Sanskrit Class 9th lesson 11 – ग्राम्यजीवनम्

bihar board 9 sanskrit – ग्राम्यजीवनम्


ग्राम्यजीवनम्
(अयं पाठः आधुनिकजीवनस्य वैषम्यं विडम्बनां च दर्शयति । पुरा सर्वत्र ग्राम्यजीवनश प्रशंसायां विपुलं साहित्यं रचितम्। किन्तु भौतिकजीवनस्य विकासेन सह ग्राम्यजीवनस्य समस्यावृद्धिर्जाता इति नोपेक्षणीयम् नगरजीवनमिव ग्राम्यजीवनं न रोचते तद्वासिभ्योऽपि सम्प्रति। अतोऽद्यतनं जीवनं वैषम्यमयमिति दर्शितं लेखकेन अस्माभिश्च किं करणीयमिति प्रतिपादितम्। )

(यह पाठ आधुनिक जीवन की विषमता और विडम्वना को दर्शाता है। प्राचीन काल में सर्वत्र ग्रामीण जीवन की प्रशंसा में विपुल साहित्य की रचना हुई है। किन्तु भौतिक जीवन के विकास के साथ ग्रामीण जीवन की समस्या बढी है, यह भी उपेक्षा योग्य नहीं है। वर्तमान में ग्रामीणों को भी ग्रामीण जीवन नगरीय जीवन की तरह नहीं भाता है। अत: वर्तमान जीवन की इस विषमता को लेखक के द्वारा दिखाया गया है।
और हमें भी क्या करना चाहिए इसका भी इस पाठ में प्रतिपादन किया गया है।)

1. अस्माकं देशे जना: ग्रामे नगरे च वसन्ति। ग्रामाणां संख्या नगरापेक्षया नूनमधिका वर्तते। नगराणां संख्या तु क्रमशः वर्धते किन्तु ग्रामसंख्या न तथा वृद्धिं लभते।
अधुना ये नगरवासिनः, प्राचीनकाले ते ग्रामवासिनः एव। केचित् स्वग्रामेण संबन्धमद्यापि निर्वहन्ति।

संधि विच्छेद : नगरापेक्षया = नगर + अपेक्षया। नूनमधिका = नूनम् + अधिका। संबन्धमद्यापि = संबन्धम् + अद्य + अपि।

शब्दार्थ : नगरापेक्षया = नगर की तुलना में। नूनम् = निश्चय ही। तथा = वैसा। केचित् = कुछ लोग, कोई-कोई। अद्य = आज। निर्वहन्ति = निर्वाह करते हैं।

हिन्दी अनुवाद : हमारे देश में लोग गाँव और नगर में निवास करते हैं । गाँवों की संख्या शहरों की तुलना में निश्चय ही अधिक है। नगरों की संख्या तो लगातार बढ़ रही है किन्तु गाँवों की संख्या में वैसी वृद्धि नहीं हो रही है। अभी जो नगरवासी हैं वे प्राचीन काल में ग्रामवासी ही थे। कोई-कोई आज भी अपने गाँव से सम्बन्ध निर्वाह करते हैं।

2. एका प्राचीनोक्तिर्वर्तते-प्रकृतिग्राममसृजत्, नगरं तु मानवस्य रचनेति। अस्यार्थस्तु- ग्रामस्य विकासः प्राकृतिकः, नगराणि तु कृत्रिमाणि सन्ति। मानवः स्वस्य भौतिका सुखसमृद्धिं कल्पयित्वा महता प्रयासेन नगराणि निर्ममे। भोजनं वसनम् आवासश्चेतिशियः आवश्यकताः मानवस्य वर्तन्ति। ग्रामे एताः न्यूनतमाः प्राप्यन्ते इति तत्रत्याः सनाः सन्तोषप्रधानाः। किन्तु एतल्लाभार्थ धनमावश्यकम् कृषिप्रथाना धनव्यवस्था चयापि वर्तते। क्वचिदेव व्यापारः उद्योगो वा विद्यते। अतपव ग्राम्यजना: धनार्जनाय नगरं प्रति पलायमाना दुश्यन्ते।

