Bihar Board Class 12 History विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव Textbook Questions and Answers
उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)
प्रश्न 1.
1940 के प्रस्ताव के जरिए मुस्लिम लीग ने क्या माँग की?
उत्तर:
1940 के प्रस्ताव के जरिए मुस्लिम लीग की माँग:
उपमहाद्वीप के मुस्लिम-बहुल इलाकों के लिए सीमित स्वायत्तता की माँग करते हुए प्रस्ताव पेश किया। इस अस्पष्ट से प्रस्ताव में कहीं भी विभाजन या पाकिस्तान का उल्लेख नहीं था। इस प्रस्ताव को लिखने वाले पंजाब के प्रधानमंत्री और यूनियनिस्ट पार्टी के नेता सिकन्दर हयात ने 1 मार्च, 1941 को पंजाब असेम्बली को संबोधित करते हुए घोषणा की थी वह ऐसे पाकिस्तान की अवधारणा का विरोध करते हैं जिसमें यहाँ मुस्लिम शासन और शेष स्थानों पर हिंदू राज स्थापित होगा। यदि ऐसा है तो पंजाब के खालसा ऐसे मुस्लिम राज का विरोध करते हैं। उन्होंने संघीय इकाइयों की स्वायत्तता के आधार पर एक ढीले-ढीले (संयुक्त) महासंघ बनाने के अपने विचारों को पुनः दोहराया।
प्रश्न 2.
कुछ लोगों को ऐसा क्यों लगता था कि बंटवारा बहुत अचानक हुआ?
उत्तर:
1940 का पाकिस्तान प्रस्ताव अस्पष्ट था परन्तु 1947 में पाकिस्तान के गठन से लोगों को आश्चर्य हुआ। दूसरी जगह जाने वाले लोग सोच रहे थे कि जैसे ही शांति बहाल होगी, वे वापस लौट आयेंगे। प्रारंभ में मुस्लिम लीग या स्वयं जिन्ना ने भी पाकिस्तान की सोच को गंभीरता से नहीं उठाया था। द्वितीय विश्व युद्ध के कारण ब्रिटिश सरकार स्वतंत्रता के विषय में चुप थी परन्तु “भारत छोड़ो” आन्दोलन ने उन्हें इस विषय में सोचने के लिए विवश कर दिया।
प्रश्न 3.
आम लोग विभाजन को किस तरह देखते थे?
उत्तर:
विभाजन के विषय में आम लोग यह सोचते थे कि यह विभाजन स्थायी नहीं होगा अथवा शांति बहाली के पश्चात् सभी लोग अपने मूल स्थान लौट आयेंगे। वे मानते थे कि पाकिस्तान के गठन का मतलब यह कदापि नहीं होगा कि एक देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में जाने वाले लोगों को वीजा और पासपोर्ट की जरूरत पड़ेगी। जो लोग अपने रिश्तेदारों, मित्रों और जानकारों से बिछुड़ जाएंगे, वह हमेशा के लिए बिछड़े रहेंगे। जो लोग गंभीर नहीं थे या राष्ट्र विभाजन के गंभीर परिणामों की जाने-अनजाने में अनदेखी कर रहे थे, वे यह मानने को तैयार नहीं थे कि दोनों देशों के लोग पूर्णरूप से हमेशा के लिए जुदा हो जायेंगे। आम लोगों का ऐसा सोचना उनके भोलेपन या अज्ञानता और यथार्थ से आँखें बंद कर लेने के समान था।
प्रश्न 4.
विभाजन के खिलाफ महात्मा गांधी की दलील क्या थी?
उत्तर:
विभाजन के खिलाफ महात्मा गांधी की दलील –
- विभाजन के खिलाफ महात्मा गांधी यह दलील देते थे कि विभाजन उनकी लाश पर होगा। ये विभाजन के कट्टर विरोधी थे।
- महात्मा गांधी को विश्वास था कि वे देश में धीरे-धीरे साम्प्रदायिक एकता पुनः स्थापित हो जायेगी, इसलिए विभाजन की कोई आवश्यकता नही है।
- भारत के लोग घृणा और हिंसा का रास्ता छोड़ देगे और सभी मिलकर दो भाइयों की तरह अपनी सभी समस्याओं का निदान कर लेंगे।
- वह यह मानते थे कि अहिंसा, शांति, साम्प्रदायिक भाईचारे के विचारों को हिंदू और मुसलमान दोनों मानते हैं। उन्होंने हर जगह हिंदू और मुसलमानों से शांति बनाये रखने, परस्पर प्रेम और एक-दूसरे की रक्षा करने का अनुरोध किया।
- गांधी जी यह स्वीकार करते थे कि सैंकड़ों साल से हिंदू, मुस्लिम इकट्ठे रहते आ रहे हैं। वे. एक जैसी वेशभूषा धारण करते हैं, एक जैसा भोजन खाते हैं, इसलिए शीघ्र ही आपसी घृणा भूल जायेंगे और वे पहले की तरह एक-दूसरे के दुःख-सुख में हिस्सा लेंगे।
प्रश्न 5.
विभाजन को दक्षिण एशिया के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ क्यों माना जाता है?
उत्तर:
विभाजन: दक्षिण एशिया के इतिहास का एक ऐतिहासिक मोड़ –
- विभाजन तो इससे पहले भी हुए परन्तु यह विभाजन इतना व्यापक हिंसात्मक था कि दक्षिण एशिया के इतिहास में इसे एक नए ऐतिहासिक मोड़ के रूप में देखा गया।
- विभाजन के दौरान हिंसा अनेक बार हुई। दोनों सम्प्रदायों के नेता इतने भयंकार दुष्परिणामों की आशा भी नहीं कर सकते थे।
- इस विभाजन के दौरान भड़के साम्प्रदायिक दंगों के कारण लाखों लोग मारे गये और नये सिरे से अपनी जिंदगी शुरू करने के लिए विवश हुए।
निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में)
प्रश्न 6.
ब्रिटिश भारत का बँटवारा क्यों किया गया?
उत्तर:
ब्रिटिश भारत के बँटवारे के कारण:
15 अगस्त, 1947 ई. ‘को भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति’ विश्व इतिहास की एक उल्लेखनीय घटना है। अंग्रेजों ने भारत को स्वतंत्र तो कर दिया, पर उसे दुर्बल बनाने के लिए उसे दो भागों-भारत और पाकिस्तान में विभाजित कर दिया। गांधी जी भारत का विभाजन बिल्कुल नहीं चाहते थे। देश का विभाजन होने के प्रमुख कारण इस प्रकार थे:
1. अंग्रेजों का षड्यंत्र:
भारत का विभाजन अंग्रेजों के षड्यंत्र का परिणाम था। उन्होंने भारत को दुर्बल बनाये रखने के लिए इसका विभाजन किया। 1942 ई. के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ से अंग्रेज जान गए थे कि उन्हें भारत छोड़ना ही है। उन्होंने योजना बना ली कि यदि भारत को स्वतंत्र करना ही है तो उसे विभाजित कर दिया जाये।
2. मुस्लिम लीग की स्थापना:
अंग्रेजों से प्रेरणा तथा संरक्षण पाकर मुसलमानों ने अपने हितों की रक्षा के लिए 1906 ई. में मुस्लिम लीग की स्थापना की। अपने हितों के लिए अंग्रेजों के भक्त बने रहे। अंग्रेजों द्वारा मार्ले-मिण्टो सुधारों में मुसलमानों को अलग से प्रतिनिधि चुनने का अधिकार देकर साम्प्रदायिकता का विकास किया।
3. कांग्रेस की दुर्बल नीति:
कांग्रेस ने लीग को प्रसन्न करने के लिए उसकी अनुचित बातों को मानकर उसे बढ़ावा दे दिया। 1916 ई. में कांग्रेस ने लखनऊ समझौते के अनुसार मुसलमानों के अलग प्रतिनिधित्व को स्वीकार करके भारत में सम्प्रदायवाद को स्वीकार कर लिया। इसके बाद खिलाफत आन्दोलन को असहयोग आन्दोलन में शामिल करना और सी. आर. योजना में लीग को अधिक रियायतें देना कांग्रेस की दुर्बल नीति के परिणाम थे। इससे जिन्ना को विश्वास हो गया कि कांग्रेस उसकी माँग का विरोध नहीं करेगी। यही कारण था कि उसने पाकिस्तान की मांग की।
4. अंतरिम सरकार की असफलता:
अंतरिम सरकार में कांग्रेस का बहुमत था लेकिन लीग उसके प्रत्येक काम में बाधा डालती थी। इससे देश में रचनात्मक कार्यों की अपेक्षा रक्तपात और दंगों को बढ़ावा मिला। अंतरिम सरकार की असफलता से यह स्पष्ट हो गया कि कांगेस और मुस्लिम लीग मिल कर कार्य नहीं कर सकते। कहीं गृहयुद्ध न छिड़ जाये इसलिए एक आवश्यक बुराई के रूप में गांधी जी तथा अन्य राष्ट्रीय नेताओं ने विभाजन को स्वीकार कर लिया।
5. हिंदू-मुस्लिम दंगे:
अंग्रेजों से बढ़ावा पाकर मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग को पूरा करवाने के लिए देश भर में हिंदू-मुस्लिम दंगे करवाये। बंगाल और पंजाब में तैमूर और नादिरशाह के अत्याचारों की याद एक बार फिर से ताजा हो गयी। फिर से राष्ट्रीय नेताओं ने लाखों बेकसूर लोगों का खून बहाने की बजाय मुस्लिम लीग की मांग की।
प्रश्न 7.
