Bihar Board Class 10 Political Science लोकतंत्र की उपलब्धियाँ Text Book Questions and Answers
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
लोकतंत्र किस तरह उत्तरदायी एवं वैध सरकार का गठन करता है?
उत्तर-
- लोकतंत्र एक उत्तरदायी सरकार का निर्माण करता है क्योंकि (a) यह नियमित, स्वतंत्र तथा स्वच्छ तरीके से चुनाव सम्पन्न करता है।
(b) इसके प्रमुख सार्वजनिक मुद्दों तथा विधेयकों पर जनता के बीच खुली बहस की गुंजाइश होती है। (c) यह सरकार के स्वयं के बारे में तथा उसकी कार्य-शैली के बारे में जानने के लिए जनता को सूचना का अधिकार प्रदान करता है। - लोकतंत्र एक जिम्मेवार सरकार प्रदान करता है क्योंकि इसका निर्माण जनता द्वारा निर्धारित प्रतिनिधि करते हैं। ये प्रतिनिधि समाज की समस्याओं पर बहस करते हैं तथा तदनुसार नीतियाँ एवं सरकार बनाते हैं। समस्याओं को सुलझाने के लिए इन्हीं नीतियों एवं कार्यक्रमों को लागू किया जाता है।
- लोकतंत्र एक वैध सरकार का निर्माण करता है क्योंकि यह जनता की सरकार होती है। यह जनता ही होती है जो अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से सरकार बनाकर स्वयं के ऊपर शासन करवाती है।
प्रश्न 2.
लोकतंत्र किस प्रकार आर्थिक संवृद्धि एवं विकास में सहायक बनता है ?
उत्तर-
लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था वैध एवं जनता के प्रति उत्तरदायी होती है। यह व्यवस्था खुशहाली एवं विकास की दृष्टि से भी अग्रणी होगी। किसी देश का आर्थिक विकास उस देश की व्यवस्था, आर्थिक प्राथमिकता, अन्य देशों से सहयोग के साथ-साथ वैश्विक स्थिति पर भी निर्भर करती है। लोकतांत्रिक शासन में विकास दर में कमी के बावजूद लोकतांत्रिक व्यवस्था का चयन सर्वोत्तम होगा क्योंकि इसके अनेक सकारात्मक एवं विश्वसनीय फायदे हैं जिनका एहसास हमें धीरे-धीरे होता है जो अन्ततः सुखद होता है। इसके अतिरिक्त लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में जनता अपने प्रतिनिधियों के माध्यमों से अपने समस्याओं को सरकार के सामने प्रस्तुत करती है। तद्नुरूप सरकार जनता की समस्याओं को हल करने के लिए तत्पर होती है। लोकतंत्र में समान आर्थिक संवृद्धि का अधिकार है। प्रत्येक नागरिक को अपनी रोजी-रोटी, जमीन, चल और अचल सम्पत्ति को रखने का अधिकार है। उनको आर्थिक संवृद्धि और विकास के लिए स्वस्थ वातावरण लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में मिलता है।।
प्रश्न 3.
लोकतंत्र किन स्थितियों में सामाजिक विषमताओं को पाटने में मददगार होता है और सामंजस्य के वातावरण का निर्माण करता है?
उत्तर-
किसी लोकतंत्र द्वारा विभिन्न सामाजिक विषमताओं के बीच सामंजस्य के वातावरण के निर्माण के लिए निम्नलिखित स्थितियों का होना अनिवार्य है-
- इसका सरल अर्थ यह है कि चुनाव अथवा निर्णय के मामले में विभिन्न व्यक्ति या समूह अलग-अलग समय में बहुमत का निर्माण कर सकते हैं। यदि किसी को उसके जन्म के आधार पर बहुमत में होने से रोका जाता है तो उस व्यक्ति के लिए लोकतांत्रिक शासन सामंजस्य बिठाने वाला नहीं रह जाता है।
- लोगों को यह समझना होगा कि लोकतंत्र केवल बहुमत का शासन नहीं है। सरकार एक सामान्य दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व कर सके इसके लिए बहुमत को अल्पमत के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
प्रश्न 4.
लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं ने निम्नांकित किन मुद्दों पर सफलता पाई है ?