संधि विच्छेद : प्राचीनोक्तिर्वतते = प्राचीन + उक्तिः वर्तते। प्रकृतिग्राममसूजत् = प्रकृति: + ग्रामम् + असृजत्। रचनेति = रचना + इति अस्यार्थस्तु = अस्य +अर्थ: + तु। आवासश्चेति = आवासः + च + इति एतल्लाभार्थ = एतत् + लाभ + अर्थम्।धनमावश्यकम् = धनम् + आवश्यकम्। क्वचिदेव = क्वचित् + एव।

शब्दार्थ : उक्ति = कथन। असृजत् = बनाया। कल्पयित्वा = कल्पना कर, विचार कर। निर्ममे = निर्माण किया। तिस्त्र: = तीन। न्यूनतमा: = वहुत कम। एतल्लाभार्थ = इसे पाने के लिये। तत्रत्या: = वहाँ रहने वाले। क्वचित् = कुछ। पलायमाना = पलायन करते हुए। धनार्जनाय = धन कमाने के लिये।

हिन्दी अनुवाद : एक प्राचीन कथन है- “प्रकृति ने गाँवों को बनाया, नगर तो भानव की रचना है।” इसका अर्थ है- गाँवों का विकास प्राकृतिक और नगरों का विकास कृत्रिम है। मनुष्य ने अपनी भौतिक सुख-समृद्धि का विचार कर काफी प्रयास से नगरों का निर्माण किया। भोजन, वस्त्र और आवास, मनुष्य की ये तीन आवश्यक आवश्यकताएँ होती हैं। गाँवों में ये बहुत कम प्राप्त होती हैं। वहाँ के लोग सन्तोषी होते हैं। परन्तु इनको भी पाने हेतु धन की आवश्यकता होती है। गाँवों में आज भी कृषि प्रधान अर्थ-व्यवस्था है। व्यापार या उद्योग कम ही हैं। अत: गाँव के लोग धन कमाने के लिये शहरों की ओर पलायन करते दिखते हैं।

3. प्राचीनकाले ग्राम्यजीवनं बहुसुखमयं बभूव। सन्तुष्टाः ग्रामवा। न: यदा कदैव नगरं गच्छन्ति स्म। सुखस्य साधनानि तदानीमुपलब्धानि ग्रामीणेभ्यो रोचन्ते शुद्धं जलं निर्मलो वायुः, स्वपरिश्रमार्जितमन्नं, समाजे सामञ्जस्यं, जनानां परिमिता च संख्या- एतत्सर्वं ग्राम्यजीवनस्य लक्षणं बभूव। कृत्रिमा भौतिकी संस्कृति: भारतस्य ग्रामान् बहुकालं यावत् नास्पृशत्। विदेशेषु तु ग्रामेऽपि वैज्ञानिकी समृद्धिरागता यथा- विद्युद्य्रवाहः, आधुनिकसंचारव्यवस्था, यातायातसाधनानि, कृषिकर्मणे यन्त्रोपस्करादीनि च। नेदं भारतीयग्रामेषु दृश्यते प्रायेण अतएवाद्य ग्राम्यजीवनं न वरदानरूपं मन्यते। सम्पन्नाः ग्रामीणा अपि नगरं प्रति पलायनपराः, तत्र का कथा विपन्नानां वृत्तिहीनानां ग्रामजनानाम्? इमे नगरेषु जीविका लभन्ते, पूर्वे तु सुखसमृद्धिजातं भौतिकी सुविधां चेति।

संधि विच्छेद : कदैव + कदा + एव। तदानीमुपलब्धानि = तदानीम् + उपलब्धानि ।
स्वपरिश्रमार्जितमन्नम् = स्वपरिश्रम + अर्जितम् + अन्नम्। नास्यृशत् = न + अस्पृशत्। समृद्धिरागता = समृद्धिः + आगता। नेदं = न + इद। अतएवाद्य = अतएव + अद्य। चेति = च + इति।

