भारत माता ग्रामवासिनी .......... उदासिनी !
अर्थ - मिट्टी की प्रतिमा की तरह हे उदासिनी भारत माता ! आप ग्रामवासिनी जैसे लग रही हैं । खेतों में फैली हरियाली से आप श्यामल रंगवाली लग रही हैं । आपका आँचल धूल से धूसरित है । गंगा - यमुना आपके दो आँखें हैं तथा उसका जल आपका अश्रु - जल है ।
दैन्य जड़ित अपलक ...... प्रवासिनी !
अर्थ — गरीबी से चेतन शून्य , जिसकी दृष्टि बिना पलक गिराये हुए झुकी हो । जिसके होठों में दीर्घकालीन शब्दहीन रोदन हो , युगों के गुलामी रूपी अन्धकार से विषादमय मन वाली हे भारत माता आप अपने घर में ही विदेशी बनी हुई दिखती हैं ।
तीस कोटि सन्तान ..... तरुतल निवासिनी !
अर्थ - आपकी तीस करोड़ संतान जिनके वस्त्रहीन नग्न शरीर हैं , आधा पेट खाकर रहने वाले हैं , शोषित , निहत्था , भूखे , असभ्य , अशिक्षित और निर्धन हैं । इसलिए हे भारत माता आप झुकी मस्तक वाले पेड़ के नीचे निवास करने वाली सादृश लग रही हैं ।
स्वर्ण शस्य पर पद - तल लुंठित , ...........' राहु ग्रसित शरदेन्दु हासिनी !
अर्थ -- हे भारत माता ! आपका स्वर्णिम फसल दूसरे के पैरों के नीचे रौंदा जा रहा है । धरती की तरह सहनशील , गतिहीन मनवाली , रूलाई से काँपता हुआ मौन मुस्कान लिए अधरवाली , राहु ग्रसित ( ग्रहण लगा हुआ ) शरद पूर्णिमा के चन्द्रमा की तरह हँसी वाली आप दिखती हैं ।
चिंतित भृकुटि क्षितिज............ ज्ञान मूढ़ गीता प्रकाशिनी।
अर्थ--गीता को प्रकाश करने वाली हे भारत माता ! आप ज्ञान शून्य जैसी लग रही हैं । आपकी भौंहों पर चिंता की रेखाएँ हैं । आपका आकाश अन्धकार से आच्छादित है । आपकी आँखें झुकी हैं । आपका आकाश वायुयानों के वाष्प से ढंक गया है । आपके मुखमंडल की शोभा कलंकित चन्द्रमा से उपमा देने योग्य हो गया है ।
सफल आज उसका तप.......... जग - जननी जीवन - विकासिनी ।
अर्थ - जीवन को विकसित करनेवाली , जग - जननी स्वरूपा हे भारत माता ! आज आपका तप और संयम सफल हो गया । क्योंकि आपने अपने संतानों को अहिंसा रूपी स्तन का दूध पिला दिया है । आप लोगों के मन के भय को हरती हैं तथा संसार के भ्रमरूपी अज्ञानता को आप दूर करने वाली हैं ।
बोध और अभ्यास
कविता के साथ
1. कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि भारत माता का कैसा चित्र प्रस्तुत करता है ?
उत्तर – कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि भारत माता को ग्रामवासिनी रूप में चित्र प्रस्तुत किया है । जिसमें भारत माता का वर्ण खेत की हरितिमा के सादृश श्यामल है । धूल धूसरित भारत माता का आँचल है । गंगा - यमुना ये दो आँखें हैं तथा उसका जल भारत माता के अश्रु - जल ( आँसू ) हैं । भारत माता मिट्टी की मूर्ति जैसी उदासिनी हैं ।
2 . भारत माता अपने ही घर में प्रवासिनी क्यों बनी हुई है ?
उत्तर — गरीबी से चेतनहीन जैसी युगों से गुलामी रूपी तम से विषादयुक्त मन वाली भारत माता अपने ही घर में प्रवासिनी ( विदेशनी ) जैसी बनी हुई है ।
3. कविता में कवि भारतवासियों का कैसा चित्र खींचता है ।
उत्तर — भारतवासियों के तन पर कपड़े नहीं हैं । उनको भरपेट भोजन नहीं मिलता है । वे शोषित हैं , निहत्थे हैं , अज्ञानी हैं , असभ्य हैं , अशिक्षित और निर्धन हैं । इस प्रकार नग्न , अर्ध क्षुधित , शोषित निहत्थे , मूढ़ , असभ्य , अशिक्षित और निर्धन के रूप में कवि ने भारतवासियों का चित्र खींचा है ।
4 . भारत माता का हास भी राहुग्रसित क्यों दिखाई पड़ता है ?
