प्रतिपूर्ति
पागल की डायरी पाठ्य पुस्तक
के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.30
वर्ष तक अन्धकार में रहने के पश्चात् जब पागल
की डायरी कहानी का नायक बहार निकला तो उसे क्या अनुभव हुआ ?
अथवा,
‘पागल
की डायरी’ के
नायक को क्यों ऐसा अनुभव हुआ कि सभी लोग उसी की बात कर रहे हैं।
उत्तर-‘पागल की डायरी’ कहानी का नायक तीस वर्षों तक अन्धकार में समय गुजारने के पश्चात् जब
बाहर कदम रखा तो उसे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। सभी लोग उसे एक विचित्र नजर से
घूरते थे। यहाँ तक कि चाओ साहब भी उसे देखकर डर गए। उनके घर के आस-पास सात-आठ
दूसरे लोग भी थे जो उसी के विषय में डरे हुए से फुसफुसा कर आपस में बातें कर रहे
थे। कोई भी व्यक्ति उसके सामने आने की हिम्मत नहीं करते लेकिन सभी उसका खून कर
देना चाहते थे। लेकिन वह डरा नहीं,
साहस नहीं खोया, अपनी राह चलता गया।
कुछ बच्चे उसके आगे आगे जा रहे थे, वे भी सहमे हुए डरे हुए उसी
की ही बात कर रहे थे। उसने सोचा कि इन बच्चों का मैंने क्या बिगाड़ा है। इन्होंने
तो मुझे पहले कभी देखा भी नहीं है। हठात् उसने बच्चों के पुकारा, मरग सभी बच्चे भाग गए। उसे
कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था उसका किसी से झगड़ा भी नहीं है। तीस वर्ष पहले सिर्फ
पुराने पंथी समाज का, सामन्ती
उत्पीड़न का विरोध किया था। लेकिन उस विराध से चाओ साहब का क्या लेना-देना। वह राह
चलते लोगों का उसके विरुद्ध भड़काते रहते हैं। अजीब परिस्थिति है। वह जिधर नजरें
उठाता है, उधर
ही लोग उसकी हत्या करने के घात में हैं। इस तरह, वह अजीब परेशानी का अनुभव कर
रहा था।
प्रश्न 2.‘पागल की डायरी’ में तत्कालीन समाज का कैसा चित्र प्रस्तुत किया गया है?
उत्तर-प्राचीन काल में चीन में सामन्ती प्रथा
थी। सामंत अत्यन्त क्रूर और अत्याचारी थे। बिना अच्छी तरह साचे-विचारे कभी भी किसी
को कठघरे में बन्द करवा देते। लोगों से बेगार लिया करते। कहानीकार ने लिखा है-“इन लोगों को देखा-कई लोगों
को मजिस्ट्रेट कठघरे में. बन्द करवा चुके हैं। बहुत से लोग आस-पास के अमीर-उमरावों
से मार खा चुके हैं, बहुतों
की बीबियों को सरकारी अमले के लोग छीन ले गए हैं।” जहाँ तक सेठ साहूकारों की
बात है, वे
भी कम अत्याचारी नही थे। कर्ज समय पर नहीं चुकाने पर उनके चिह्न अमानवीय व्यवहार
करते ‘थे।
यही कारण है कि साहूकारों के जुर्म से बचने के लिए लोग आत्महत्या करने से भी नहीं
चुकते थे। लेकिन आम जनता मूक थी।
वे इनके अन्याय सहन के अभ्यस्त हो चुके थे।
किसी में भी उनके विरुद्ध प्रतिवाद का स्वर मुखरित करने की हिम्मत नहीं थी। समाज
के लोग आदमखोर बन चुके थे। भूख की ज्वाला शान्त करने के लिए अपनी संतान तक को नहीं
बख्सते, उन्हें
भी मार कर खा जाते। एक औरत अपने बेटे को पीट-पीटकर कर चीखकर कहती है, “बदमाश कहीं का तेरी चमड़ी
उधेड़ दूंगी। तेरी बोटी-काट डालूँगी।”
इतना ही नहीं वे लोग निरीह राहगीरों तक को भी
नहीं छोड़ते थे। जैसा कि कहानीकार में लिखा है-“कुछ दिन पहले की बात है।
शिशु भेड़िया गाँव से हमारा एक आसामी फसल के चौपट होने की खबर देने आया था। उसने
मेरे बड़े भाई को बताया कि गांव के सब लोगों ने मिलकर देहात के एक बदनाम दिलेर
गुंडे को घेर लिया और कलेजा निकाल दिया,
उन्हें तेल में तला और बाँट कर खा गए कि उनका
हौसला भी बढ़ जाए।”
इस तरह हम पाते हैं कि चीन की तत्कालीन समाज
बर्बर, आदमखोर, विचारहीन तथा क्रूरता की
पराकाष्ठा पर था।
प्रश्न 3.