शब्दार्थ : यदा-कदैव = कभी-कभी ही। तदानीम् =उस समय। सामव्जस्यं = सामञ्जस्य, सहभाव, मेल-जोल का भाव। परिमिता = सीमित। आगता = आयी।
यन्त्रोपस्कारादीनि = यन्त्र उपकरण इत्यादि। प्रायेण = प्राय:। अद्य = आज। मन्यते = माना जाता है वृत्तिहीनानां = जीविका विहीन। विपन्नानां विपन्नों का, गरीबों का। इमे = ये। पूर्वे तु = पहले बाले तो सुखसमृद्धिजातं = सुख-समृद्धि के समूह। जातम् = समूह। भौतिकीं = ऊपरी,

हिन्दी अनुवाद : प्राचीन काल में गाँव का जीवन बहुत सुखमय था। सन्तुष्ट ग्रामवासी कभी-कभी ही नगर जाते थे उस समय के उपलब्ध सुख के साधन ग्रामीणों को अच्छे लगते थे। शुद्ध जल, स्वच्छ वायु, अपने परिश्रम से उपा्जित अन्न, समाज में मिलजुल कर रहने का सहभाव और लोगों की सीमित संख्या यह सब ग्रामीण जीवन का लक्षण था। कृत्रिम भौतिक संस्कृति ने बहुत समय तक भारतीय गाँवों को स्पर्श नहीं किया। विदेशों में तो गाँवों में भी वैज्ञानिक समृद्धि आ गयी थी, जैसे- विद्युत-विस्तार, आधुनिक संचार व्यवस्था, यातायात के साधन और कृषि कार्य में यन्त्र उपकरण, इत्यादि। ये भारतीय ग्रामों में प्रायः नहीं दिखते हैं। इसलिये आज ग्रामीण जीवन को वरदान स्वरूप नहीं माना जाता है। सम्पन्न ग्रामीण भी नगर की ओर पलायन कर रहे हैं तब गरीब और जीविका विहीन ग्रामीणों का क्या कहना? ये नगर में जीविका प्राप्त करते हैं। पहले वाले (सम्पन्न ग्रामीण) तो सुख-समृद्धि के समूह और ऊपरी सुविधा प्राप्त करते हैं।

वाह्य।

4. अपि च, ग्रामे नाद्य स्वर्गस्य कल्पना वर्तते। अतः नाद्यत्वे ग्राम्यजीवनं प्रशस्तमिति साहित्येषु गीयते। अद्य क्वचिद् ग्रामेषु अनावृष्टिकारणात्, क्वचिच्चातिवृष्टिनिमित्तात्, कदाचिन्नदीषु जलपूरेण तटबन्धभड्गात् महदेव ग्रामजनसंकटम् आपद्यते। विहारप्रदेशे तु सर्वमिदं युगपद् दृश्यते इत्यभिशापमेव मन्यन्ते ग्राम्यजीवनम्। समाजे च राजनीतिप्रसारेण दलप्रतिबद्धता, जातिवादः भूमिविवादः इत्याद्यपि संकटकारणं विशेषेण ग्रामेषु दृश्यते।

संधि विच्छेद : नाद्य = न + अद्य। नाद्यत्वे = न + अद्यत्वे। प्रशस्तमिति = प्रशस्तम् + इति। ववचिच्चातिवृष्टिनिमित्तात् = क्वचित् + च + अतिवृष्टि + निमित्तात्। कदाचिन्नदीषु = कदाचित् + नदीघु। महदेव = महत् + एव। सर्वमिदम् = सर्वम् + इदम्। इत्यभिशापमेव = इति + अभिशापम् + एव। इत्याद्यपि = इति + अद्य +आप