बंटवारे के समय औरतों के क्या अनुभव रहे?
उत्तर:
बंटवारे के समय औरतों के अनुभव –
- बंटवारे के दौरान औरतों को अनेक दर्दनाक कष्टों का सामना करना पड़ा । अनेक विद्वानों और इतिहासकारों ने इस दर्द को महसूस किया। अनेक औरतों का बलात्कार हुआ, उन्हें अगवा किया गया और उन्हें बार-बार बेचा-खरीदा गया।
- औरतें अजनबियों के साथ जिंदगी गुजारने के लिए विवश की गई। इससे कुछ नये पारिवारिक संबंध विकसित किये गये। भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने इन्सानी संबंधों की और बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया।
- अनेक औरतों को नये परिवार से निकाल कर पुराने परिवारों में भेजने का निश्चय किया गया। इस संबंध में उनसे कोई सलाह नहीं ली गई और उनके अधिकारों का तिरस्कार किया गया । लगभग 30 हजार औरतों को बरामद किया गया और उन्हें भारत या पाकिस्तान भेजा गया।
- कई औरतों ने उस हिंसा भरे वातावरण में अपनी इज्जत की रक्षा के लिए अथक परन्तु निष्फल प्रयास किये।
- पुरुष अपनी बीवी, बेटी तथा बहन को अपने शत्रु के नापाक इरादों से बचाने के लिए उनकी हत्या कर देता था। खालसा गाँव की घटना इसका उदाहरण है जिसमें 90 औरतों ने कुएँ में कूदकर अपनी जान दे दी।
- संभवतः पुरुष भी औरतों को ऐसा करने के लिए उकसाते थे। प्रतिवर्ष 13 मार्च को इसे शहादत के रूप में मनाया जाता है और इससे सिक्ख औरतें प्रेरणा प्राप्त करती है।
प्रश्न 8.
बंटवारे के सवाल पर कांग्रेस की सोच कैसे बदली?
उत्तर:
1. गाँधी जी सहित अनेक कांग्रेस के नेता मुस्लिम लीग को उसकी राष्ट्र विभाजन की मांग छोड़ने के लिए राजी करने में विफल रहे।
2. मुस्लिम लीग ने अधिक मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों को पाकिस्तान के लिए मांगकर कुछ कांग्रेसयिों के दिमाग में यह विचार उत्पन्न कर दिया कि शायद कुछ समय बाद गाँधी जी देश की एकता को पुनः स्थापित करने में कामयाब हो जायेंगे परन्तु ऐसा नहीं हुआ।
3. कुछ कांग्रेसी नेता सत्ता के प्रति ज्यादा लालायित थे। वे चाहते थे कि चाहे देश का विभाजन हो लेकिन अंग्रेज चले जाएँ और उन्हें सत्ता तुरंत मिल जाये।
4. मुस्लिम लीग के द्वारा प्रत्यक्ष कार्यवाही करने की धमकी और बंगाल में उसके द्वारा बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक दंगे भड़काना, हिंदू महासभा जैसे साम्प्रदायिक दल के द्वारा हिंदू राष्ट्र को उठाना और कुछ अंग्रेज अधिकारियों द्वारा यह घोषित कर देना कि यदि लीग और कांग्रेस किसी निर्णय पर नहीं पहुंचेंगे तो भी अंग्रेज भारत को छोड़कर चले जायेंगे। कांग्रेस जानती थी कि 90 वर्ष बीतने के बाद भी अंग्रेज अपनी महिलाओं, बच्चों आदि के लिए वे खतरे नहीं उठाना चाहते थे जो उन्होंने 1857 के विद्रोह के दौरान अनुभव किये थे।
5. मुस्लिम लीग की अन्य कई कार्यवाहियों ने कांग्रेस की सोच को बदल डाला। 1946 के चुनाव में जिन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी बहुल थी वहाँ मुस्लिम लीग की सफलता, मुस्लिम लीग के द्वारा संविधान सभा का बहिष्कार करना, अंतरिम सरकार में शामिल न करना और जिन्ना के दोहरे राष्ट्र सिद्धांत पर बार-बार बल देना कांग्रेस की मानसिकता पर राष्ट्र विभाजन समर्थक निर्णय बनाने में सहायक रही।
प्रश्न 9.
मौखिक इतिहास के फायदे/नुकसानों की पड़ताल कीजिए। मौखिक इतिहास की पद्धतियों से विभाजन के बारे में हमारी समझ को किस तरह विस्तार मिलता है?
उत्तर:
मौखिक इतिहास के फायदे/नुकसान एवं मौखिक इतिहास की पद्धतियों से विभाजन के बारे में समझ का विस्तार –
1. मौखिक वृत्तांत, संस्करण, डायरियाँ, पारिवारिक इतिहास और स्वलिखित ब्यौरों से तकसीम (बंटवारा) के दौरान आम लोगों की कठिनाइयों और मुसीबतों को समझने में सहायता मिलती है।
2. लाखों लोग बंटवारे की पीड़ा तथा एक मुश्किल दौर को चुनौती के रूप में देखते हैं।
3. भारत का विभाजन अगस्त, 1947 में हुआ। लाखो लोगों ने बंटवारे की पीड़ा और उसके अश्वेत (काले) दौर को देखा। उनके लिए यह केवल संवैधानिक विभाजन या राजनैतिक पार्टियों की दलगत राजनीति का मामला नहीं था। मौखिक इतिहास की गवाही देने वाले और सुनने वाले लोगों के लिए यह बदलाव का ऐसा वक्त था जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी।
4. 1946 से 1950 तक और उसके बाद भी जारी रहने वाले इन परिवर्तनों से निपटने के लिए इतिहासकारों को मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और सामाजिक समायोजन की आवश्यकता थी। यूरोपीय महाध्वंस की भाति देश के विभाजन को एक राजनैतिक घटना के रूप में नहीं देखना चाहिए अपितु इसकी पीड़ा को झेलने वाले लोगों के अनुभवों का प्रेक्षण और अध्ययन भी करना चाहिए। किसी घटना की वास्तविकता को स्मृतियों और अनुभव से भी आकार प्राप्त होता है।
5. मौखिक स्रोतों में व्यक्तिगत स्मृतियाँ महत्त्वपूर्ण हैं। इसकी विशेषता यह है कि उनसे अनुभवों और स्मृतियों को और बारीकी से समझने का मौका मिलता है। इससे इतिहासकारों को बंटवारे जैसी घटनाओं के दौरान लोगों के साथ क्या-क्या हुआ, इस बारे में बहुरंगी और सजीव वृत्तांत लिखने की योग्यता मिलती है।
6. मौखिक विवरण अपने-आप नहीं मिलते। उन्हें साक्षात्कार के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। साक्षात्कार में भी लोगों के दर्द, अहसास और सूझबूझ से काम लेना पड़ता है। यहाँ यह भी मुश्किल आती है कि सभी लोग आपबीती सुनाने के लिए तैयार नहीं होते। उदाहरण के लिए यदि किसी औरत का बलात्कार हुआ है तो इस बारे में वह अपना मुँह कैसे खोल सकती है। ऐसी पीड़ित महिला के साथ सघन और उपयोगी जानकारी प्राप्त करने के लिए आत्मीय संबंध विकसित करना होगा। इसके अलावा याददाश्त की समस्या आती है। मौखिक इतिहासकारों को विभाजन के वास्तविक अनुभवों की बनावटी यादों के जाल से बाहर निकालने के लिए चुनौतीपूर्ण काम भी करना पड़ता है।
मानचित्र कार्य
प्रश्न 10.
दक्षिण एशिया के नक्शे पर कैबिनेट मिशन प्रस्तावों में उल्लिखित भाग क, ख और ग को चिन्हित कीजिए। यह नक्शा मौजूदा दक्षिण एशिया के राजनैतिक नक्शे से किस तरह अलग है?