‘पागल की डायरी’ कहानी के नायक को कैसे ज्ञात
हुआ कि उसका बड़ा भाई आदमखोर है और उसकी हत्या करना चाहता है?
उत्तर-
एक दिन कहानी का नायक कोठरी में बंद रहते-रहते
ऊब गया। वहाँ उसका दम घुट रहा था। उसने छन से आँगन में निकलने की इच्छा प्रकट की।
छन ने उसके बड़े भाई की सहमति पर उसे घर से बाहर निकलने के लिए दरवाजा खोल दिया।
उसी क्षण उसका बड़ा भाई एक बुजुर्ग को साथ लेकर आ गया। बुजुर्ग का परिचय उसने हकीम
के रूप में भाई से कराया। दरअसल वह बुजुर्ग कोई और नहीं एक जल्लाद था। वह नब्ज
टटोलने के बहाने उसके शरीर में माँस का अनुमान लगा रहा था।
वह अभी दुबला पतला था, अत: उसे बेफिक्र होकर खाने
और आराम करने की सलाह देकर वहाँ से चला जाता है। बाहर आने पर हकीम और बड़े भाई में
जो बातचीत हुई उससे स्पष्ट हो गया कि उसका भाई उसे खा जाने के लिए षड्यंत्र रच रहा
था। लेकिन कायरता के कारण घटना को अंजाम देने में असमर्थ था। बड़े भाई ने पाँच
वर्ष की छोटी बहन को मार कर खा गया था। उसकी माँ सिर्फ रोती रही, बोली कुछ भी नहीं। इन बातों
से कहानी के नायक को पता चला कि उसका भाई आदमखोर है और उसकी भी हत्या करने को
तत्पर है।
प्रश्न 4.
‘पागल की डायरी’ के नायक का भाई ने कब और किस
बात पर क्रोधित होकर उसे पागल घोषित कर दिया?
उत्तर-
एक दिन कथा-नायक अपने भाई से कुछ कहने की
अनुमति मांगी। भाई का आदेश पाकर,
कहना प्रारंभ किया। आदिम अव्यवस्था में प्रायः
लोग नर-माँस खा लेते होंगे। पर जब लोगों का जीवन बदला उनके विचार बदले तो वे
नर-माँस खाना छोड़ दिया। वे अपना जीवन सुधारना चाहते थे, अतः उनमें मानवता आ गई।
लेकिन कुछ लोग आज भी मरगमच्छों की तरह नर-मांस खाए जा रहे हैं। नर-मांस नहीं खाने
वाले लोग, नर-माँस
खाने वाले को हेय की दृष्टि से देखते हैं।
प्राचीन अभिलेख के अनुसार ई या ने अपने बेटे का
माँस ही राज्य के राजा हान को परोसा था। लेकिन अब तो सब कुछ बदल गया है, सिर्फ नहीं बदले हैं यहाँ के
लोग। पिछले साल भी शहर में एक अपराधी की गर्दन काट दी गई थी। खून बहता देख तपेदिक
का एक मरीज ने उसके खून में रोटी डुबोकर खायी थी। आप लोग आज मुझे खाने को व्याकुल
हैं। फिर कल आपकी बारी आएगी। ये लोग आपको भी खा जायेंगे। फिर ये लोग आपस में
एक-दूसरे को नहीं छोड़ेंगे। अगर आप लोग इस मार्ग को छोड़ दें तो सभी सुख-चैन से रह
सकेंगे।
हमलोग आपस में एक दूसरे पर दया कर सकते हैं। पर
आप लोग अपनी लालच नहीं दबा पा रहे हैं। छोटे भाई की इन उपदेशात्मक बातों को सुनकर
बड़ा भाई क्रोधित हो गया। वह अपने छोटे भाई को पागल घोषित कर दिया क्योंकि वह तो
आदमखोर था। अपने भाई का माँस खाने के लिए व्याकुल था।
