वतुनिष्ठ प्रश्न
1. ' अज्ञेय ' का पूरा नाम है
( A ) कुमार ' अज्ञेय '
( B ) सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ' अज्ञेय '
( C ) डॉ . हीरानंद ' अज्ञेय
( D ) वात्स्यायन कुमार ' अज्ञेय '
Answer - B
2. ' अज्ञेय ' का जन्म कहाँ हुआ था ?
( A ) कुशीनगर | उत्तरप्रदेश
( B ) भोपाल / मध्यप्रदेश
( C ) जयपुर | राजस्थान
( D ) राजगृह । बिहार
Answer - A
3. ' अज्ञेय ' का मूल निवास कहाँ था ?
( A ) कर्तारपुर
( B ) मिर्जापुर
( C ) प्रतापपुर
( D ) राजापुर
बोध और अभ्यास
कविता के साथ
1. कविता के प्रथम अनुच्छेद में निकलने वाला सूरज क्या है ? वह कैसे निकलता है ?
उत्तर - कविता के प्रथम अनुच्छेद में निकलने वाला सूरज आण्विक हथियार है । जब वह निकलता है तो प्रलयंकारी दृश्य उपस्थित कर देता है । मनुष्य , जीव - जन्तु , पत्थर आदि सब कुछ भाप बनकर उड़ जात हैं।
2. छायाएँ दिशाहीन क्यों पड़ती हैं ? स्पष्ट करें ।
उत्तर – दोपहर में जब सूर्य पूर्व में होता है तो छायाएँ पश्चिम और अर्थात् विपरीत दिशा ( दिशाहीन ) की ओर पड़ती है ।
3 . प्रज्वलित क्षण की दोपहरी से कवि का आशय क्या है ?
उत्तर - जब किसी क्षेत्र पर परमाणु बम गिराया जाता है तो सब कुछ जलने लगता है । मानो प्रलयंकारी सूर्य दोपहर के समय प्रज्वलित जैसा होकर सबको सोख रहा है । अर्थात् सब जल जाते हैं ।
4. मनुष्य की छायाएँ कहाँ और क्यों पड़ी हुई हैं ? उत्तर — मनुष्य की छायाएँ हिरोशिमा क्षेत्र में पड़ी हैं । अर्थात् मानव की छाया ( प्रतीक ) चिह्न अभी भी देखा जा सकता है कि किस प्रकार की बर्बादी (त्रासदी) वहाँ मचाया गया । मानव तो भाप बनकर उड़ गये लेकिन उनकी छाया ( प्रतीक ) अभी भी मौजूद है । एक साक्षी के रूप में ।
5. हिरोशिमा में मनुष्य की साखी रूप में क्या है ? उत्तर - हिरोशिमा में परमाणु बम गिराया गया सब कुछ भाप बनकर उड़ गया । मनुष्य उड़ गये । चारो ओ बर्बादी ही बर्बादी हुई । हिरोशिमा में उस नरसंहार की छाया अभी भी हिरोशिमा में देखी जा सकती है । अर्थात् वहाँ का दृश्य स्पष्ट बयान करता है मानव त्रासदी का । हिरोशिमा का वह दृश्य मनुष्य की साखी रूप में है । निकला ।
" 6. व्याख्या करें—
( क ) “ एक दिन सहसा । सूरज
उत्तर — प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक गोधूली भाग -2 के काव्य ( पद्य ) " हिरोशिमा " शीर्षक कविता से लिया गया है जिसमें जापान के , हिरोशिमा शहर पर हुए परमाणु प्रयोग से हुए त्रासदी की याद " अज्ञेय ' " जी ने दिलाई है ।
हिरोशिमा नगर के बीचो - बीच एक दिन एकाएक (अचानक ) बम गिरा जिसमें मनुष्य भाप बनकर उड़ गये । मानो प्रलयंकारी सूर्य अकस्मात् निकलकर सबको सोख लिया हो । सब बर्बाद हो गये ।
( ख ) “ काल - सूर्य के रथ के पहियों के ज्यों अरे टूट कर बिखर गये हों । दसों दिशा में । '
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्य पुस्तक “ गोधूली " भाग -2 के काव्य ( पद्य ) खण्ड के ' हिरोशिमा ' शीर्षक पाठ से ली गई हैं । जिसमें हिरोशिमा पर हुए परमाणु - अस्त्र के प्रयोग से विध्वंस का दृश्य प्रस्तुत करते हुए " अज्ञेय " जी कहते हैं " काल - सूर्य दसों दिशा में अर्थात् मानो काल - रूपी सूर्य उदय हो रहा हो उस समय उसके रथ के पहिये की अरे ( कील ) टूट गया हो और सब कुछ दसों दिशा में बिखर गये हों । अर्थात् विकासशील जापान जो कभी उगते हुए सूर्य का देश कहा जाता था सब तितर - बितर हो गये ।
( ग ) “ मानव का रचा हुआ सूरज । मानव को भाप बनाकर सोख गया । "
उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्य पुस्तक " गोधूली " भाग -2 के काव्य ( पद्य ) खण्ड के ' हिरोशिमा ' ' शीर्षक पाठ से ली गई है जिसके कवि " अज्ञेय " जी है । कवि ने हिरोशिमा पर हुए परमाणु अस्त्र के प्रयोग से त्रासदी का वर्णन किया है । जापान जिसे उगता हुआ सूरज का देश कहा जाता था । उस जापान को विकसित करने का श्रेय मनुष्य को है । लेकिन मनुष्य ही ने उसे बर्बाद कर दिया । मानो मानव का रचा सूरज मानव को भाप बनाकर सोख गया । " अर्थात् प्रलयंकारी काल का सूर्य की तरह मानव रचित आण्विक हथियार से हिरोशिमा को बर्बाद कर दिया । लोग भाप बनकर उड़ गये ।