(क) राजनीतिक असमानता को समाप्त कर दिया है।
(ख) लोगों के बीच टकरावों को समाप्त कर दिया है।
(ग) बहुमत समूह और अल्प समूह के साथ एक सा व्यवहार करता है।
(घ) समाज की आखिरी पंक्ति में खड़े लोगों के बीच आर्थिक पैमाना को कम कर दिया
उत्तर-
(ख) लोगों के बीच टकरावों को समाप्त कर दिया है।
प्रश्न 5.
इनमें से कौन-सी एक बात लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के अनुरूप नहीं है।
(क) कानून के समक्ष समानता
(ख) स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव
(ग) उत्तरदायी शासन-व्यवस्था
(घ) बहुसंख्यकों का शासन
उत्तर-
(घ) बहुसंख्यकों का शासन
प्रश्न 6.
लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक एवं सामाजिक असमानताओं के संदर्भ में किया गया कौन-सा सर्वेक्षण सही और कौन गलत प्रतीत होता है (लिखें सत्य/असत्य)
(i) लोकतंत्र ओर विकास साथ-साथ चलते हैं।
उत्तर-
सत्य
(ii) लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में असमानताएँ बनी रहती हैं।
उत्तर-
असत्य
(iii) तानाशाही में असमानताएँ नहीं होती।
उत्तर-
असत्य
(iv) तानाशाही व्यवस्थाएं लोकतंत्र से बेहतर सिद्ध हुई हैं।
उत्तर-
असत्य
प्रश्न 7.
भारतीय लोकतंत्र की उपलब्धियों के संबंध में कौन सा कथन सही अथवा गलत है-
(i) आज लोग पहले से कहीं अधिक मताधिकार की उपादेयता को समझने लगे हैं।
उत्तर-
सही
(ii) शासन की दृष्टि से भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था ब्रिटिश काल के शासन से बेहतर नहीं है।
उत्तर-
गलत
(iii) अभिवचित वर्ग के लोग चुनावों में उम्मीदवार नहीं हो सकते हैं?
उत्तर-
गलत
(iv) राजनीतिक दृष्टि से महिलाएं पहले से अधिक सत्ता में भागीदार बन रही हैं।
उत्तर-
सही
प्रश्न 8.
भारतवर्ष में लोकतंत्र के भविष्य को आप किस रूप में देखते हैं?
उत्तर-
भारत में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था पाई जाती है। इस शासन व्यवस्था के अन्तर्गत जनता अपने प्रतिनिधियों को चुन कर संसद या विधानसभा में भेजती हैं। वे प्रतिनिधि जनता की समस्या को उठाते हैं और उनकी समस्या का निराकरण सरकार से कराने की कोशिश करते हैं। भारतीय लोकतंत्र का अवलोकन करने पर लोकतंत्र के प्रति आशा और निराशा दोनों होती है। हमारी निराशाएं पहले इस रूप में प्रकट होती हैं कि भारत में लोकतंत्र है ही नहीं अथवा भारतः लोकतंत्र के लिए उपयुक्त नहीं है।
कभी-कभी तो ऐसी टिप्पणियाँ भी सुनने को मिलती हैं कि लोकतांत्रिक व्यवस्था तमाम शासन-व्यवस्थाओं की तुलना में असफल एवं पंगु है। स्वाभाविक है कि लोकतंत्र को कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। अतएव इसकी गति निश्चित तौर पर धीमी होती है। न्याय में विलंब, विकास दर की धीमी रफ्तार के कारण ऐसा लगने लगता है कि लोकतंत्र बेहतर नहीं है। राजतंत्र एवं तानाशाही व्यवस्था में इसकी गति तेज तो हो जाती है परंतु उसके व्यापक जन-कल्याण के तत्व एक सिरे से गायब रहते हैं। साथ ही, गुणवत्ता का सर्वथा अभाव दिखता है।