पागल की डायरी पाठ का सारांश
–
लू शुन (1880-1936)
प्रश्न-
लू शुन द्वारा लिखित ‘पागल की डायरी’ नामक पाठ का सारांश लिखें।
उत्तर-
लू शुन (1880-1936)
चीनी कथाकारों में सर्वाधिक ख्यात हैं।
साहित्यकार और विचारक के रूप में वे जितने महान थे उतनी ही महानता उन्हें एक
क्रांतिकारी लेखक के रूप में भी प्राप्त है। चीन की सांस्कृतिक क्रांति के मुखिया
होने के कारण वे राष्ट्रनायक के रूप में मान्य है। उनकी कहानियाँ समाज के प्रति
मानवीय संवेदना को उजागर करती है। उनकी अधि कांश कहानियाँ सन् 1918 से लेकर 1925 के मध्य लिखी गई हैं। चीनी
साहित्य में मुंशी प्रेमचंद को प्राप्त है,
वही पहचान चीनी कहानी-साहित्य के क्षेत्र में
लू शुन को प्राप्त है। उनकी कहानियों में खुग-इ-ची, औषधि मेरा पुराना घर, गुजरे जमाने का दर्द, नववर्ष की पूजा, एक पागल की डायरी प्रमुख
हैं।
‘पागल
की डायरी’ महान
क्रांतिकारी कहानीकार लू शुन की सर्वाधिक सशक्त, यथार्थवादी और प्रभावकारी
कहानी है। इसमें पुरातनपंथी समाज का यथार्थ विश्लेषित हुआ है। सामाजिक यथार्थ का
ऐसा निर्मम विश्लेषण अन्यत्र दुर्लभ है। इस कहानी में किये गये पागल के निम्न कथन
में सामंतवाद के विरुद्ध युद्ध की घोषणा का उद्घोष स्पष्ट ध्वनित होता है-“मैं इस ओर ध्यान देता हूँ पर
हमारे इतिहास में तो इसका कोई क्रमबद्ध विवरण है ही नहीं, फिर मैंने शब्दों के भीतर
छिपे अर्थों को पढ़ना शुरू किया तो पाया कि पूरी किताब तीन ही शब्दों से भरी पड़ी
है-लोगों को खाओ।”
लेखक ने स्कूल के दिनों के दो साथी थे। दोनों
भाई थे जिनके नाम अज्ञात हैं,
जो लेखक नहीं बताता है। उन दोनों भाइयों से
लेखक या काफी मेल-मिलाप रहता था पर इधर दोनों से संपर्क प्रायः टूट गया था। जब
कहीं से लेखक ने उन दोनों भाइयों में से एक बीमार होने के बारे में सुना तो अपने
गाँव जाते हुए लेखक ने दोनों साथियों से मिलने का मन बनाया। बल्कि वहाँ पहुँचकर
लेखक एक भाई से मिला भी जिससे लेखक को यह जानकारी मिली कि उसका छोटा भाई बीमार है।
दूर से मिलने आये अपने लेखक साथी से मिलकर मित्र को अपने प्रति लेखक का स्नेह कहीं
अधिक महसूस हुआ।
बाद में अपने मित्र से लेखक को यह मालूम हुआ कि
उसका छोटा भाई अब ठीक है और वह सरकारी नौकरी में लग गया है। यह बताने के बाद लेखक
को उसके मित्र ने हँसते-हँसते मोटी-मोटी जिल्दों में लिखी दो डायरी दिखायी
तत्पश्चात् दोनों डायरी लेखक की ओर बढ़ाते हुए उसके मित्र ने यह कहा कि-“अगर कोई इस डायरी को पढ़ ले
तो भाई की बीमारी का रहस्य समझ जाएगा और अपने पुराने दोस्त को दिखा देने में हर्ज
क्या है।”
अपने घर लाकर लेखक ने दोनों डायरी आद्यंत पढ़