उत्तर:
परियोजना कार्य (कोई एक)
प्रश्न 11.
यूगोस्लाविया के विभाजन को जन्म देने वाली नृजातीय हिंसा के बारे में पता लगाइए। उसमें आप जिन नतीजों पर पहुँचते हैं, उनकी तुलना इस अध्याय में भारत विभाजन के बारे में बताई गई बातों से कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 12.
पता लगाइए कि क्या आपके शहर, कस्बे, गाँव या आसपास के किसी स्थान पर दूर से कोई समुदाय आकर बसा है (हो सकता है आपके इलाके में बंटवारे के समय आए लोग भी रहते हों)। ऐसे समुदायों के लोगों से बात कीजिए और अपने निष्कर्षों को एक रिपोर्ट में संकलित कीजिए। लोगों से पूछिए कि वे कहाँ से आए हैं, उन्हें अपनी जगह क्यों छोड़नी पड़ी और उससे पहले व बाद में उनके कैसे अनुभव रहे। यह भी पता लगाइए कि उनके आने से क्या बदलाव पैदा हुए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।
Bihar Board Class 12 History विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव Additional Important Questions and Answers
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
बंटवारे की हिंसा और जर्मन होलोकॉस्ट में क्या अंतर था?
उत्तर:
- 1947-48 में भारतीय उपमहाद्वीप में हत्या की कोई सरकारी मुहिम नहीं चली जबकि नाजीवादी शासन में यही हो रहा था।
- भारत विभाजन के समय जो “नस्ली सफाया” हुआ वह सरकारी निकायों की नहीं बल्कि धार्मिक समुदायों के स्वयंभू प्रतिनिधियों की कारगुजारी थी।
प्रश्न 2.
भारत का बंटवारा किस प्रकार महाध्वंस (होलोकास्ट) था?
उत्तर:
- इसमें हिंसा का भयंकर रूप दिखाई देता है। कई लाख लोग मारे गये, अनेक औरतों का बलात्कार हुआ और अपहरण हुआ, करोड़ों परिवार उजड़ गये और रातों-रात अजनबी जमीन पर शरणार्थी (Refugee) बनकर रह गये।
- इसमें नुकसान का हिसाब लगाना मुश्किल है। एक अनुमान के अनुसार इस महाध्वंस के शिकार 2 लाख से 5 लाख लोग बने।
प्रश्न 3.
ब्रिटिश सरकार के अगस्त प्रस्ताव को कांग्रेस ने क्यों अस्वीकार कर दिया था।
उत्तर:
अगस्त प्रस्ताव में भारत को औपनिवेशिक राज्य का दर्जा देने का प्रावधान रखा गया था। कांग्रेस ने इसे अस्वीकार कर दिया, क्योंकि उनकी मांग पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करने की थी।
प्रश्न 4.
लखनऊ समझौते (1916) का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
- यह समझौता दिसम्बर 1916 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के आपसी तालमेल को दर्शाता है।
- इस समझौते के अंतर्गत कांग्रेस ने पृथक चुनाव क्षेत्रों को स्वीकार किया। समझौते ने कांग्रेस के मध्यमार्गियों, उग्रपंथियों और मुस्लिम लीग के लिए एक संयुक्त राजनीतिक मंच प्रदान किया।
प्रश्न 5.
कांग्रेस मंत्रिमंडल ने त्यागपत्र क्यों दिया?
उत्तर:
भारतीय नेताओं ने द्वितीय विश्वयुद्ध में सहयोग देने के लिए अंग्रेजों के सामने यह शर्त रखी कि उन्हें स्वतंत्रता प्रदान करने पर ही उनका सहयोग संभव होगा। अंग्रेजों से संतोषजनक उत्तर न मिलने पर कांग्रेस मंत्रिमंडल ने अक्तूबर-नवम्बर, 1939 ई. में त्यागपत्र दे दिया।
प्रश्न 6.
मस्जिद के सामने संगीत से साम्प्रदायिकता को कैसे बढ़ावा मिलता है?
उत्तर:
रूढ़िवादी मुसलमान इसे अपनी नमाज या इबादत में खलल मानते थे।
प्रश्न 7.
1937 के चुनाव में मुस्लिम लीग के प्रभाव क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
- मुस्लिम लीग संयुक्त प्रांत, बम्बई और मद्रास में लोकप्रिय थी।
- बंगाल में मुस्लिम लीग का सामाजिक आधार काफी कमजोर था और उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत एवं पंजाब में नहीं के बराबर था। सिंध में भी उसकी स्थिति कमजोर थी।
प्रश्न 8.
20 वीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में साम्प्रदायिकता में क्यों वृद्धि हुई?
उत्तर:
- 1920 और 1930 के दशकों में कई घटनाओं की वजह से तनाव उभरे। मुसलमानों को मस्जिद के सामने संगीत, गो रक्षा आन्दोलन और आर्य समाज की शुद्धि की कोशिशें जैसे मुद्दों पर गुस्सा आया।
- दूसरी ओर हिंदू 1923 के बाद प्रचार और संगठन के विस्तार से उत्तेजित हुए। जैसे-जैसे लोग दूसरे समुदायों के खिलाफ लामबंद होकर अधिक एकजुटता बनाने लगे, देश के विभिन्न विभिन्न भागों में दंगे फैलते गए।
प्रश्न 9.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग ने क्रिप्स मिशन के प्रस्ताव को क्यों अस्वीकार कर दिया?
उत्तर:
क्रिप्स मिशन में शीघ्र स्वशासन स्थापित करने का प्रस्ताव अवश्य था, परन्तु सत्ता का हस्तान्तरण करने से संबंधित उपबंधं नहीं रखे गए थे। कांग्रेस ने इसको नहीं माना जबकि मुस्लिम लीग ने इसमें पाकिस्तान का प्रावधान न रहने के कारण अस्वीकार किया।
प्रश्न 10.
कैबिनेट मिशन का क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
कैबिनेट मिशन का उद्देश्य भारतीय नेताओं से सत्ता हस्तांतरण की शर्तों पर बातचीत करने का था।
प्रश्न 11.
“1946 में भारतीय जनता में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध व्यापक असंतोष एवं बगावत एक चुनौती थी।” दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
- यद्यपि अंतरिम सरकार की योजना पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों सहमत थे परन्तु समूहबद्धता के मुद्दे पर सहमति नहीं थी।
- वायसराय मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों को परिषद् की सदस्यता नहीं दी। इसका मुसलमानों ने कड़ा विरोध किया और प्रत्यक्ष कार्यवाही की धमकी दी।
प्रश्न 12.
आजादी के बाद भी गांधी जी क्यों दुःखी थे?
उत्तर:
- भारत विभाजन के कारण और।
- दोनों राज्यों में रक्तपात तथा दंगों के भड़क उठने के कारण।
प्रश्न 13.
भारत में औरतों की बरामदगी का क्या आंकड़ा था?
उत्तर:
- औरतों के अधिकारों को नकारते हुए कुल मिलाकर लगभग 30,000 औरतों को बरामद किया गया।
- इनमें 22 हजार मुस्लिम औरतों को भारत से और 8 हजार हिंदू और सिक्ख औरतों को पाकिस्तान से निकाला गया। यह मुहिम 1954 में जाकर खत्म हुई।
प्रश्न 14.
प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
- अन्तरिम सरकार में मुसलमानों को मनोनीत करने के कांग्रेस के अधिकार को मुस्लिम लीग ने स्वीकार नहीं किया और जुलाई के अंत में कैबिनेट मिशन के तथाकथित समझौते को भी अस्वीकार कर दिया।
- मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की अपनी मांग को असली जामा पहनाने के लिए 16 अगस्त 1946 को ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ मनाने की घोषणा की। मुसलमानों ने कलकत्ता दंगे किए और चारों ओर मारकाट एवं खून खराबे का दृश्य उपस्थित कर दिया।
प्रश्न 15.
हिंदू महासभा के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
- हिंदुओं का महत्त्वपूर्ण संगठन हिंदू महासभा थी। इसकी स्थापना 1915 में हुई तथा इसका प्रभाव उत्तर भारत तक सीमित रहा।
- यह पार्टी हिन्दुओं के बीच जाति एवं सम्प्रदाय के अंतर को खत्म कर हिंदू समाज में एकता पैदा करने की कोशिश करती थी।
प्रश्न 16.
द्विराष्ट्र सिद्धान्त का क्या अर्थ है? यह किस प्रकार से भारतीय इतिहास की एक मिथ्या धारणा थी?
