............अंग्रेजी उपभोग ॥5 ॥
अर्थ - अब हिन्दु लोग भी परस्पर हिन्दी में बातें नहीं कर सकते हैं । अंग्रेजी बोलना और अंग्रेजी वस्तु का उपभोग ही भारतीयों को अच्छा लगता है ।
6. अंगरेजी " बाहन , बसन , बेष ..............वस्तु देस विपरीत ॥ 6 ॥
अर्थ - अंग्रेजी , वाहन , अंग्रेजी वस्त्र , अंग्रेजी वेशभूषा , अंग्रेजी रीति - रिवाज , अंग्रेजी विचार , अंग्रेजी रुचि , अंग्रेजी घर आदि सभी चीजें देशी के विपरीत विदेशी लोगों को अच्छा लगने लगा है
7. हिन्दुस्तानी नाम ...... .....हाय घिनात ॥7 ॥
अर्थ - हिन्दुस्तानी नाम सुनकर ही भारत के लोग लज्जित हो जाते हैं । भारतीय सभी वस्तु से भारतवासियों को घृणा हो गयी है
8. देस नगर बानक ............अंगरेजी माल | 8 ॥
अर्थ - सम्पूर्ण देशवासी की वेशभूषा शहरी हो गयी है । सारे चाल - चलन में अंग्रेजीपन आ गया है । हजारों ( ग्रामीण बाजारों ) में अब केवल अंग्रेजी माल ही भरे दिखाई पड़ते हैं ।
9. जिनसों सम्हल सकत ........कैसी खाम खयाली ॥9 ॥ अर्थ - जिन नेताओं को शरीर की ढीली - ढाली भारतीय धोती संभाल में नहीं आती है वो देश का शासन सम्भाल लेंगे , यह तो उनकी कोरी - कल्पना ( ख्याली पुलाव बनाने ) जैसी है ।
10. दास - वृति की चाह .........................मानहुँ बने डफाली ॥ 10 ॥
अर्थ - गुलामी कर के जीवन यापन करना ब्राह्मण क्षेत्रीय शूद्र - वैश्य चारो वर्गों के लोगों की चाहत हो गई है । अंग्रेजों की खुशामद करने वाले , भारतीय वस्तु की झूठी प्रशंसा करने वाले ये भारतीय मानो डफली बजाने वाले बन गये हों ।
बोध और अभ्यास
कविता के साथ
1. कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए । उत्तर- " स्वदेशी " शीर्षक सार्थक है क्योंकि इस कविता में स्वदेशी लोगों को स्वदेशी वस्तुओं से नफरत जैसी हो गयी है । अपने देश के नाम सुनकर गहाँ के लोग लज्जा अनुभव करते हैं । सम्पूर्ण कविता में स्वदेशी वस्तु से अलग भारतीयों को दिखाया गया है । अत : " स्वदेशी " शीर्षक यथार्थ है ।
2. कवि को भारत में भारतीयता क्यों नहीं दिखाई पड़ती ?
उत्तर — भारत के लोगों का स्वभाव , रीति - रिवाज , लगाव सब अंग्रेजी जैसा हो गया है । हिन्दू हो या मुसलमान सभी अंग्रेज जैसे दिखाई पड़ते हैं । भारतीयों को पहचान पाना भी मुश्किल हो गया है । विदेशी पढ़ाई , विदेशी बुद्धि विदेशी चाल - चलन ही सर्वत्र दिखाई पड़ता है । बाजार में भी सब जगह विदेशी वस्तु ही पसरे दिखते हैं । इस प्रकार कवि को भारत में भारतीयता कहीं नजर नहीं आती है ।
3. कवि समाज के किस वर्ग की आलोचना करता है और क्यों ?
उत्तर – कवि समाज के प्रबुद्ध वर्ग की आलोचना करता है क्योंकि प्रबुद्ध वर्ग कहलाने वाले ' भारतीय लोग विदेशी विद्या पढ़कर , विदेशी बुद्धि पाकर अपने चाल - चलन को भी छोड़ दिये हैं । उनको विदेशी चाल - चलन ही अच्छा लगने लगा है । अर्थात् प्रबुद्ध वर्गीय लोगों में भारतीयता नाम की चीज कहीं नहीं दिखाई पड़ती है ।
4. कवि नगर , बाजार और अर्थव्यवस्था पर क्या टिप्पणी करता है ?