इन निराशओं के बावजूद आशा की किरण भी प्रस्फुटित होती है। गैरलोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में आनन-फानन में शीघ्रता से लिये गये निर्णयों के दुष्परिणामों से जब हम मुखातिब होते हैं, तब लगता है कि लोकतंत्र से बेहतर और कोई शासन-व्यवस्था हो नहीं सकती है। इसे जब हम भारतीय लोकतंत्र के 60 वर्षों की अवधि के संदर्भ में देखते हैं तो लगता है कि कार्यक्रम में हम काफी सफल रहे हैं। एक समय था जब लोग “कोई नृप होउ हमें का हानि” के मुहावरे में बातें करते थे।
शासन-व्यवस्था में आम जनता अपने को भागीदार नहीं मानती थी। जनता जज्बातों एवं भावनाओं में अपना वोट करती थी। धनाढ्य एवं आपराधिक छवि के उम्मीदवार जनता के मतों को खरीदने का जज्बा रखते थे। परन्तु, जब हम 2009 में 15वीं लोकसभा के चुनाव का मूल्यांकन करते हैं तो पता चलता है कि भारत की जनता ने एक साथ पूरे देश में आपराधिक छवि के उम्मीदवारों को समूल खारिज कर दिया है। जनता को अब विश्वास हो गया है कि वह अपने मतों से किसी को गिरा एवं उठा सकती है। आज पूरी दुनिया में भारतीय लोकतंत्र की साख बढ़ी है। और इसकी सफलता से अन्य लोकतांत्रिक देश अनुप्राणित हो रहे हैं। यह सच है कि लोकतंत्र को बार-बार जनता की परीक्षाओं में खरा उतरना पड़ता है।
लोगों को जब लोकतंत्र से थोड़ा लाभ मिल जाता है तो उनकी अपेक्षाएँ बढ़ जाती हैं। वे लोकतंत्र से और अच्छे कार्यों की उम्मीद करने लगते हैं। अतएव आप जब किसी से लोकतंत्र के काम-काज एवं भविष्य पर प्रश्न पूछेगे तो वे अपनी निजी अथवा सार्वजनिक समस्याओं का पिटारा खोल देंगे। लोकतंत्र से जनता की अपेक्षाएँ एवं शिकायतें इस बात का सबूत है कि लोकतंत्र कितना गतिमय एवं सफल है।
जनता का संतुष्ट होना दो बातों का द्योतक है। पहला कि तानाशाही व्यवस्था में जनता जबरन संतुष्ट रहती है और दूसरा कि जनता को लोकतंत्र में रुचि नहीं है। तात्पर्य यह है कि किसी तानाशाह के कार्यों का मूल्यांकन जनता भय के कारण नहीं कर पाती है जबकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्ता में बैठे लोगों के कामकाज का मूल्यांकन जनता हर रोज करती है। इस परिप्रेक्ष्य में जब भारतीय लोकतंत्र का मूल्यांकन करेंगे तो स्थितियाँ संतोषजनक प्रतीत होंगी। आज भारतवर्ष में जनता का लगातार प्रजा से नागरिक बनने की प्रक्रिया जारी है।
वास्तव में भारतीय लोकतंत्र विकास की ओर निरंतर अग्रसर है। यह सच है कि यहाँ लोकतंत्र के प्रतिश आशाएं और निराशाएं व्याप्त हैं फिर भी लोकतंत्र यहां खूब फल-फूल रहा है। जनता इसके प्रति सकारात्मक रुख अपना रही है। इस तरह भारत में लोकतंत्र का भविष्य उज्ज्वल है।
प्रश्न 9.
भारतवर्ष में लोकतंत्र कैसे सफल हो सकता है?