उत्तर:
- द्विराष्ट्र सिद्धांत के अनुसार भारत में हिंदुओं एवं मुसलमानों के दो अलग-अलग राष्ट्र हैं, इसलिए वे एक होकर नहीं रह सकते।
- यह सिद्धांत इस आधार पर मिथ्या था कि मध्यकाल में हिन्दुओं तथा मुसलमानों ने एक साँझी संस्कृति का विकास किया। 1857 की क्रांति में भी वे एकजुट होकर लड़े।
प्रश्न 17.
क्रिप्स मिशन क्यों असफल हो गया?
उत्तर:
- मुस्लिम लीग ने क्रिप्स मिशन प्रस्तावों को इसलिए ठुकरा दिया क्योंकि इन प्रस्तावों में पाकिस्तान के निर्माण का कहीं जिक्र नहीं था।
- ब्रिटिश सरकार युद्ध (द्वितीय विश्व युद्ध) के बाद भी भारत को स्वाधीनता का वचन देने के लिए तैयार न थी। अत: कांग्रेस भी इन प्रस्तावों से सहमत न थी।
प्रश्न 18.
मुस्लिम लीग की स्थापना कब हुई? इसकी क्या मांग थी?
उत्तर:
- मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में ढाका में हुई।
- 1940 के दशक में यह पार्टी भारतीय महाद्वीप के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों की स्वायत्तता या फिर पाकिस्तान की मांग करने लगी।
प्रश्न 19.
1909 में मुसलमानों के लिए बनाये गए पृथक् चुनाव क्षेत्रों का साम्प्रदायिक राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
- पृथक् चुनाव मुसलमानों के आरक्षित क्षेत्र थे। इनमें केवल मुस्लिम उम्मीदवार को ही टिकट दी जाती थी और उन्हीं में से प्रतिनिधि चुने जा सकते थे।
- इस प्रणाली से राजनेता साम्प्रदायिक नारे लगाकर अपना पक्ष मजबूत कर सकते थे।
प्रश्न 20.
कांग्रेस ने संयुक्त प्रांत में मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन सरकार क्यों नहीं बनाई?
उत्तर:
- संयुक्त प्रांत में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत प्राप्त था।
- मुस्लिम लीग जमींदारी प्रथा का समर्थन कर रही थी जबकि कांग्रेस इसे समाप्त करना चाहती थी।
प्रश्न 21.
13 मार्च को सिक्ख शहादत कार्यक्रम क्यों करते हैं?
उत्तर:
रावलपिंडी जिले के थुआ खालसा गाँव के दंगों के दौरान 90 महिलाओं ने शत्रुओं के गलत इरादों से बचने के लिए कुएँ में छलाँग लगाकर अपनी जान दे दी। महिलाओं के इस कृत्य को शहादत नाम दिया गया तथा प्रतिवर्ष इस घटना की याद में कई कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
प्रश्न 22.
मुहाजिर कौन लोग हैं?
उत्तर:
उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और हैदराबाद के पचास और साठ के दशक में पाकिस्तान जाने वाले उर्दूभाषी लोग।
प्रश्न 23.
आत्मकथाओं के अध्ययन में इतिहासकारों को पेश आने वाली दो समस्याओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
- लेखक अपनी स्मृति के आधार पर आत्मकथा लिखता है अतः विस्तृत घटनाएँ उसके लेखन में नहीं आ पाती।
- आत्मकथा का लेखक प्रायः लोगों के सामने अपनी छवि को स्वच्छ दिखाने का प्रयास करता है इस कारण उसकी त्रुटियाँ इतिहासकारों से छिपी रह जाती है।
प्रश्न 24.
कांग्रेस ने 1940 ई. में मौलाना अब्दुल कलाम आजाद के नेतृत्व में व्यक्तिगत सत्याग्रह क्यों किया?
उत्तर:
- कांग्रेस भारत को अंग्रेजों से शीघ्र आजाद कराना चाहती थी। वह चाहती थी कि ब्रिटिश सरकार उसे आश्वासन दे दे कि द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होते ही भारत को आजाद कर दिया जायेगा। गांधी जी ने इसीलिए व्यक्तिगत नागरिक अवज्ञा आन्दोलन 17 अक्तूबर, 1940 को शुरू किया।
- सरकार ने शीघ्र ही लगभग 30 हजार सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर लिया। इसमें कई प्रमुख नेता यथा-सरोजनी नायडू, अरुणा आसफ अली और सी. राजगोपालाचारी थे।
प्रश्न 25.
उर्दू कवि मोहम्मद इकबाल का ‘उत्तर पश्चिमी मुस्लिम राज्य’ से क्या आशय था?
उत्तर:
भारत संघ के भीतर ही इन इलाकों को स्वायत्त इकाई बनना।
प्रश्न 26.
1945 में जिन्ना की सत्ता हस्तान्तरण की वार्ता किन दो मांगों के कारण टूट गयी?
उत्तर:
- प्रस्तावित कार्यकारिणी सभा के लिए मुस्लिम सदस्यों के चुनाव का अधिकार केवल मुस्लिम लीग को ही दिया जायेगा।
- लीग को इस सभा में साम्प्रदायिक आधार पर निषेध राधिकार भी दिया जाए।
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
1906 में मस्लिम लीग की स्थापना के कारण बताइए।
उत्तर:
मुस्लिम लीग की स्थापना:
सन् 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना के कारण निम्नलिखित थे –
1. अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो नीति:
अंग्रेजों की नीति फूट डालकर राज करने की थी। उन्होंने हिन्दू और दूसलमानों के बीच साम्प्रदायिकता को खूब उछाला। भारत के हिन्दुओं को उन्होंने मुसलमानों का शासक बताया। 1905 में लार्ड कर्जन ने बंग-भंग करके साम्प्रदायिकता को खूब फैलाया। उन्होंने नये प्रांत में मुसलमानों के बहुमत का दावा किया। अपने प्रभाव में लेने के लिए अंग्रेजों ने ढाका के नवाब सलीमुल्ला खाँ को थपथपाया और मुस्लिम सम्प्रदाय के धार्मिक नेता आगा खाँ को हिन्दुओं के विरुद्ध भड़काया।
2. शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ापन:
मुस्लिम समाज में बहुत कम लोग शिक्षित थे। थोड़े से लोग जो अपने को शिक्षित मानते थे, वे भी धार्मिक स्थानों (मस्जिद) में पढ़े थे जिसके कारण उनके विचार संकीर्ण थे।
3. सैयद अहमद खाँ की भूमिका:
हालाँकि सैयद अहमद खाँ अपने को शिक्षित और बुद्धिवादी मानता था परन्तु उसने साम्प्रदायिकता बढ़ाने में कोई कमी नहीं छोड़ी। उसने हिन्दू और मुसलमानों को कभी साथ न जुड़ पाने वाले दो अलग-अलग राष्ट्र बताया।
4. पृथक् निर्वाचन का अधिकार देकर:
अंग्रजों (लार्ड मिन्ट) ने मुसलमानों को साम्प्रदायिकता के आधार पर पृथक् निर्वाचन का अधिकार दे दिया। इससे मुसलमान अपने-आपको हिन्दुओं से अलग मानने लगे।
प्रश्न 2.
बँटवारे के दौरान अब्दुल लतीफ (मुस्लिम) ने शोधकर्ता (हिन्दू) की क्या-क्या सहायता की और क्यों की?
उत्तर:
- अब्दुल लतीफ पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर का एक मुस्लिम कर्मचारी था। उसने शोधकर्ता को शोध के लिए पुस्तकें और फोटो कापियाँ उपलब्ध कराई।
- शोधकर्ता के प्रति उसका रवैया अत्याधिक सहानुभूतिपूर्ण था।
- वह विभाजन के समय अपने पिता की जान बचाने वाले हिन्दू और संपूर्ण हिन्दू जाति का स्वयं को कर्जदार मानता था।
प्रश्न 3.
मुसलमानों में पृथकवादी विचारधारा भरने में सैयद अहमद खाँ का क्या योगदान है?
उत्तर:
इतिहासकारों का कहना है कि सैयद अहमद खाँ का प्रभाव उन दिनों मुसलमानों पर बहुत था। उनका प्रारंभिक जीवन एक शिक्षा शास्त्री और समाजसुधारक का था और इसी कारण उनका मुसलमानों पर काफी प्रभाव पड़ा। उनके विचार कट्टरवादी और रुढ़िवादी थे। उन्होंने मुसलमानों की धार्मिक नब्ज पर हाथ डालकर उनको कट्टरवाद् और अलगाववाद की ओर प्रोत्साहित किया। 1880 ई. में उन्होंने स्पष्ट घोषणा की कि हिन्दू और मुसलमान दो अलग-अलग विचार हैं, अलग-अलग कौम हैं और ये कभी एक हो ही नहीं सकतीं। उन्होंने अंग्रेजों के प्रति भक्ति और वफादारी दिखाई और अंग्रेजों के शासन की जगह-जगह प्रशंसा की। सैयद अहमद खाँ ने अंग्रेजों की चापलूसी करके साम्प्रदायिकता को निरन्तर आगे बढ़ाया। सन् 1985 में जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई तो सैयद अहमद खाँ ने बनारस के राजा शिवप्रसाद के साथ मिलकर इसका विरोध किया।
प्रश्न 4.