शब्दार्थ : प्रशस्तम् = प्रशंसा। अद्यत्वे = आज-कल। निमित्तात् = कारण से। कदाचित् = कभी। भड्गात् = टूटने से। आपद्यते = प्राप्त होते हैं। युगपंद् = एकसाथ।

हिन्दी अनुवाद : आज गाँवों के लिये स्वर्ग की कल्पना नहीं की जाती है। पलिये आजकल साहित्य में ग्रामीण जीवन की प्रशंसा में गीत नहीं गाया जाता है। आजकल कुछ गाँवों में अनावृष्टि के कारणु से, कुछ गाँवों में अतिवृष्टि के कारण से मे कभी नदियों में जल भरने के कारण बाँधों के टूटने से ग्रामीण महान विपत्ति में पड़ते हैं। बिहार राज्य में तो यह सब एकसाथ देखा जाता है। ग्रामीण जीवन का यह सब अभिशाप ही माना जाता है। और समाज में विशेषकर गाँवों में राजनीति प्रसार के फलस्वरूप नों के प्रति प्रतिबद्धता, जातिवाद, भूमिविवाद इत्यादि भी संकट के कारण दिखते हैं।
5. तदर्थ मानवतावादस्य विकासः आवश्यक:। युवका जने जने समताभावं दर्शयन्तु। प्रकृतिः सर्वान् मानवान् समानशरीरावयवैः रचयति। कुतस्तत्र कृत्रिमो मानवकृतो
वैरभाव:? ग्रामे कामं न भवतु भौतिकी समृद्धिः, किन्तु पर्यावरणस्य निर्मलता तत्रैव बाहुल्येन वर्तते इति न सन्देहः। नगरजीवनस्य समृद्धिः:ग्रामे ऽपि समानेया प्रशासनेन। तदैव ग्राम्यजीवनं सुखदं काम्यं च भविष्यति। नगरं प्रति पलायनं चावरुद्धं स्यात् ।

संधि विच्छेद : तदर्थं = तत् + अर्थ। समानशरीरावयवैः = समान शरीर + अवयवैः । कुतस्तत्र = कुतः + तत्र। तत्रैव = तत्र + एव। ग्रामेऽपि = ग्रामे + अपि। समानेया = सम + आनेया। तदैव = तदा + एव। चावरुद्धम् = च + अवरुद्धम्।

शब्दार्थ : समताभावम् = बराबरी का भाव। अवयवैः = अङ्गों से। कुत: = कहाँ से। कामम् = यद्यपि, भले ही। बाहुल्येन = बहुलता से, प्रचूरता से। समानेया = बराबर रूप से लायी जाय। तदैव = तभी। काम्यम् = सुन्दर। अवरुद्धम् स्यात = रुकेगा।

हिन्दी अनुवाद : अत: मानवतावाद का विकास आवश्यक है। युवक जन-जन के प्रति बराबरी का भाव दिखावें| प्रकृति ने मनुष्यों को समान शरीर के अङ्गों से रचा हैं। तब कृत्रिम मानवकृत वैरभाव कहाँ से? गाँवों में भले ही भौतिक समृद्धि न हो परन्तु पर्यावरण की स्वच्छता वहाँ ही प्रचूरता से वर्तमान है इसमें सन्देह नहीं। प्रशासन द्वारा नगर-जीवन की समृद्धि गाँव में भी लायी जानी चाहिए। तभी ग्रामीण जीवन सुन्दर और
सुखद होगा। तथा नगर के प्रति पलायन रुकेगा।