उत्तर कवि भारत के नगर , बाजार और अर्थव्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि सब पर विदेशी वस्तु हावी हो गया है । सब जगह विदेशी वस्तु ही बिक रहे हैं । स्वदेशी वस्तु नगर , बाजार , कहीं भी नहीं दिखने के कारण अर्थव्यवस्था ही बिगड़ गयी है ।
5. नेताओं के बारे में कवि की क्या राय है ?
उत्तर — भारतीय नेताओं के बारे में कवि की राय है कि जब इन नेताओं को भारतीय ढीली - ढाली धोती नहीं सँभलता है तो फिर ये लोग देश की बागडोर को कैसे संभाल पाएँगे ।
6. कवि ने “ डफाली " किसे कहा है और क्यों ?
उत्तर - कवि ने भारतीय उन लोगों को " डफाली " कहा है जो भारतीय वर्ण व्यवस्था को मानते हैं । क्योंकि ये लोग गुलामी करके ही जीना चाहते हैं । अंग्रेजों की खुशामद करते हैं तथा अपने स्वदेशी वस्तुओं की झूठी प्रशंसा करते हैं ।
7 . व्याख्या करें—
( क ) मनुज भारती देखि कोउ , सकत नहीं पहिचान। उत्तर - प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक " गोधूली " भाग -2 के स्वदेशी शीर्षक कविता से लिया गया है । इस कविता के कवि बदरी नारायण चौधरी " प्रेमघन " जी हैं । इस कविता में कवि ने बताया है कि " स्वदेशी " वस्तु हम भारतीय के बीच से उठता जा रहा है । विदेशी विद्या , विदेशी बुद्धि के प्रभाव से हमारी चाल - चलन , वेश - भूषा , खान - पान सब पर विदेशी वस्तु हावी हो गई है । हम भारतीय विदेशी वस्तुओं के प्रयोग से इतने बदल गये हैं कि " मनुज भारती देखि कोउ , सकत नहीं पहिचान " अर्थात् भारतीय मनुष्य को देखकर कोई नहीं पहचान सकता है कि यह भारतीय नागरिक है ।
( ख ) अंग्रेजी रुचि , गृह , सकल वस्तु देस विपरीत । उत्तर – प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक " गोधूली " भाग -2 के काव्य ( पद्य ) खण्ड के " स्वदेशी " शीर्षक पाठ से लिया गया है । इस पाठ के कवि " बदरी नारायण चौधरी ' प्रेमघन " जी हैं । " प्रेमघन " जी भारतीय लोगों के द्वारा स्वदेशी वस्तु के अनुपयोग से व्यथित हृदय होकर कहते हैं- " अंगरेजी रुचि , गृह सकल वस्तु देस विपरीत " अर्थात् अंग्रेजी वस्तु में रुचि बढ़ जाने से हमारे घर में सकल वस्तु विदेशी दिखाई पड़ने लगा है जो भारत के विपरीत है । 8. आपके मत से स्वदेशी की भावना किस दोहे में सबसे अधिक प्रभावशाली है ? स्पष्ट करें ।
उत्तर - हमारे मत से स्वदेशी की भावना सबसे अधिक प्रभावशाली दोहे नं .3 है जिसमें कवि ने कहा है कि
पढ़ि विद्या परदेश की , बुद्धि विदेसी पाप ।
अर्थात् अंग्रेजी शिक्षा और अंग्रेजी बुद्धि पाकर भारतीय लोगों का परदेशी चाल - चलन ही अच्छा लगने लगा है । चाल - चलन परदेस की गई इन्हें अति भाव ।। अर्थात् अंग्रेजी शिक्षा और अंग्रेजी बुद्धि पाकर भारतीय लोगों को परदेशी चाल - चलन ही अच्छा लगने लगा है।