भारत में साम्प्रदायिकता के विकास के कारण बताइए।
उत्तर:
भारत में साम्प्रदायिकता के विकास के कारण –
1. इतिहास के गलत तथ्य:
अंग्रेजों ने इतिहास में गलत तथ्यों को पढ़ाया और लिखा। उन्होंने मध्यकाल को मुगलकालीन या मुसलमानों का काल कहा। उन्होंने बताया कि हिन्दुस्तान में मुस्लिम लोग हमेशा शासक रहे और हिन्दू शासित। उन्होंने हिन्दू और मुस्लिम संस्कृति को कभी भी मिली-जुली संस्कृति नहीं बताया।
2. उग्र राष्ट्रवादी:
कुछ उग्र राष्ट्रवादियों ने प्राचीन भारतीय संस्कृति को अधिक महत्व दिया और मध्यकालीन संस्कृति की अवहेलना की।
3. मुस्लिम लीग की स्थापना:
सन् 1906 में गठित मुस्लिम लीग को अंग्रेजों ने अपना पूरा सम्मान दिया। इसके बदले में मुसलमानों ने बंग-भंग का समर्थन किया। मुसलमानों को किया।
4. देश का पिछड़ापन:
देश आर्थिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ था। फिर भी मुसलमानों ने देश के पिछड़ेपन को साम्प्रदायिकता, जातपात और प्रान्तीयता के आधार पर हल करना चाहा। अंग्रेज भी ऐसा ही चाहते थे। वह हर काम ऐसा चाहते थे जिससे देश में अधिक से अधिक साम्प्रदायिकता बढ़े और हिन्दू तथा मुसलमानों में फूट पड़े।
प्रश्न 5.
भारत विभाजन के संबंध में मौखिक इतिहास या मौखिक स्रोतों का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
भारत विभाजन के संबंध में मौखिक इतिहास या मौखिक स्रोतों का महत्त्व –
1. मौखिक इतिहास में इतिहासकारों को गरीबों और कमजोरों, गेहूँ के खाली बोरों को बेचकर चार पैसे का जुगाड़ करने और थोक भाव पर खुदरा गेहूँ बेचने वाले शरणार्थियों, बिहार में बन रही सड़क पर काम के बोझ से दबी मध्यवर्गीय बंगाली विधवा आदि के विषय में जानने और इनसे अधिकारिक तौर पर छिपाई गई बातों के उद्घाटन करने का मौका मिलता है।
2. अभी भी अनेक इतिहासकार मौखिक इतिहास के विषय में शंकालु है। वे इसे अस्वीकर करते हुए कहते हैं कि मौखिक जानकारियों में सटीकता नहीं होती और उनसे घटनाओं का जो क्रम उभरता है वह प्रायः सही नहीं होता।
3. भारत विभाजन के रूझानों की पहचान करने और अपवादों को चिन्हित करने के पर्याप्त साक्ष्य मिलते हैं।
प्रश्न 6.
राष्ट्रवादियों ने किस प्रकार की आर्थिक नीति शुरू की?
उत्तर:
स्वतन्त्रता का संघर्ष आर्थिक विकास का भी युद्ध था। ब्रिटिश नीतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया था। भारतीय आर्थिक नीति पर गाँधी जी और रूसी नीति का गहरा प्रभाव था। गाँधी जी को विश्वास था कि मूल भारत गाँव में बसता है। चरखा कातना, खादी को बढ़ावा देना और गाँव में छोटे काम-धन्धे चलाना आदि इसी सिलसिले के कार्य थे।
प्रश्न 7.
मौलाना अब्दुल कलाम आजाद का राष्ट्रीय आन्दोलन में क्या योगदान है?
उत्तर:
मौलाना अब्दुल कलाम आजाद (1888-1958):
मौलाना आजाद का मक्का में जन्म हुआ। 1857 ई. के विद्रोह के अवसर पर उनके पूर्वज मक्का चले गए थे। 1898 ई. में उनके माता-पिता फिर भारत लौट आए और कलकत्ता में बस गए। उन्होंने उच्च इस्लामी शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने उर्दू में लिखना शुरू किया और क्रांतिकारियों के साथ हो गए। उन्होंने 1912 ई. में उर्दू साप्ताहिक ‘अलहिलाल’ शुरू किया। इसका बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा। 1920 ई. में मौलाना गाँधी जी के निकट आ गए। 1925 ई. में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन के अध्यक्ष बनाए गए। उन्हीं की अध्यक्षता में भारत छोड़ो आन्दोलन’ का घोषणा-पत्र पास हुआ। वह विधान परिषद् के सदस्य भी थे। मौलाना आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री भी थे। वह बहुत ही दूरदर्शी स्वभाव रखते थे।
प्रश्न 8.
पाकिस्तान सम्बन्धित प्रस्ताव मार्च 1940 में किस प्रकार पारित हुआ।
उत्तर:
1. भारतीय नेताओं से सलाह किये बिना दूसरे विश्व युद्ध में भारत को घसीट लिया गया तो कांग्रेस मंत्रिमंडलों ने प्रान्तों में त्यागपत्र दे दिया। इससे मुस्लिम लीग प्रसन्न हुई और इस दिन को उसने ‘मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाया।
2. लीग ने सरकार से यह आश्वासन चाहा कि भारत का संविधान बनाने की समस्या पर पुनः विचार करेगी और मुस्लिम लीग के नेताओं को विश्वास में लिए बिना ब्रिटिश सरकार कांग्रेस को नए संविधान बनाने का अधिकार नहीं देगी।
3. 1940 में जिन्ना की अध्यक्षता में मुस्लिम लीग ने ‘द्विराष्ट्र सिद्धान्त’ की घोषणा की जिसके अनुसार कहा गया कि भारत में हिन्दू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं और किसी भी क्षेत्र में उनके हित एक जैसे नहीं हैं।
4. जिन्ना के अनुसार पाकिस्तान का गठन ही भारत में साम्प्रदायिक समस्या का स्थायी समाधान है।
5. उन्होंने यह भी कहा कि उत्तर पश्चिमी और उत्तर पूर्वी भारत के दो हिस्से स्वतंत्र पाकिस्तान राष्ट्र का निर्माण करेंगे क्योंकि इनमें मुसलमान बहुसंख्यक हैं। इनका इशारा पूर्वी बंगाल, पश्चिमी बंगाल, सिंध और उत्तर पश्चिमी प्रांत की ओर था। लगभग एक दशाब्दी पहले 29 दिसम्बर 1930 को इसी प्रकार के विचारों को मोहम्मद इकबाल ने भी प्रकट किया था।
प्रश्न 9.
पृथक् चुनाव मण्डलों के निर्माण से भारतीय राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
पृथक् चुनाव मण्डलों के निर्माण का प्रभाव:
इस सुधारों में अलग-अलग चुनाव मण्डलों की प्रणाली भी आरम्भ की गई। इसमें सभी मुसलमानों को मिलाकर उनके अलग चुनाव क्षेत्र बनाए गए। इन क्षेत्रों से केवल मुसलमान प्रतिनिधि ही चुने जा सकते थे। यह काम अल्पसंख्यक मुस्लिम सम्प्रदाय की सुरक्षा के नाम पर किया गया। सच्चाई यह थी कि यह काम हिन्दुओं और मुसलमानों में फूट डालने और भारत में ब्रिटिश शासन को बनाए रखने के उद्देश्य से किया गया था। अलग-अलग चुनाव मण्डलों की यह प्रणाली इस धारणा पर आधारित थी कि हिन्दुओं और मुसलमानों के राजनीतिक और आर्थिक हित अलग-अलग हैं।
यह एक अवैज्ञानिक धारणा थी, क्योंकि राजनीतिक या आर्थिक हितों अथवा राजनीतिक संगठन का आधार धर्म नहीं हो सकता। इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस प्रणाली के व्यवहार में आने से बहुत घातक परिणाम निकले। इसने भारत के एकीकरण की प्रक्रिया में निरन्तर बाधा खड़ी की। यह प्रणाली देश में हिन्दू और मुस्लिम, दोनों तरह की साम्प्रदायिकता के विकास का प्रमुख कारण सिद्ध हुई। मध्यवर्गीय मुसलमानों के शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने तथा उनको भारतीय राष्ट्रवाद की मुख्य धारा में शामिल करने की बजाए, अलग-अलग चुनाव मण्डलों की इस प्रणाली ने राष्ट्रवादी आन्दोलन में जगह-जगह रोड़े लगाने का काम किया। इस प्रकार केवल अलगाववादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिला।
प्रश्न 10.