सारांश

भारत में गावों की संख्या शहरों से अधिक है। परन्तु आधुनिक काल में शहरों की्या तेजी से बढ़ रहीं है। अभी के नगरवासी पहले ग्रामवासी ही थे। एसी धारणा है कि गाँवों को प्रकृति ने बनाया जबकि नगर कृत्रिम हैं। भोजन, बावास ये तीन मानव की मूलभूत अवाश्यकताएँ हैं, लेकिन गाँवों में इनकी भी और वस्त्र
कमी है। गाँवों में उद्योग एवं व्यापार बहुत ही कम है। अत: ग्रामीण धनार्जन के लिये। नगरों की ओर पलायन कर रहे हैं।ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल का ग्रामीण जीवन सुखमय था। लाग अफ। सानव्य सीमित साधनों से सन्तुष्ट थे। शुद्ध एवं स्वच्छ जल तथा वायु, सामाजिक तथा लोगों की सीमित संख्या ग्रामीण जीवन के लक्षण रहे हैं। कृत्रिम भौतिक से भारतीय गाँव बहुत समय तक अछूते रहे। ये अभी भी गाँवों में बहुत कम हैं। इस कारण अब गाँवों को वरदान स्वरूप नहीं माना जाता है। गरीब तथा दुःखो लाग। भी और अधिक समृद्धि तथा भौतिक साधनों की उपलब्धि हेतु शहरों में जा रे हैं। जीविका की खोज में नगरों की ओर पलायन कर रहे हैं, परन्तु समृद्ध और सुखीला’भारतीय गाँव स्वर्ग हैं ऐसी प्रशंसा के गीत अब साहित्यों में भी नहीं लिखें अनावृष्टि, अतिवृष्टि तथा बाढ़ों के कारण ग्रामीण बहुत संकट झेलते हैं। हमारा समाज विशेषकर ग्रामीण समाज राजनीतिक दलों के प्रति प्रतिबंद्घता,
जातिवाद तथा भूमिवाद के कारण अत्यधिक संकटग्रस्त हैं। इन संबके निवारण स्वरूप मानवतावाद का विकास आवश्यक है। यह आवश्यक है कि युवक सबके समानता का भाव रखें। तथा सरकारी प्रशासन को भी चाहिए कि नगर जीवन के समृद्धि गाँवों में भी लाये। तभी ग्रामीण जीवन सुखद और सुन्दर होगा तथा नगरों को ओर ग्रामीणों का पलायन रूकेगा।

व्याकरण
1. समास विग्रहः
नगरापेक्षया = नगरस्य अपेक्षया (षष्ठी तत्पुरुष)
सुखसमृद्धिः = सुखसहिता समृद्धि: (मध्यम पदलोपी)
धनार्जनाय = धनस्य अर्जनाय (षष्ठी तत्पुरुष)
ग्राम्यजीवनम् = ग्राम्यं जीवनम् (कर्मधारय)
अनावृष्टिः = न वृष्टिः (नञ् समास)
नगरवासिन: = नगरस्य वासिनः (षष्ठी तत्पुरुष)
परिश्रमार्जितमन्नं = परिश्रमेण अर्जितम् अन्नम् (तृतीया तत्पुरुष)

2. प्रकृति-प्रत्ययविभाग-व्युत्पतिः-
प्रकृति = प्र + कृ + क्तिन्।
कल्पयित्वा = कल्प् + क्तवा।
संस्कृति: = विज्ञान + ठक् + डीपू।
ग्राम्य:। = ग्राम + यत्।
अवरुद्धम् = अब + रुद्ध + क्त्।
यदा = यत् + दा।
निर्धना: = निर्धन +धब्।
प्राकृतिक = प्रकृति + क्तवा।
पलायमाना = परा + अय + शानिच्।
निर्मलता = निर्मल + तल् + टाप्।
काम्यम् = कम् + णिच् + ण्यत्।
कदा = किम् + दा।
सम्मिल्य = सम + मिल् + ल्यप्।

