सरलार्थ - राम नाम के बिना जग में जन्म लेना ही बेकार है । जो व्यक्ति हरिनाम नहीं लेता उसका किया भोजन विष के समान , उसकी बोली विष के समान हो जाती है तथा जो ईश्वर का नाम नहीं लेता उसका जीवन निष्फल तथा बुद्धि भ्रमित हो जाती है । पुस्तक का पाठ करना , व्याकरण की व्याख्या करना संध्या - कर्म आदि सब निष्फल हो जाता है । वह गुरु उपदेश के अनुकरण किये बिना मुक्ति नहीं मिलती है तथा राम नाम के जप बिना प्राणी इस मोह युक्त संसार रूपी जाल में उलझकर मर जाता है । दंड - कमंडल धारण , शिखा बढ़ाना , जनेऊ पहनना , धोती पहनना या तीर्थ भ्रमण करना सब बेकार हो जाता है यदि व्यक्ति नाम का जप नहीं करता है । राम नाम के जप के बिना शांति भी नहीं मिलता है तथा जो हरि का नाम स्मरण करता है उसी का वेरा पार होता है । जटा धारण , भस्म लगाना , दिगम्बर हो जाना सब बेकार है हरि नाम के बिना । इस पृथ्वी पर जितने जीव - जन्तु जल - थल में हैं उन्हीं की कृपा से जीवित है । जिसने गुरु उपदेश को ग्रहण कर लिया है मानो वह हरि भक्ति का रस - पान कर लिया ।
जो नर दुख में दुख नहिं मानै.................
सरलार्थ जो मनुष्य अपने दुख से दुःखी नहीं होता है । सुख - स्नेह और भय भी जिसको प्रभावित नहीं करता है , जो दूसरे के धन को माटी मानता है , जिसे निन्दा, प्रशंसा , लोभ , मोह और अभिमान प्रभावित नहीं करता है जिसको हर्ष या शोक प्रभावित नहीं करता है, जो मान अपमान नहीं समझता है , जो मन से आशा , तृष्णा आदि सब कुछ त्यागकर देता है तथा जो सांसारिक माया से मुक्त रहता है जिसको काम , क्रोध आदि स्पर्श भी नहीं करता है । ऐसे व्यक्ति के ही हृदय में ईश्वर का निवास होता है । जिस व्यक्ति पर गुरु की कृपा हो जाती है वही व्यक्ति इस रहस्य को जान सकता है । गुरु नानक कहते हैं कि ईश्वर भक्ति में इस प्रकार लीन हो जाओ जैसे नदी का पानी समुद्र के पानी में मिलकर लीन हो जाता है ।
बोध और अभ्यास
कविता के साथ
1. कवि किसके बिना जगत में यह जन्म व्यर्थ मानता है ?
उत्तर --कवि नानक राम नाम के स्मरण के बिना जगत में जन्म व्यर्थ मानता है । अर्थात् ठी का जन्म लेना सफल है जो हरि के नामों का कीर्तन करता है ।
2. वाणी कब विष के समान हो जाती है ?
उत्तर - जब मनुष्य राम के नाम का अपनी वाणी से नहीं बोलता तो उसका वाणी भी विष के समान हो जाती है ।
3. नाम कीर्तन के आगे कवि किन कर्मों की व्यर्थता सिद्ध करता है ?
उत्तर - हरि नाम कीर्तन के आगे कवि पुस्तकों का अध्ययन , व्याकरण का मनन , संध्या - गायत्रं | कर्म करना , दंड - कमण्डल ग्रहण करना , जनेऊ धारण करना , धोती पहनना , तीर्थ करना , जय धारण , पगड़ी धारण , भस्म लेपना और वस्त्र का त्याग कर दिगम्बर बनना आदि सभी कर्मों को व्यर्थ सिद्ध करता है ।
4. प्रथम पद के आधार पर बताएँ कि कवि ने अपने युग में धर्म - साधना के कैसे - कैसे रूप देखे थे ।
उत्तर – प्रथम पद के अनुकूल कवि ने अपने युग में धर्म - साधना के दो रूप देखे थे गुरु उपदेशों का अनुकरण करना तथा हरि के नामों का जपना अथवा कीर्तन करना ।
5. हरि रस से कवि का अभिप्राय क्या है ?
उत्तर - हरि रस से कवि का अभिप्राय हरि भक्ति है ।
6. कवि की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है ?