डाली जिसमें मित्र के भाई की बीमारी का रहस्य यह मालूम हुआ कि-“बेचारा नौजवान अजीब आतंक और
मानसिक यंत्रणा से पीड़ित था। लिखावट बहुत उलझी-उलझी असंबद्ध थी। कुछ बेसिरपैर के
आरोप भी थे। पृष्ठों पर तारीखें नहीं थीं। जगह-जगह स्याही के रंग और लिखावट के
अंतर से अनुमान हो सकता था किये जब-तब आगे-पीछे लिखी गई चीजें होंगी। कुछ बातें
संबद्ध भी जान पड़ती थीं और समझ में आ जाती थीं।”
लेखक के उस मित्र का छोटा भाई नौकरी मिलने से
पूर्व बीमार था। उसकी बीमारी का रहस्य यह था कि वह युवा बेरोजगारी के दिनों में
डिप्रेशन का शिकार था। आतंक और मानसिक यंत्रण से पीड़ित उस युवा को अपनी ओर घूरते
चाओ परिवार का कुत्ता देखकर यह लगता कि वह उसका खून करना चाहता है। भय और आतंक के
कारण उसे लगता कि दिखायी देने वाले सारे लोग आदमखोर हैं-
“मैं
निडर हूँ, साहसी
हूँ, इसीलिए
तो वे लोग मुझे खा जाने के लिए और अधिक आतुर हैं, ताकि मेरा दमदार कलेजा खाकर
उनका हौसला और बढ़ सके। बूढा हकीम उठकर चल दिया। जाते-जाते भैया के कान में कहता
गया, “इसे
अभी खाना है!” भैया
ने झुककर हामी भर दी। अब समझ में आया! विकट रहस्य खुल गया। मन को धक्का तो लगा, पर यह तो होना ही था। मुझे
मालूम ही था, मेरा
अपना ही भाई मुझे खा डालने के षड्यंत्र में शामिल है! यह आदमखोर मेरा अपना ही बड़ा
भाई है! मैं एक आदमखोर का छोटा भाई हूँ!
मुझे दूसरे लोग खा जाएंगे, लेकिन फिर भी मैं एक आदमखोर
का छोटा भाई हूँ!” अपना
बड़ा भाई भी उस युवा को आदमखोर दिखायी दिया! तभी तो वह कहता है-“बड़ा भाई का क्या कहना, वे तो आदमखोर हैं ही। जब
मुझे पढ़ाते थे तो अपने मुँह से कहते थे,
“लोग अपने बेटों को एक-दूसरे से बदलकर उन्हें खा
जाते हैं” और.एक
बार एक बदमाश के लिए उन्होंने कहा था कि उसे मार डालने से ही क्या होगा, “उसका गोश्त खा डालें और उसकी
खाल का बिछावन बना डालें” तब मेरी उम्र कच्ची थी। सुनकर दिल देर तक धड़कता रहा।
जब शिशु-भेड़ियाँ गाँव के आसामी ने एक बदमाश का
कलेजा निकालकर खा जाने की बात कही थी-तब भी भैया को कुछ बुरा नहीं लगा था। सुनकर
चुपचाप सिर हिलाते रहे थे, जैसे ठीक ही हुआ हो। मुझसे छिपा गया है, वे तो पहले की तरह खूखार है।
चूँकि “बेटों
को एक-दूसरे से बदलकर उन्हें खा जाना”
संभव है,
तो फिर हर चीज को बदला जा सकता है, हर किसी को खाया जा सकता है।
उन दिनों भैया जब ऐसी बातें समझाते थे तो मैं सुन लेता था, सोंचता नहीं था।
पर अब खूब समझ में आता है कि ऐसी बातें कहते
समय उनके मुँह में नर-माँस का स्वाद भर आता होगा और उनका मन मनुष्य को खाने के लिए