अभ्यासः (मौखिकः )
निम्नलिखितानां प्रश्नानामुक्तरं दत्त-
(क) अस्माक देशे जना: कुत्र वसन्ति ?
(ख) भारते केषाों संख्या अधिका अस्ति?
) प्राचीनकाले ग्राम्यजीवनं कीदृशम् आसीत् ?
(५) विदेशेषु ग्रामेऽपि कीदृशी समृद्धिः आगता?
(ड) अद्य ग्रामे कस्य कल्पना नास्ति?
उत्तर— (क) अस्माकं देशे जना: ग्रामे नगरे च वसन्ति।
(ख) भारते ग्रामाणाम् संख्या अधिका अस्ति ।
(ग) प्राचीनकाले ग्राम्यजीवनं बहुसुखमयम् आसीत्।
(घ) विदेशेषु ग्रामेऽपि वैज्ञानिकी समृद्धि: आगता।
(ङ) अद्य ग्रामे स्वर्गस्य कल्पना नास्ति।

अभ्यासः (लिखितः)
1. अघोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया दत्त-
(क) भारतं केषाम् देशः अस्ति?
(ख) देशे ग्रामापेक्षया केषां संख्या क्रमशः वर्धते?
(ग) मानवः कां कल्पयित्वा नगराणि निर्ममे?
(घ) मानवेभ्यः केषां वस्तूनाम् आवश्यकता वर्तते?
(ङ) अद्यत्वे ग्रामेषु कीदृशं संकटकारणं दृश्यते ?
उत्तर-(क) भारतं ग्रामाणाम् देश: अस्ति।
(ख) देशे ग्रामापेक्षया नगराणाम् संख्या क्रमश: वर्धते।
(ग) मानवः स्वस्य भौतिकी सुखसमृद्धिं कल्पयित्वा नगराणि निर्ममे।
(घ) मानवेभ्यः भोजनं वसनं आवासश्चेति तिस्रः आवश्यकता वर्तते।
(ङ) अद्यत्वे ग्रामेषु समाजे च राजनीतिप्रसारेण दलप्रतिबद्धता, जातिवादः भूमिविवाद: संकटकारणम् दृश्यते।


2. अधोलिखितपदानां प्रकृति-प्रत्यय विभागं लिखत-
(कि) संस्कृति -सम् + √कृ + क्तिन्
(ख) ग्राम्यम्-ग्राम + यत्
(ग) अवरुद्धम्–अव + √रुद्ध + क्त
(घ) वैज्ञानिक:–विज्ञान + ठक्
(ङ) कदा–कत् + आ


3. संधि-विच्छेद कुरुत-
(क) ग्रामेऽद्यपि = ग्रामे + अद्य + अपि
(ख) एतल्लाभः = एतत् + लाभ:
(ग) धनार्जनम् = धन + अर्जनम्
(घ) चेति = च + इति
(ङ) प्राचीनोक्तिः = प्राचीन + उक्तिः


4. अधोलिखितानां वाक्यानां संस्कृतभाषायामनुवादं कुरुत-
(क) हमारे देश में अधिक लोग गाँव में रहते हैं ।
(ख) प्राचीनकाल में गाँव का जीवन सुखमय था।
(ग) गाँव में न्यूनतम सुविधाएँ हैं।
(घ) गाँव के लोग नगरों में जीविका पाते हैं।
(ङ) गाँव में आज स्वर्ग की कल्पना नहीं है।


उत्तर-(क) अस्माकं देशे बहव: जना: ग्रामे निवसन्ति।
(ख) प्राचीनकाले ग्रामस्य जीवनं सुखमयं आसीत्
(ग) ग्रामे न्यूनतमा सुविधा अस्ति।
(घ) ग्रामस्य जना: नगरेषु जीविका लभन्ते।
(ङ) ग्रामे अधुना स्वर्गस्य कल्पना न विद्यते।

5. अधोलिखितानां पदानां स्ववाक्येषु प्रयोगं कुरुत-
(क) निर्वहन्ति-जनाः स्वग्रामेण सम्बन्धं अपि निर्वहन्ति।
(ख) अधुना-अधुना वृष्टिः न अभवत् ।
(ग) पुरा- पुरा भारतवर्षः सम्पन्नः आसीत्।
(घ) कदा-त्वं कदा पठसि?
(ङ) पलायते-भिक्षुकः नगरं प्रति पलायते।