उत्तर - कवि की दृष्टि में ब्रह्म का निवास प्राणी के शरीर ( आत्मा ) में ही है ।
7. गुरु की कृपा से किन युक्ति की पहचान हो पाती है ?
उत्तर - गुरु की कृपा से ईश्वर भक्ति तथा संसार सागर से पार होने की युक्ति की पहचान हो पाती है ।
8. व्याख्या करें-
( क ) राम नाम बिनु अरुझि मेरे ।
उत्तर – प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक " गोधूली " भाग -2 के काव्य ( पद्य ) खण्ड के " राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा " पद्य से लिया गया है जिसके रचयिता " गुरु नानक " जी हैं । कवि ने राम नाम की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि संसार - सागर से पार उतरने का सबसे सरल - सुगम उपाय राम के नाम को स्मरण करना है । जो व्यक्ति ईश्वर के नाम को नहीं | जपता है वह इस संसार के माया जाल में उलझकर मर जाता
( ख ) कंचन माटी जानै ।
उत्तर - प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक " गोधूली " भाग -2 के काव्य ( पद्य ) खण्ड के " जो नर दुःख में दुख नहिं मान " पद से लिया गया है जिसके रचयिता सिख सम्प्रदाय के प्रथम गुरु नानक जी हैं
इस पद में कवि ने बताया है कि जिस व्यक्ति को दुख - दुखी नहीं करता , जिसे सुख स्नेह भय आदि प्रभावित नहीं करते हैं वह व्यक्ति दूसरे के सोना आदि धन को माटी के समान समझता है । वस्तुत : जिसकी सांसारिक इच्छा समाप्त हो जाती है वह व्यक्ति सोना को भी मिट्टी मानता है ।
( ग ) हरष सोक तें रहै नियारो , नहि मान अपमाना ।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्य पुस्तक " गोधूली " भाग -2 काव्य ( पद्य ) खण्ड के " जो | नर दुख में दुख नहिं मानै " पद से ली गयी है जिसके रचयिता " गुरु नानक " जी हैं ।
गुरु नानक ने गुरु के उपदेश की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि जिस पर गुरु उपदेशों का प्रभाव पड़ता है उस व्यक्ति को , सुख - दुःख , हर्ष - शोक इत्यादि सांसारिक बाधाएं है प्रभावित नहीं करतीं । इस प्रकार के व्यक्ति को मान - अपमान का भी प्रभाव नहीं पड़ता 1
( घ ) नानक लीन भयी गोविन्द सो , ज्यों पानी संग पानी ।
उत्तर – प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक गोधूली भाग -2 के काव्य ( पद्य ) खण्ड के " जो नर दुख में दुख नहिं मान " पद से लिया गया है जिसके रचयिता गुरु नानक जी हैं । इस पद्य में नानक जी ने कहा है कि मैं नानक भगवान गोविन्द की ऐसी भक्ति में लीन होना चाहता हूँ जैसे - नदियों का पानी समुद्र के पानी में मिलकर लीन हो जाता है । वस्तुतः यथार्थ ईश्वर भक्ति हरि के नाम कीर्तन में लीन होना ही है तथा भक्ति की तल्लीनता वैसी हो जैसे नदि का पानी समुद्र के पानी में मिलकर समुद्र के पानी जैसा हो जाता है ।
9. आधुनिक जीवन में उपासना के प्रचलित रूपों को देखते हुए नानक के इन पदों की क्या प्रासंगिकता है ? अपने शब्दों में विचार करें ।
उत्तर - आधुनिक जीवन में उपासना के जो भी प्रचलित रूप हैं वे सभी कर्मकाण्ड से सम्बन्ध रखते हैं । आज के भाग - दौड़ के जीवन में कर्म काण्ड पर आधारित उपासना के उपाय में सभी लोगों को सफल होना कठिन है । आज ईश्वर की उपासना खर्चील है क्योंकि धन से धर्म किया जाता है जो जन साधारण के वश की बात नहीं है। ऐसे समय में गुरु नानक द्वारा रचित पद में जो उपासना के रूप को बताया गया है । उसी की प्रासंगिकता है । गुरु के उपदेशों का अनुकरण कर हरि के नाम कीर्तन सभी व्यक्ति से सम्भव है । इसके लिए न समय सीमा का विचार है और नहीं खर्च की बात है । अतः हमारे विचार से गुरु नानक जी के बताएँ मार्ग से ईश्वर की उपासना सबों के लिए सरल और युक्तिसंगत है