लखनऊ समझौता (1916 ई.) के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
1916 में कांग्रेस-लीग लखनऊ समझौता:
1909 के सुधारों के पश्चात् घटित घटनाओं ने मुस्लिम लीग को कांग्रेस के निकट लाने में सहायता पहुँचाई। बंगाल विभाजन के बाद की घटनाओं से सिद्ध हो गया था कि सरकार हिन्दुओं के मूल्य पर मुसलमानों को प्रसन्न नहीं करेगी, साथ ही लार्ड हार्डिंग ने दोनों धर्मों के लोगों के प्रति निष्पक्षता का व्यवहार किया। अब तक भारत के मुसलमान अंग्रेजों को तुर्की के मित्र व रूस के शत्रु समझते थे किन्तु अंग्रेजों का रूसियों से समझौता हो जाने से भारतीय मुसलमानों की आँखें खुल गईं। तुर्की व इटली के युद्ध में अंग्रेजों ने तुर्की के प्रति जो नीति अपनाई, उससे भारतीय मुसलमान शकित हो उठे।
1915 ई. में लीग का अधिवेशन बम्बई में होना निश्चित हुआ। दोनों दलों के नेताओं में विचार-विनिमय हुआ और 1916 ई. में लखनऊ में दोनों दलों के बीच समझौता सम्पन्न हो गया। इस समझौते की निम्नलिखित साम्प्रदायिक धाराओं को कांग्रेस ने स्वीकार किया –
- मुसलमानों के लिए साम्प्रदायिक चुनाव क्षेत्र प्रदान किया जाए।
- अल्पसंख्यकों को विशेष सुविधाएँ दी जाएँ।
- अल्पसंख्यकों को ऐसे विधेयक के निषेध का अधिकार दिया जाए जो उन्हें स्वीकार न हों।
प्रश्न 11.
मुसलमानों में उग्र राष्ट्रवाद के विकास का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
मुसलमानों में उग्र राष्ट्रवाद के विकास में सम्प्रदायवाद ने सक्रिय भूमिका निभाई। साम्प्रदायिक भावना ने इस बात को जन्म दिया कि भारतीय राष्ट्र नाम की कोई वस्तु नहीं है और न हो सकती है। इसकी बजाय यहाँ केवल हिन्दू राष्ट्र, मुस्लिम राष्ट्र आदि है।
1870 के दशक से पहले मुसलमानों में किसी प्रकार की साम्प्रदायिक राजनीति का अस्तित्व ही नहीं था। यह तो उपनिवेशवाद की देन है। 1857 के स्वाधीनता संग्राम में हिन्दू तथा मुसलमान दोनों मिलकर लड़े थे। देश में राष्ट्रवादी आन्दोलन का उदय होने से अंग्रेजों को अपने साम्राज्य की चिंता हुई। वे नहीं चाहते थे कि हिन्दू और मुसलमान एकजुट होकर राष्ट्रीय भावना को विकसित करें। उन्होंने बांटो और राज्य करो की नीति को धर्म के अतिसंवेदनशील पहलू में बड़ी ही चालाकी से प्रविष्ट कर दिया। उन्होंने मुसलमान जमींदारों, भू-स्वामियों और नव शिक्षित वर्गों को अपनी ओर आकर्षित करने का निर्णय लिया।
उन्होंने उनके मस्तिष्क में यह बात डालने का प्रयास किया कि उनके हित हिन्दुओं के हितों से अलग हैं। यदि उन्हें उन्नति करनी है तो उन्हें एक अलग संख्या में संगठित होना चाहिए। धार्मिक अलगाववाद की प्रवृत्ति के विकास में सैयद अहमद खाँ की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। वे अपने जीवन के अंतिम दिनों में रूढ़िवादी बन गए थे। उन्होंने घोषणा की कि हिन्दुओं और मुसलमानों के हित समान नहीं बल्कि अलग-अलग हैं। इस तरह उन्होंने उग्र राष्ट्रीयता की नींव रखी। उन्होंने 1885 में कांग्रेस की स्थापना का भी कड़ा विरोध किया। सच तो यह है कि मुसलमानों में शिक्षा के अभाव तथा इतिहास की गलत धारणाओं के कारण संकुचित विचारों का जन्म हुआ। इससे ही उग्र राष्ट्रीयता को बल मिला।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
1922 से 1944 ई. तक मुस्लिम लीग की नीतियों में आये परिवर्तन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुस्लिम लीग की नीतियों में आये परिवर्तन –
1. असहयोग आन्दोलन तथा खिलाफत आन्दोलन द्वारा स्थापित हिन्दू-मुस्लिम एकता का दौर शीघ्र ही समाप्त हो गया। 1922 ई. में गाँधी जी ने जब असहयोग आन्दोलन स्थगित कर दिया तो देश में साम्प्रदायिक दंगे आरम्भ हो गये। दिल्ली, नागपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, बन्नू, कोहाट आदि सभी स्थानों पर साम्प्रदायिक दंगों का प्रचण्ड रूप देखने को मिला। सरकार ने भी साम्प्रदायिक दंगों को रोकने की बजाय उन्हें और अधिक भड़काने की नीति अपनायी। इस प्रकार हिन्दू-मुस्लिम एकता को भी आघात पहुँचा।
2. खिलाफत आन्दोलन के बाद मुस्लिम लीग में दो विचारधाराएँ उभरने लगीं। इसके कुछ नेता चाहते थे कि लीग को कट्टर साम्प्रदायिकता के मार्ग पर लाया जाए। इस मार्ग में लीग के राष्ट्रवादी नेता बहुत बड़ी बाधा थे। वे चाहते थे कि कांग्रेस के साथ मिलकर ही कार्य किया जाए, इसी में देश का कल्याण है। इस आपसी मतभेद के कारण लीग में दो दल बनने लगे। 1927-28 में साइमन कमीशन के आगमन के प्रश्न पर दोनों दलों में मतभेद और .. भी गहरा हो गया। जिन्ना तथा उसके अनुयायी साइमन के बहिष्कार के पक्ष में थे जबकि मोहम्मद शफी के समर्थक साइमन कमीशन का स्वागत करना चाहते थे। इस कारण लीग में स्पष्ट फूट रह गयी।
3. लीग की फूट के बाद जिन्ना ने राजनीति त्याग दी और इंग्लैण्ड में वकालत करने लगे। साम्प्रदायिकता का रंग चढ़ने लगा। उन्होंने अपने सिद्धान्तों का गला घोंट दिया और हिन्दुओं के विरुद्ध जहर उगलना आरम्भ कर दिया। इसी समय लीग ने उन्हें फिर से अपना नेता स्वीकार कर लिया और लीग के दो दल फिर से एक हो गए।
4. साइमन कमीशन की असफलता के पश्चात् भारत-सचिव लॉर्ड बर्केनहेड ने भारतीयों को इस बात की चुनौती दी कि वे स्वयं कोई ऐसा संविधान तैयार कर लें जिससे भारत के सभी राजनीतिक दल सहमत हों। सरकार की इस चुनौती के जवाब में नेहरू रिपोर्ट (1928 ई.) तैयार की गई, परन्तु जिन्ना ने नेहरू रिपोर्ट के जवाब में अपना एक चौदह-सूत्री कार्यक्रम प्रस्तुत किया। यह कार्यक्रम साम्प्रदायिक भावनाओं से परिपूर्ण था।
5. 1931 ई. में इमाम अली की अध्यक्षता में राष्टवादी मुसलमानों ने एक सम्मेलन बुलाया। यह सम्मेलन देहली में बुलाया गया इसमें जिन्ना के चौदह सूत्री कार्यक्रम के विरुद्ध भावी संविधान के विषय में कुछ बातें स्वीकार की गयी। इन शर्तों तथा जिन्ना की चौदह-सूत्री मांगों में विशेष अन्तर नहीं था।
6. जिन्ना की चौदह-सूत्री कार्यक्रम की योजना को स्वीकृति मिलने के पश्चात् मुस्लिम साम्प्रदायिकता निरन्तर उग्र रूप धारण करती गयी। प्रथम गोलमेज सम्मेलन में लीग ने अपनी मांगों को दोहराया। दूसरी गोलमेज कान्फ्रेंज में यही मांगें फिर दोहरायी गयी परन्तु साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व के प्रश्न पर कोई ठोस निर्णय न लिया जा सका। 16 अगस्त, 1932 ई. के दिन मैकडानल्ड ने अपना निर्णय दिया जिसे ‘साम्प्रदायिक निर्णय’ कहा जाता है। इसकी अधिकांश शर्ते वही थी जो जिन्ना के ‘चौदह-सूत्री’ मांग पत्र में कही गयी थी। इससे स्पष्ट होता है कि यह निर्णय सरकार की ओर से साम्प्रदायिकता भड़काने का एक खुला प्रयास था।
7. 1935 ई. में ब्रिटिश संसद ने भारत के सम्बन्ध में एक परिषद् अधिनियम पास किया। इसके अनुसार 1937 ई. में देश में चुनाव हुए। इन चुनावों में कांग्रेस तो अनेक प्रान्तों में मंत्रिमण्डल बनाने में सफल रही, परन्तु मुस्लिम लीग बुरी तरह असफल रही। कांग्रेस की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखकर लीग के नेताओं को ईर्ष्या होने लगी। 1938 ई. में लीग ने ‘पृथक राज्य’ का नारा लगाना आरम्भ कर दिया। तत्पश्चात् द्वितीय महायुद्ध आरम्भ होने पर जब भारतीयों से बिना पूछे उनके युद्ध में सम्मिलित होने की घोषणा कर दी गई तो कांग्रेस मंत्रिमंडलों ने त्याग-पत्र दे दिये। इस अवसर पर लीग खुशी से झूम उठी । इसी खुशी में जिन्ना साहब ने 22 दिसम्बर 1939 ई. का दिन ‘मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की।
8. सर सैयद अहमद खाँ तथा प्रिंसिपल बेक ने मुस्लिम लीग की स्थापना से पूर्व इस बात का प्रचार किया था कि भारत में दो राष्ट्र है। 23 मार्च 1940 ई. को लीग के लाहौर अधिवेशन में जिन्ना ने इस सिद्धान्त का समर्थन किया और पाकिस्तान का अलग राज्य प्राप्त करना अपना अंतिम उद्देश्य घोषित किया।
प्रश्न 2.