उत्तर-
भारत वर्ष में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली पायी जाती है। भारतीय लोकतंत्र की साख पूरी दुनिया में बढ़ी है। परंतु लोकतंत्र उतना परिपक्व नहीं हुआ है। कारण कि जनता का जुड़ाव उस स्तर तक नहीं पहुंचा है जहाँ जनता सीधे तौर पर हस्तक्षेप पर सके। अतएव इसकी सफलता के लिए आवश्यक है कि सर्वप्रथम जनता शिक्षित हो, यह सच्चाई है। लोकतांत्रिक सरकारें बहुमत के आधार पर बनती हैं, परंतु लोकतंत्र का अर्थ बहुमत की राय से चलने वाली व्यवस्था नहीं है, बल्कि यहाँ अल्पमत की आकांक्षाओं पर ध्यान देना आवश्यक होता है।
भारतीय लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक होता है कि सरकार प्रत्येक नागरिक को यह अवसर अवश्य प्रदान कर ताकि वे किसी-न-किसी अवसर पर बहुमत का हिस्सा बन सके। लोकतंत्र की सफलता के लिए लोकतांत्रिक संस्थाओं के अन्दर आंतरिक लोकतंत्र हो। अर्थात् सार्वजनिक हो क्योंकि सत्ता की बागडोर संभालना उनका लक्ष्य होता है। विडम्बना है कि भारतवर्ष में नागरिकों के स्तर पर और खास तौर पर राजनीतिक दलों के अन्दर आंतरिक विमर्श अथवा आंतरिक लोकतंत्र की स्वस्थ परम्परा का सर्वथा अभाव दिखता है। जाहिर है कि इसके दुष्परिणाम के तौर पर सत्ताधारी लोगों के चरित्र एवं व्यवहार गैरलोकतांत्रिक दिखेंगे और लोकतंत्र के प्रति हमारे विश्वास में कमी होगी। इसे हम अपनी सक्रिय भागीदारी एवं लोकतंत्र में अटूट विश्वास से दूर कर सकते हैं।
वास्तव में लोकतंत्र के उपर्युक्त तथ्यों का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि लोकतंत्र उपयुक्त तरीकों द्वारा सफल बनाया जा सकता है।
Bihar Board Class 10 History लोकतंत्र की उपलब्धियाँ Notes
आधुनिक युग में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था संसार के लगभग सौ देशों में किसी-न-किसी रूप में विद्यमान है। लोकतंत्र का लगातार प्रसार एवं उसे मिलने वाला जन-समर्थन यह साबित करता है कि लोकतंत्र अन्य सभी शासन व्यवस्थाओं से बेहतर है। इस व्यवस्था में सभी नागरिकों को मिलने वाला समान अवसर, व्यक्ति की स्वतंत्रता एवं गरिमा आकर्षण के बिन्दु हैं। साथ ही, उसके आपसी विभेदों एवं टकरावों को कम करने और गुण-दोष के आधार पर सुधार की निरंतर संभावनाएं लोगों को इसके करीब लाती हैं। लोकतंत्र में फैसले किसी व्यक्ति-विशेष द्वारा नहीं बल्कि सामूहिक आधार पर लिये जाते हैं। यह विशेषता लोकतंत्र का मूल उद्देश्य है।
लोकतंत्र के प्रति लोगों की उम्मीदों के साथ-साथ शिकायतें भी कम नहीं होती हैं। लोकतंत्र से लोगों की अपेक्षाएँ इतनी ज्यादा हो जाती हैं कि इसकी थोड़ी सी भी कमी खलने लगती है। कभी-कभी तो हम लोकतंत्र को हर मर्ज की दवा मान लेने का भी खतरा मोल लेते हैं और इसे तमाम सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक विषमता को समाप्त करने वाली जादुई व्यवस्था मान लेते हैं। लोकतंत्र के प्रति यह नजरिया न तो सैद्धांतिक रूप से और न ही व्यावहारिक धरातल पर स्वीकार्य है।
जहाँ तक भारतीय लोकतंत्र की उपलब्धियों का प्रश्न है, इस सन्दर्भ में यह सच्चाई है कि भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के काले पक्षों को दर्शाने वाले उदाहरण की कमी नहीं है। आजादी के पश्चात विगत 60 वर्षों के इतिहास में भ्रष्टचार में डूबे राजनीतिज्ञ और लोकतांत्रिक संविधान के मूल उद्देश्यों को विनष्ट करने वाली किस्मों की कमी नहीं है। इन तमाम कमजोरियों के बावजूद हमारा लोकतंत्र पश्चिम के लोकतंत्र से नयाब है जो निरंतर विकास एवं परिवर्धन की ओर उन्मुख है। तात्पर्य यह कि हमें लोकतंत्र को एक सर्वोत्तम शासन व्यवस्था के रूप में देखते हुए इसकी उपलब्धियों को मूल्यांकित करना चाहिए। तो आइए, हम लोकतंत्र से अपेक्षित कतिपय मौलिक तत्वों को परखने का प्रयास करें और इसकी तुलना गैर-लोकतांत्रिक व्यवस्था से करते हुए सकारात्मक समझ बनाने की कोशिश करें।