व्याकुल हो उठता होगा।” ___कभी उसे लगता कि चाओ परिवार का कुत्ता जो बबरशेर की तरह खूखार, खरहे की तरह कातर, लोमड़ी की तरह धूर्त है फिर
उसकी ओर घूरते हुए भौंक रहा है। उसे यह भी लगता है कि परिणाम के भय से वे (चाओ) मार
डालने को तैयार नहीं है, पर षड्यंत्र रचकर जाल बिछाने में पीछे नहीं है। आत्महत्या कर लेने के
लिए जैसे विवश कर रहे हैं। अनेक पुरुषों और स्त्रियों के बर्ताव के साथ वह अपने
बड़े भाई का रंग-ढंग भी काफी गंभीरता से भाँप रहा है।
नर-माँस खाने वाले आदिम लोग की बात याद करने की
कोशिश वह अवश्य करता है पर उसका क्रमबद्ध इतिहास उसे नहीं मिलता है। फिर भी उसे यह
लगता है कि सारे लोग उसे खा जाना चाहते हैं बल्कि सारे लोगों में उसे अपना बड़ा
भाई भी शामिल नजर आता है तभी तो वह भाई से कहता है-
“बात
कुछ खास नहीं है, पर
कह नहीं पा रहा हूँ। भैया, आदिम व्यवस्था में तो शायद सभी लोग थोड़ा बहुत नर-माँस खा लेते होंगे।
जब लोगों को जीवन बदला, उनके विचार बदले,
तो उन्होंने नर-माँस त्याग दिया। वे लोग अपना
जीवन सुधारना चाहते थे। इसलिए वे सभ्य बन गए,
उनमें मानवता आ गई। परंतु कुछ लोग अब भी खाए जा
रहे हैं मगरमच्छों की तरह।
कहते हैं जीवों का विकास होता है, एक जीव से दूसरा जीव बन जाता
है। कुछ जीव विकास करके मछली बन गए हैं,
पक्षी बन गए हैं, बदर बन गए हैं। ऐसे ही आदमी
भी बन गया है।” एक
पुरानी कहानी का हवाला देते हुए वह यह भी कहता है कि-“पुराने समय में ई या ने अपने
बेटे को उबालकर च्ये और चओ के सामने परोस दिया था।”
एक दिन दरवाजे बंद कोठरी में खाना खाते हुए
चापस्टिके ने जैसे ही उठाई तो उसे अपनी छोटी बहन की मृत्यु की घटना स्मृत हो आयी-“वह भैया की ही करतूत थी। तब
मेरी बहन केवल पाँच वर्ष की थी। कितनी प्यारी और निरीह थी वह ! याद आती है तो
चेहरा आँखों के सामने घूम जाता है।
माँ रो-रोकर बेहाल हो रही थी। भैया माँ को
सांत्वना देकर समझा रहे थे, कारण शायद यह था कि स्वयं ही बेचारी को खा गए थे। इसलिए माँ को इस तरह
रोते देखकर उन्हें शर्म आ रही थी।”
उसे नर-माँस खाने वाले आदमखोर के रूप में अपने
पूर्वज भी दिखायी देते हैं जो धीरे-धीरे सभ्य हुए। वह नहीं चाहता है कि नई पीढ़ी
के छोटे बच्चे नर-माँस खाने की ओर बढ़ें।
प्रस्तुत कहानी में चीन में लंबे समय तक चले
सामंती उत्पीड़न के इतिहास की प्रस्तुति हुई है। ‘नर-माँस खाने’ की बात से यहाँ सामंती
उत्पीड़न ही संकेतित हुआ है। अपनी बेराजगारी के दिनों में डिप्रेशन का शिकार वह
युवा लोगों को देखकर लगातार यही सोचता रहा कि सभी लोग जिनमें उसका अपना भाई भी
शामिल है, उसे
खा जाना चाहते हैं। वस्तुतः इस कहानी में चीन के तत्कालीन सामन्ती समाज में शोषण
को दर्शाया गया है।