स्वाधीनता संघर्ष के दौरान भारत में साम्प्रदायिकता फैलाने के लिए अंग्रेजों ने किन तत्त्वों का सहारा लिया?
उत्तर:
स्वाधीनता संघर्ष के दौरान भारत में साम्प्रदायिकता फैलाने के लिए अंग्रेजों ने निम्नलिखित तत्त्वों का सहारा लिया:
साम्प्रदायिकता को उकसाना (Instigating Communalism):
1857 ई. के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में हिन्दुओं और मुसलमानों ने मिलकर अंग्रजों के विरुद्ध युद्ध किया। इस आपसी सद्भाव को तोड़ कर अंग्रेज राष्ट्रीय आन्दोलन की जड़ें खोखली करना चाहते थे। उन्होंने तरह-तरह की नीतियों द्वारा साम्प्रदायिकता को उभारा।
1. फूट डालो और शासन करो की नीति (The policy of divide and rule):
अंग्रेजों ने कभी हिन्दुओं का पक्ष लिया और मुसलमानों को दूसरे लोगों द्वारा भड़काया तथा कभी मुसलमानों का पक्ष लेकर हिन्दुओं को अन्य पक्षों द्वारा भड़काया। इसका मुख्य उद्देश्य था-दोनों पक्षों के बीच गहरी खाई पैदा करना। उन्होंने मुसलमानों को 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना के लिए प्रेरणा दी। इससे पूर्व 1905 ई. में बंगाल विभाजन द्वारा हिन्दू-मुस्लिम एकता को तोड़ने को प्रयास किया गया। 1909 ई. में मिन्टो-मार्ले सुधारों द्वारा मुसलमानों के लिए अलग से चुनाव क्षेत्र सुरक्षित कर दिए गये।
2. भारतीय इतिहास अध्यापन (Teaching of Indian History):
अंग्रेजों ने स्कूलों और कॉलेजों में भारतीय इतिहास का अध्यापन इस ढंग से कराना शुरू किया कि दोनों सम्प्रदायों के बीच द्वेष की भावनाएँ जन्म लें। उन्होंने पढ़ाना शुरू किया कि मुसलमान सदा से ही शासक रहे हैं और हिन्दू शासित। मुसलमान शासकों का क्रूर और अत्याचारी रूप दिखाया गया तथा हिन्दू प्रजा को पीड़ित जनता के रूप में चित्रित किया गया। इससे भारत की मिली-जुली संस्कृति का रूप बिगाड़ दिया गया।
3. मुस्लिम लीग की स्थापना (Establishmentof MuslimLeague):
अंग्रेजों ने प्रचार किया कि कांग्रेस तो हिन्दू हितों की रक्षक संस्था है और मुस्लिम हितों की ओर कदापि ध्यान नहीं देती। ऐसी स्थिति में मुसलमानों को अलग से अपना दल बनाना चाहिए। इसी के फलस्वरूप 1906 ई. में मुस्लिम लीग की स्थापना हुई। आगे चलकर इसी ने पाकिस्तान की मांग की।
4. देश का आर्थिक पिछड़ापन (Economic backwardness of the country):
इस समय शिक्षित भारतीयों में बेकारी की गंभीर समस्या थी । मुसलमान भी आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए थे। अंग्रेजों ने जातिवाद के आधार पर इस समस्या के हल के लिए कदम उठाया क्योंकि अंग्रेज साम्प्रदायिकता के भड़काने में किसी भी तत्त्व को सहारा बना सकते थे।
5. हिन्दू महासभा (Hindu Mahasabha):
हिन्दुओं के बीच हिन्दू महासभा जैसे सांप्रदायिक संगठनों के अस्तित्व के कारण मुस्लिम लीग के प्रचार को बल मिला। हिन्दू एक अलग राष्ट्र है और भारत हिन्दुओं का देश है-यह कह कर उन्होंने मुसलमानों को हिन्दुओं के विरुद्ध भड़काया। उनके प्रभाव में आकर मुसलमानों ने दो राष्ट्रों के सिद्धांत को मान लिया।
6. सर सैयद अहमद खाँ:
सर सैयद अहमद खाँ ने (1817-1880 ई.) पृथक्तावादी प्रवृत्तियों तथा साम्प्रदायिक प्रवृत्तियों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। निःसंदेह वे एक महान समाज सुधारक थे। जीवन के अन्तिम दिनों में वह भी अंग्रेजों के स्वर में स्वर मिलाकर बोलने लगे तथा राजनीति में अनुदार हो गए। उनहोंने 19 वीं सदी के नौंवे दशक में अपने पहले के उदार विचारों को त्याग दिया तथा घोषणा की कि हिन्दुओं व मुसलमानों के राजनीतिक हित समान नहीं अपितु भिन्न तथा एक-दूसरे के ठीक विपरीत हैं। उन्होंने अपने मुसलमान भाइयों को अंग्रेजी शासन का राजभक्त बनने का परामर्श दिया तथा उन्हें समझाया कि वे अंगेजी शिक्षा प्राप्त करके ही उनकी प्रगति संभव है। उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों के हृदय से मुसलमानों के प्रति घृणा व संदेह दूर करने का भी प्रयास किया।
7. कांग्रेस के प्रति सरकारी रुख में परिवर्तन:
लार्ड मिन्टो के पश्चात् वायसराय लार्ड हार्डिंग की नियुक्ति हुई। उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों की पर्याप्त जानकारी थी। उनकी धारणा थी कि शीघ्र ही अन्तर्राष्ट्रीय युद्ध होगा। इस समय तक उग्र दल ने कांग्रेस को छोड़ दिया था और कांग्रेस पर नरम दल का आधिपत्य था। लार्ड हार्डिंग ने कांग्रेस को अपनी ओर मिलाने ही श्रेयस्कर समझा। कांग्रेस ने भी प्रत्युत्तर में सरकार के साथ सहयोग की नीति अपनानी शुरू कर दी। कांग्रेस द्वारा मिन्टो-मार्ले सुधारों को कार्यान्वित किए जाने से मुस्लिम लीग, अपना प्रभुत्व खो बैठी। कांग्रेस के एक प्रतिनिधि मण्डल को लार्ड हार्डिंग से भेंट करने की अनुमति दे दी गई तथा 1911 में जार्ज पंचम और उसकी महारानी के भारत आने पर बंगाल विभाजन का अंत मुसलमानों से किसी तरह का परामर्श लिए बिना ही कर दिया गया । इससे कांग्रेस तो खुश हुई परन्तु मुसलमानों ने इसकी कटु आलोचना की।
8. नवउदित मुस्लिम नेता:
साम्प्रदायिकता के विकास में मोहम्मद अली जिन्ना और हकीम अफजल खाँ जैसे नेताओं का विशेष हाथ रहा। इन लोगों ने मुस्लिम लीग को साम्प्रदायिकता की ओर बढ़ाया। मुहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग रखी और अपनी इस मांग पर अंत तक अड़े रहे। उन्हीं की जिद के फलस्वरूप भारत का विभाजन हुआ।
9. मुसलमानों में शैक्षिक तथा आर्थिक पिछड़ापन:
मुस्लिम वर्ग हिन्दुओं की तुलना में आधुनिक शिक्षा, व्यापार, वाणिज्य और उद्योग के क्षेत्र में काफी पिछड़ा हुआ था। अंग्रेजों को फूट डालने में इससे भी पर्याप्त सहायता प्राप्त हुई। जब अंग्रेजों ने उन्हें सहायता का आश्वासन दिया तो अशिक्षित मुसलमानों को यह विश्वास हो गया कि कांग्रेस का विरोध करके तथा सरकार के प्रति निष्ठावान रहकर ही वे अधिक उन्नति कर सकते हैं।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित उद्धरण को ध्यानपूर्वक पढ़िए और इसके नीचे दिए गए प्रश्नों का उत्तर लिखिए:
“हालात की मजबूरी थी और यह महसूस किया गया कि जिस रास्ते पर हम चल रहे हैं उसके द्वारा गतिरोध को दूर नहीं किया जा सकता है। अतः हमको देश का बंटवारा स्वीकार करना पड़ा।” पंडित जवाहर लाल नेहरू
- मुस्लिम लीग ने गतिरोध क्यों उत्पन्न किया?