लोकतंत्र एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें जनता की प्रत्यक्ष भागीदारी होती है। इस शासन व्यवस्था को जन-कल्याणकारी मुद्दों से जोड़ कर देखा जाता है। यदि हम लोकतंत्र का मूल्यांकन । करें तो हम देखते हैं कि लोग चुनावों में भाग लेते हैं, अपने प्रतिनिधियों को चुनने या कार्य करते हैं। यह और बात है कि आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से मजबूत लोगों का दबदबा देखा जाता है। बावजूद इसके जनता में जागरूकता की वृद्धि एवं व्यापक प्रतिरोध से लगातार सुधार की संभावनाएँ बनी रहती हैं। उल्लेखनीय है कि शिक्षा के व्यापक प्रचार-प्रसार के कारण आज लोग अपने मताधिकार का बढ़-चढ़कर उपयोग कर रहे हैं जबकि पूर्व में उन्हें या तो वंचित किया जाता था अथवा उनकी रुचि नहीं रहती थी। इस बात को यदि हम भारतीय संदर्भ में देखें तो स्थितियाँ संतोषप्रद हैं।
लोकतंत्र में बहस-मुबाहिसों के बाद ही फैसले किए जाते हैं। उन फैसलों को विधायिका की लम्बी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। परिणामस्वरूप फैसले में अनिवार्य रूप से देरी होती है। ‘कभी-कभी तो अत्यधिक विलम्ब के कारण लिए गए फैसले भी अप्रासंगिक हो जाते हैं। वहीं दूसरी ओर फैसलों में बिलंब के मामले की तुलना यदि गैरलोकतांत्रिक व्यवस्था से करते हैं तो देखते हैं कि वहाँ फैसले शीघ्र एवं प्रभावी ढंग से लिए जाते हैं। यहाँ गौर करने की बात यह है कि गैरलोकतांत्रिक व्यवस्था में फैसले किसी खास व्यक्ति द्वारा बिना बहस-मुबाहिसों के लिए किए जाते हैं। इन फैसलों को लम्बी विधायी प्रक्रिया से गुजरना भी प्रासंगिक एवं न्यायोचित भी लगते हैं। लोग राहत का भी अहसास करते हैं।
परन्तु इसके फैसलों को यदि हम समग्रता से देखते हैं तो काफी क्षोभ एवं निराशा होती है। कारण स्पष्ट है कि गैरलोकतांत्रिक व्यवस्था के फैसलों में व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों की अधिकता रहती है जो कभी सामूहिक जनकल्याण की दृष्टि से दुरुस्त नहीं होती है। परन्तु, लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोगों को यह जानने का हक होता कि फैसले कैसे एवं किस प्रकार से लिए जाते हैं। तात्पर्य यह है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में पारदर्शिता एवं संतोष का भाव परिलक्षित होता है जबकि गैरलोकतांत्रिक व्यवस्था में इसकी कोई संभावना नहीं रहती है। वास्तव में लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव नियमित रूप से होते है। सरकार जब कानून बनाती है उस पर जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ अपनी जनता के बीच की इसकी चर्चाएं होती है, अतः हम कह सकते हैं कि लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था वैध एवं जनता के प्रति उत्तरदायी होती है।
यह सच है कि समाज में विभिन्न जातियाँ भाषायी एवं सांप्रदायिक समूहों में मतभेदों एवं टकरावों को पूरी तरह से समाप्त कर देने का दावा कोई भी शासन-व्यवस्था नहीं कर सकती है। जैसे मतभेदों के बने रहने के कई सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक कारण है। इनके बीच टकराव तब होते हैं जब इनकी बातों की अनदेखी की जाती है अथवा इन्हें दबाने की कोशिश की जाती है। अक्सर गैरलोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में ऐसी प्रवृत्तियाँ देखी जाती हैं। हाल ही के नेपाल की जनता की आकांक्षाओं की अनदेखी की गई एवं राजपरिवार के इशारे पर दमन का चक्र चलाया , गया। अंततः जनता की ही बीत हुई। सामाजिक मतभेदों एवं अंतरों के बीच बातचीत एवं आपसी समझदारी के माहौल के निर्माण में लोकतंत्र की अहम भूमिका होती है।
