पद परिचय - इस दोहे में रसखान भगवान श्रीकृष्ण और राधिका जी के युगल स्वरूप को प्रेम का खजाना कहा है । अर्थात् राधा कृष्ण के युगल स्वरूप की जो भक्ति करता है उसे भगवान श्रीकृष्ण अपने रंग में रंगकर प्रेममय कर देते हैं ।
प्रेम - अयनि श्री राधिका , प्रेम - बरन नंदनंद ।................
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मन पावन चित चोर , पलक ओर नाहिं करिसकौं । भावार्थ - श्री राधिका प्रेम के खजाना है तो श्रीकृष्ण उनके प्रेम रंग में रंगा प्रेमी हैं । दोनों एक ही प्रेम वाटिका के दो नायक ( माली - मालीन ) है । मोहन के रूप सौन्दर्य को देखकर रसखान की ये आँखें अपने वश में नहीं रहा अर्थात् वरवक्त उन्हीं के प्रेममय स्वरूप के प्रति ये आँखें युगल स्वरूप पर टिकी रहती हैं उसी प्रकार जैसे वाण को खींचते धनुष से छुटकर चला जाता है । मेरे मनरूपी माणिक्य ( रल ) देखकर चितचोर कहलाने वाले नन्द के नन्दन चुरा लिए । जब मैं बिना मन वाला हो गया तो क्या कर सकता हूँ । मैं तो श्रीकृष्ण और राधिका के प्रेमपाश में फंस गया हूँ । हे प्रिय नन्दकिशोर जिस दिन से आपके स्वरूप का दर्शन इन आँखों को हुआ है , उस दिन से मेरा मन पवित्र हो गया । हे चितचोर मैं अपने पलकों को आपके छवि दर्शन से अलग न कर सकूँ ऐसी मेरी इच्छा है ।
करील के कुंजन ऊपर वारौं
पद परिचय - सवैये में प्रस्तुत पद में रसखान श्रीकृष्ण की भक्ति में अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार हैं।
भावार्थ - जिन्होंने छोटी लाठी , कम्बल पर तीन लोक का राज त्याग दिये तथा आठो सिद्धि और नवनिधियों के सुख को भी नन्द के गाय चराने के पीछे भूल गये हों । उस श्रीकृष्ण को देखने के लिए ये आँखें कब (बहुत दिनों ) से ब्रज के वन , उपवनों और तालाब को निहार ( देख ) रहा है । उनके दर्शन हेतु - इन्द्र के करोड़ों स्वर्ग को प्रेमवाटिका स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण के ऊपर बलिदान कर हूँ । ऐसी मेरी अभिलाषा है ।
बोध और अभ्यास
कविता के साथ
1. कवि ने माली - मालिन किन्हें और क्यों कहा है ? उत्तर - कवि रसखान ने प्रेमवाटिका के माली श्रीकृष्ण को तथा मालिन राधिका रानी को कहा है । क्योंकि दोनों प्रेम रूपी वाटिका के संरक्षक हैं । जैसे — माली - मालिन मिलकर फूल के बगीचा को सिंचते हैं जिससे फूल खिलते हैं उसी प्रकार भगवान श्री कृष्ण और राधिका प्रेमरूपी बाटिका को सिंचकर प्रेम को पुष्ट (विकसित ) करते हैं ।
2. द्वितीय दोहे का काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें । उत्तर - दूसरा दोहा ( सवैये ) में कवि रसखान की अनुपम भक्ति देखने को मिलती है जिसमें कवि श्रीकृष्ण की भक्ति पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार हैं । सौन्दर्य को दृष्टि से भी यह सवैये अनुपम हैं । शब्दालंकार के प्रयोग से यह दोहा आकर्षक बन गया है ।
3. कृष्ण को चोर क्यों कहा गया है ? कवि का अभिप्राय स्पष्ट करें ।
उत्तर - चितचोर कहलाने वाले भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्तों के मन को शीघ्र ही अपनी ओर आकृष्ट कर लेते हैं इसलिए कवि ने उन्हें चोर कहा है । अभिप्राय यह है कि मनुष्य जब श्रीकृष्ण की भक्ति की ओर मुखरित होता है तो उसका मन श्रीकृष्ण की ओर स्वयं खिंच जाता है इसलिए वे चित्तचोर कहलाते हैं ।
4. सवैये में कवि की कैसी आकांक्षा प्रकट होती है ? भावार्थ बताते हुए स्पष्ट करें ।
उत्तर - द्वितीय दोहे में कवि ने सवैये का प्रयोग किया है जिसमें कवि रसखान ने आकांक्षा व्यक्त की है कि अगर श्रीकृष्ण की भक्ति के लिए मुझे करोड़ों स्वर्ग - सुख को त्यागना पड़े तो त्याग सकता हूँ ।
5 . व्याख्या करें-
( क ) मन पावन चित्त चोर , पलक ओर नहि करि सकौं । उत्तर - प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्यपुस्तक " गोधूली " भाग -2 के काव्य ( पद्य ) खण्ड के " प्रेम - अनि श्री राधिका " पाठ से लिया गया है जिसके कवि रसखान हैं । जिसमें कवि ने राधा के युगल स्वरूप को प्रेम का खान कहकर अपनी भक्ति की अभिव्यक्ति की है । इस पंक्ति में रसखान ने भगवान श्रीकृष्ण को मन पावन करने वाला तथा चित चुराने वाला ( चित्तचोर ) कहते हुए कहा है कि एक क्षण के लिए भी मैं उनसे अपने को अलग नहीं कर सकता हूँ । ( ख ) रसखानि कयौं इन आँखिन सौ ब्रज के बनवाग तडाग निहारौं । उत्तर - प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक " गोधूली " भाग -2 के काव्य ( पद्य ) खण्ड के " करील कुंजन ऊपर वारौं " पाठ से लिया गया है जो रसखान की रचना है । इस सवैये में कवि भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और दर्शन प्राप्त करने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार है । इसी आकांक्षा में कवि कहते हैं आपका भक्त रसखान आपके दर्शन हेतु कब से ( बहुत दिनों से ) ब्रज के वन , बाग और तडाग की ओर अपनी आँखें लगाये हुए है ।