- उन परिस्थितियों को बताइए जिनके कारण 1947 में भारत का विभाजन हुआ।
अथवा, 1942 से 1947 के बीच उन कारकों का विश्लेषण कीजिए जो भारत की स्वतंत्रता और विभाजन के लिए उत्तरदायी थे।
उत्तर:
1. मुस्लिम लीग की ओर से गतिरोध के कारण:
मुस्लिम लीग भारत का विभाजन चाहती थी। उसकी नजर में हिन्दू और मुसलमान दो अलग-अलग कौम अथवा राष्ट्र हैं। ये दोनों कभी एक नहीं हो सकते। दोनों ने 1937 के चुनाव में भाग लिया, लेकिन मुस्लिम लीग चुनाव हार गई। जिन्ना ने कांग्रेस का विरोध किया और कहा कि मुसलमान अल्पसंख्यकों का बहुसंख्यक हिंदुओं में समा जाने का खतरा है। 1940 में मुस्लिम लीग ने एक प्रस्ताव पारित करके आजादी के बाद भारत को दो भागों में बाँटने की मांग रख दी। हिन्दुस्तान और पाकिस्तान दो स्वतंत्र राष्ट्र होंगे।
20 फरवरी, 1947 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि जून 1948 तक अंग्रेज भारत का शासन सौंपकर चले जाएंगे। मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान पाने के लिए साम्प्रदायिक दंगे करा दिये । अंग्रेज अब भी फूट डालो और शासन करो की नीति पर चल रहे थे। नये वायसराय माउंटबेटन भी पाकिस्तान बनाना चाहते थे। मुस्लिम लीग को यह आशंका थी कि आजादी के बाद चुनावों के माध्यम से मुस्लिम लीग कभी भी सत्ता में नहीं आ पायेगी। इसलिए उसने पाकिस्तान पाने के लिए गतिरोध पैदा किया।
2. 1947 में भारत विभाजन के कारण –
(I) एटली की घोषणा:
20 फरवरी, 1947 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने घोषणा की कि अंग्रेज जून, 1948 में भारत को सत्ता सौप देंगे। मुस्लिम लीग को लगा कि भारत की आजादी निकट है और मुस्लिम लीग आजादी के बाद कभी सत्ता में नहीं आ सकती, क्योंकि वह 1937 के चुनावों की हार देख चुकी थी। उसने अलग राष्ट्र पाकिस्तान की मांग रख दी। 1946 में मुस्लिम लीग ने बिहार, बंगाल और बम्बई में साम्प्रदायिक दंगे करा दिये जिनमें लगभग 1000 हिन्दू और मुसलमानों की जानें गई।
(II) लार्ड माउण्टबेटन और उसकी योजना:
सत्ता हस्तांतरण करने के उद्देश्य से लार्ड माउण्टबेटन ने लार्ड वेवल का स्थान लिया और भारत आते ही मुस्लिम लीग व कांग्रेस के नेताओं से विचार-विमर्श किया। निष्कर्ष निकाल कर वह 18 मई, 1947 को लंदन गये। जहाँ ब्रिटेन की सरकार के साथ विचार-विमर्श किया और 4 जून, 1947 को ब्रिटिश संसद ने भारत स्वतंत्रता अधिनियम पास कर दिया। 15 अगस्त, 1947 को उन्होंने भारत विभाजन की एक योजना रखी जिसे लार्ड माउण्टबेटन की योजना कहते हैं।
(III) राजनैतिक दलों द्वारा लार्ड माउण्टबेटन योजना को स्वीकृति:
कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों पार्टियों ने इस योजना को स्वीकार कर लिया। मुस्लिम लीग की मांग पूरी हो रही थी उसे पाकिस्तान मिल रहा था। 15 अगस्त, 1947 को भारत की आजादी के साथ ही इसका दो राष्ट्रों-भारत व पाकिस्तान में विभाजन भी हो गया।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
विभाजन के दौरान लगभग कितने लोग अपने वतन से उजड़ गये?
(अ) एक करोड़
(ब) दस लाख
(स) एक लाख
(द) दस हजार
उत्तर:
(अ) एक करोड़
प्रश्न 2.
महाध्वंस या होलोकास्ट की घटना कहाँ हुई?
(अ) फ्रांस
(ब) जर्मनी
(स) इंग्लैण्ड
(द) जापान
उत्तर:
(ब) जर्मनी
प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से मुसलमानों की रूढ़ छवि कौन नहीं है?
(अ) मुसलमानों की क्रूरता
(ब) मुसलमानों की कट्टरता
(स) मुसलमानों की गंदगी
(द) मुसलमानों की दयालुता
उत्तर:
(द) मुसलमानों की दयालुता
प्रश्न 4.
विभाजन की स्मृतियाँ किसने जिंदा नहीं रखी हैं?
(अ) सांप्रदायिक टकराव
(ब) हिंसा की कहानियाँ
(स) सांप्रदायिक विश्वास
(द) सांप्रदायिक विश्वास
उत्तर:
(स) सांप्रदायिक विश्वास
प्रश्न 5.
आर्य समाज ने कौन-सा कार्य नहीं किया?
(अ) भारतीय हिंदू सुधार आन्दोलन चलाया
(ब) मुसलमानों के प्रति घृणा का भाव भरा
(स) वैदिक ज्ञान का पुनरुत्थान किया
(द) विज्ञान को आधुनिक शिक्षा से जोड़ा
उत्तर:
(ब) मुसलमानों के प्रति घृणा का भाव भरा
प्रश्न 6.
सांप्रदायिक राजनीति का आखिरी बिंदु क्या था?
(अ) 1909 में मुसलमानों के लिए बनाये गये चुनाव क्षेत्र
(ब) 1919 में पृथक् चुनाव क्षेत्र
(स) देश का बंटवारा
(द) मस्जिद के सामने संगीत
उत्तर:
(स) देश का बंटवारा
प्रश्न 7.
1937 के चुनाव में किसको अधिक सफलता मिली?
(अं) कांग्रेस
(ब) मुस्लिम लीग
(स) दोनों को
(द) किसी को नही
उत्तर:
(अं) कांग्रेस
प्रश्न 8.
पाकिस्तान का नाम सबसे पहले किसने दिया?
(अ) सिकन्दर हयात खान
(ब) मोहम्मद इकबाल
(स) चौधरी रहमत अली
(द) मौलाना आजाद
उत्तर:
(स) चौधरी रहमत अली
प्रश्न 9.
विभाजन की घटना कैसी थी?
(अ) अचानक घटित घटना
(ब) नियोजित घटना
(स) लम्बी घटना
(द) छोटी घटना
उत्तर:
(अ) अचानक घटित घटना
प्रश्न 10.
विभाजन से कौन सहमत नहीं था?
(अ) कांगेस
(ब) मुस्लिम लीग
(स) खान अब्दुल गफ्फार खान
(द) पं. जवाहर लाल नेहरू
उत्तर:
(स) खान अब्दुल गफ्फार खान