लोकतंत्र लोगों के बीच एक दूसरे के सामाजिक एवं सांस्कृतिक विविधताओं के प्रति सम्मान का भाव विकसित करता है। इस बात को दावे के साथ कहा जा सकता है कि विभिनन सामाजिक विषमताओं एवं विविधताओं के बीच संवाद एवं सामंजस्य के निर्माण में सिर्फ लोकतंत्र ही सफल रहा है।
भारतीय लोकतंत्र का परीक्षण एवं अवलोकन पर हमारे मन में मिश्रित प्रतिक्रियाएँ होती हैं। निराशा भी होती है। लेकिन आशाएँ की जाती हैं। हमारी निराशाएँ पहले इस रूप में प्रकट होती हैं कि भारत में लोकतंत्र है ही नहीं अथवा भारत लोकतंत्र के लिए उपयुक्त नहीं है। कभी-कभी । तो ऐसी टिप्पणियाँ भी सुनने को मिलती हैं कि लोकतांत्रिक व्यवस्था तमाम शासन-व्यवस्थाओं की तुलना में असफल एवं पंगु है। स्वाभाविक है कि लोकतंत्र को कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। अतएव इसकी गति निश्चित तौर पर धीमी होती है।
न्यचाय में विलम्ब, विकास दर की धीमी रफ्तार के कारण ऐसा लगने लगता है कि लोकतंत्र बेहतर नहीं है। राजतंत्र एवं तानाशाही व्यवस्था में इसकी गति तेज होती है। परन्तु उसके व्यापक जनकल्याण के तत्व एक सिरे से गायब रहते हैं। साथ ही, गुणवत्ता का सर्वथा अभाव दिखता है। इन निराशाओं के बावजूद आशा की किरण फिर भी प्रस्फुटित होती है। गैरलोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में आनन-फानन में शीघ्रता से लिये गये निर्णयों के दुष्परिणामों से जब हम मुखातिब होते हैं तब लगता है कि लोकतंत्र से बेहतर और कोई शासन-व्यवस्था हो ही नहीं सकती है।
निन्देह भारतीय लोकतंत्र की साख पूरी दुनिया में बढ़ी है। निरन्तर इसके विकास से जनता । की भागीदारी का विस्तार हुआ है। फिर की भारतीय लोकतंत्र उतना परिपक्व नहीं हुआ है। कारण कि जनता का जुड़ाव उस स्तर तक नहीं पहुंचा है, जहाँ जनता सीधे-तौर पर हस्तक्षेप कर सके।
अतएव इसकी सफलता के लिए आवश्यक है कि सर्वप्रथम जनता शिक्षित-हो। शिक्षा ही उनके भीतर जागरुकता पैदा कर सकती है। यह सच्चाई है लोकतांत्रिक सरकारें बहुमत के आधार पर बन जाती हैं, परन्तु लोकतंत्र का अर्थ बहुमत की राय से चलने वाली व्यवस्था नहीं है बल्कि यहाँ
अल्पमत की आकांक्षाओं पर ध्यान देना आवश्यक होता है। भारतीय लोकतंत्र की सफलता के लिए * आवश्यक है कि सरकार प्रत्येक नागरिक को यह अवसर अवश्य प्रदान कर ताकि वे । किसी-न-किसी अवसर पर बहुमतं का हिस्सा बन सके। लोकतंत्र की सफलता के लिए यह भी आवश्यक है कि व्यक्ति के साथ-साथ विभिन्न लोकतांत्रिक संस्थाओं के अन्दर आंतरिक लोकतंत्र हो। अर्थात् सार्वजनिक मुद्दों पर बहस-मुबाहिसों में कमी नहीं हो। राजनीतिक दलों के लिए तो यह अति आवश्यक है क्योंकि सत्ता की बागडोर संभालना उनका लक्ष्य होता है। विडम्बना है कि भारतवर्ष में नागरिकों के स्तर पर और खास तौर पर राजनीतिक दलों के अंदर आंतरिक विमर्श अथवा आंतरिक लोकतंत्र की स्वस्थ परंपरा का सर्वथा आभाव दिखता है।
वास्तव में भारतीय लोकतंत्र की सफलता के अनेक कारण हैं भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था इतनी परिपक्व नहीं हुई है। फिर भी यह विकास की ओर निरन्तर अग्रसर है और इसके उज्ज्वल भविष्य की हम कामना कर सकते हैं।