उत्तर - भारत माता का स्वर्णिम फसल विदेशियों के पैर तले रौंदा जा रहा है । धरती जैसी सहनशील होकर भी भारत माता का मन कुंठित ( गतिहीन ) दिख रही है । रूलाई से काँपता हुआ मौन मुस्कान वाली भारत माता का ह्रास भी राहु ग्रसित लग रही है ।
5. कवि भारत माता को गीता प्रकाशिनी मानकर भी ज्ञान मूढ़ क्यों कहता है ?
उत्तर - भारत माता के भौंह चिह्न युक्त दिख रही है । दिशाएँ अंधकार से ढंके हैं । गुलामी के कारण आँखें झुकी हैं , आकाश वाष्प से अच्छादित है । भारत माता के मुख - मंडल की शोभा कलंकित चन्द्रमा से उपमा देने योग्य है । इसीलिए गीता प्रकाशिनी भारत माता को कवि ने ज्ञान मूढ़ कहा है ।
6. कवि की दृष्टि में आज भारत माता का तप - संयम क्यों सफल है ?
उत्तर भारत माता अपनी संतानों ( भारतवासियों ) को अहिंसा रूपी दूध अपने स्तन से पिलाई है जो ( अहिंसा ) जन के मन का भय दूर करता है तथा संसार वालों को अज्ञानता और भ्रम को दूर करने वाली है । भारत अहिंसा को प्राप्त कर स्वतंत्रता प्राप्ति की ओर अग्रसर हो रहा है । इसलिए कवि की दृष्टि में आज भारत माता का तप - संयम सफल हो गया है । 7. व्याख्या करें—
( क ) स्वर्ण शस्य पर - पद - तल लुंठित , धरती - सा सहिष्णु मन कुंठित ।
उत्तर – प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य - पुस्तक " गोधूली " भाग -2 के काव्य ( पद्य ) अण्ड के ' भारत माता " शीर्षक पाठ से लिया गया है जिसके कवि " सुमित्रा नन्दन पंत जी " हैं । इस कविता में गुलामी से पीड़ित भारतवर्ष को माता के रूप में मानवीकरण करके तत्कालीन भारत की स्थिति का मार्मिक चित्र खिंचा गया है । कभी भारत अपनी महत्ता के कारण महत्वपूर्ण इतिहास रचता था । भारत का ऐतिहासिक महत्व चाहे जितना रहा हो परन्तु वर्तमान को देखकर भारत के इतिहास पर कोई विश्वास नहीं कर सकता है। इसका कारण भारत का गुलाम होना था जो इस पंक्ति से स्पष्ट होता है । स्वर्ण शस्य यर पद - तल लुठित , धरती - सा सहिष्णु मन कुटित । अर्थात् भारत माता के स्वर्णिम फसल विदेशियों के पैर तले रौंदा जा रहा है । पृथ्वी के तरह सहनशील आपका मन कुंठित ( गतिहीन ) हो गया ।
( ख ) चिंतित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित , नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित ।
उत्तर – प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक " गोधूली " भाग -2 के काव्य ( पद्य ) खण्ड के ' भारत माता ' शीर्षक पाठ से लिया गया है । जिसके रचयिता सुमित्रा नन्दन पंत " जी हैं जिसमें कवि ने भारत को माता के रूप में मानवीकरण कर भारत की तत्कालीन स्थिति का मार्मिक चित्र प्रस्तुत किया है । भारत का ऐतिहासिक महत्व चाहे जितना भी बड़ा हो लेकिन वर्तमान स्थिति को देखकर विश्वास नहीं हो सकता है कि भारत विश्व के देशों का सिरमौर रह चुका है जो भारत कभी विश्व को गीता का उपदेश देकर गुरु कहलाने का सौभाग्य प्राप्त कर चुका है । वह भारत विदेशियों के द्वारा शासित होकर ज्ञान शून्य दिख रही है । भारत माता की भौंह पर चिंता झलक रही है । दिशाएँ अन्धकारभय दिख रही है अर्थात् भारत का भविष्य का कुछ पता नहीं चल रहा है । गुलामी के शर्म से भारत माता की आँख झुकी हैं । विदेशियों के वायुयान के धुआँ से भारत का आकाश ढंक रहा है । अर्थात् भारत सब ओर से विदेशियों के प्रभाव में आ गया है ।